//Khanzada Mirza Khan Abdul Rahim – a poet / अब्दुल रहीम खानखाना
अब्दुल रहीम जीवनी Abdul Rahim biography in hindi

Khanzada Mirza Khan Abdul Rahim – a poet / अब्दुल रहीम खानखाना

अब्दुल रहीम जीवनी Abdul Rahim biography in hindi – “रहिमन धागा प्रेम का,
मत तोरो चटकाय ।
टूटे से फिर ना जुड़े,
जुरे गांठ पड़ जाए।
रहीमा जुरे गांठ पड़ जाए।”

ऐसी अनगिनत दोहे रचने वाले रहीम कवि मध्यकालीन सामंतवादी संस्कृत के प्रेमी कवि थे। उनका व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा संपन्न था। वह एक ही साथ सेनापति, प्रशासक, आश्रय दाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहु भाषा विद, कलाप्रेमी, कवि एवं विद्वान थे। रहीम सांप्रदायिक सद्भाव तथा सभी संप्रदायों के प्रति समान भाव के सत्य निष्ठ साधक थे। वह भारतीय सामाजिक संस्कृति के अनन्य आराधक थे और कलम और तलवार के धनी थे, मानव प्रेम के सूत्रधार थे।

अब्दुदुर रहीम खानखाना का जन्म सन 1553 में इतिहास मे प्रसिद्ध “बैरम खान” के घर लाहौर में हुआ था। उस समय सम्राट हुमायूं, सिकंदर सूरी का आक्रमण का प्रतिरोध करने के लिए लाहौर में मौजूद थे। बैरम खां के घर पुत्र के जन्म की खबर सुनकर वे स्वयं वहां गए और उस बच्चे का नाम “रहीम” रखा। अकबर ने रहीम का पालन पोषण एकदम धर्म-पुत्र की तरह किया।

कुछ दिनों के पश्चात अकबर ने विधवा “सुल्ताना बेगम” से विवाह कर लिया। अकबर ने रहीम को शाही खानदान के अनुरूप “मिर्जा खा” की उपाधि से सम्मानित किया। रहीम की शिक्षा दीक्षा अकबर की उदार धर्मनिरपेक्ष नीत के अनुकूल हुई। इसी शिक्षा दीक्षा के कारण रहीम का काव्य आज भी हिंदुओं का कंठ हार बना हुआ है।

दिनकर जी के कथन अनुसार –अकबर ने अपने दीन- इलाही में हिंदुत्व को जो स्थान दिया होगा, उससे कई गुना ज्यादा स्थान रहीम ने अपनी कविताओं में दिया। रहीम के बारे में यह कहा जाता है कि वह धर्म से मुसलमान और संस्कृति से शुद्ध भारतीय थे। रहीम की शिक्षा समाप्त होने के पश्चात अकबर ने अपने पिता हुमायूं की परंपरा का निर्वाह करते हुए, रहीम का विवाह बैरम खा के विरोधी मिर्जा अजीज कोका की बहन “महा बानो” से करवा दिया। रहीम का विवाह लगभग 16 साल की उम्र में कर दिया गया था। अकबर के दरबार को प्रमुख पदों में से एक पद “मीर अर्ज” का पद था । यह पद पाकर कोई भी व्यक्ति रातो रात अमीर हो जाता था क्योंकि यह पद ऐसा था, जिससे पहुंचकर ही जनता की फरियाद सम्राट तक पहुंचती थी और सम्राट के द्वारा लिए गए फैसले भी। इसी पद के जरिए जनता तक पहुंचाएं जाते थे। इस पद पर हर दो-तीन दिनों में नए लोगों को नियुक्त कर दिया जाता था।

सम्राट अकबर ने इस पद का कामकाज सुचारू रूप से चलाने के लिए अपने सच्चे तथा विश्वासपात्र रहीम को “मुस्तकिल मीर अर्ज” नियुक्त किया। यह निर्णय सुनकर सारा दरबार सन्न रह गया। इस पद पर आसीन होने का मतलब था कि वह व्यक्ति जनता एवं सम्राट दोनों में सामान्य रूप से विश्वसनीय है।

रहीम की अवधी और ब्रज भाषा दोनों में ही कविता की है जो सरल, स्वाभाविक और प्रवाह पूर्ण है। उनके काव्य में श्रृंगार शांत तथा हास्य रस मिलते हैं तथा दोहा, सोरठा, बरर्वे कविता और सवैया उनके प्रिय छंद है। मुस्लिम धर्म के अनुयाई होते हुए भी रहीम ने अपनी काव्य रचना द्वारा हिंदी साहित्य की जो सेवा की, उसकी मिसाल विरले ही मिल सकेंगी।

रहीम की कई रचनाएं प्रसिद्ध हैं जिन्हें उन्होंने दोहो के रूप में लिखा। इन दोहो में “नीतिपरक” का विशेष स्थान है। रहिमन के ग्रंथों में रहीम दोहावली या सतसई बरवै, नायिका भेद, श्रृंगार, सोरठा, मदनाअष्टक, राग पंचाध्याई, नगर शोभा, फुटकर बर्वे, फुटकर छंद तथा पद फुटकर कवितव , सराय सवैय संस्कृत, काव्य सभी प्रसिद्ध है।

उन्होंने तुर्की भाषा में बाबर की आत्मकथा “तुजके बावरी” का फारसी में अनुवाद किया। “मआसिरे रहीमी” और “आईने अकबरी” में इन्होंने खानखाना और रहीम नाम से कविता की है। रहीम जी का व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था। यह मुसलमान होकर भी कृष्ण भक्त थे इन्होंने खुद को “रहिमन” कहकर भी संबोधित किया है। उनके काव्य में नीति, भक्ति, प्रेम और श्रृंगार का सुंदर समावेश मिलता है। उनकी कविताओं, छंदों, दोहों में पूर्वी, अवधि, ब्रज भाषा तथा खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है पर मुख्य रूप से ब्रज भाषा का ही प्रयोग हुआ है। भाषा को सरल, सरस एवं मधुर बनाने के लिए इन्होंने तद्भव शब्दों का अधिक प्रयोग किया है।