//Nathuram Godse – Assassin of Mahatma Gandhi / नाथूराम गोडसे
नाथूराम गोडसे जीवनी Nathuram Godse biography in hindi

Nathuram Godse – Assassin of Mahatma Gandhi / नाथूराम गोडसे

नाथूराम गोडसे जीवनी Nathuram Godse biography in hindi – नाथूराम गोडसे हिंदू राष्ट्रवादी पत्रकार थे, जो महात्मा गांधी की हत्या करने वाले के नाम से जाने जाते हैं। 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली में उन्होंने गांधीजी की छाती में तीन गोलियां मारी थी। उनका जन्म महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासंघ के सदस्य थे। विनायक चतुर्वेदी और थॉमसन के अनुसार 1940 के शुरुआत में उन्होंने RSS छोड़ दिया था। नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे, गांधी जी की हत्या में उनके सहयोगी माने जाते हैं। RSS. छोड़ने के बाद भी नाथूराम गोडसे, आर एस एस के लिए कार्य करते थे। नाथूराम और उनके भाई, गांधी जी द्वारा मुस्लिमों के हक के लिए गए निर्णयों के खिलाफ थे। गॉडसे ने जिस समय गांधी की हत्या की उसी समय पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और 8 नवंबर 1949 को उन्हें फांसी दे दी गई थी।

नाथूराम के पिता का नाम “विनायक वामन राव गोडसे” था, जो कि पोस्ट ऑफिस में एक कार्यकर्ता थे तथा उनकी माता का नाम “लक्ष्मी बाई” था। उनके बचपन का नाम “रामचंद्र” था लेकिन एक घटना की वजह से उनका नाम नाथूराम पड़ गया। नाथूराम के जन्म से पहले उनके माता-पिता के तीन बेटे और एक बेटी थी, लेकिन बचपन में ही तीनों बेटों की मृत्यु हो गई थी। उनके माता-पिता ने, बेटों की मृत्यु के डर से जन्म के आरंभिक काल में ही नाथूराम को एक लड़की बना कर रखा था। वह उसे एक लड़की की तरह रखते थे क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं बाकी के तीन बेटों की तरह नाथूराम की भी मृत्यु ना हो जाए। नाथूराम को बचपन में अपने नाक में “नथ” भी पहननी पड़ी थी जिसकी वजह से उनका नाम “नाथूराम” पड़ा। नाथूराम के छोटे भाई की जन्म लेते ही उनके माता-पिता ने नाथूराम को लड़का बताया।

नाथूराम गोडसे ने पांचवी तक बारामती के स्थानीय स्कूल से ही शिक्षा ग्रहण की। बाद में अंग्रेजी भाषा की पढ़ाई के लिए वह अपने अंकल के साथ पुणे गए। उनके स्कूल के दिनों में वह गांधी जी को बहुत आदर करते थे। इसके बाद गोडसे ने स्कूल छोड़ दिया और तभी से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा के कार्यकर्ता बन गए। हिंदू महासभा ने एक समय गांधी जी के ब्रिटिश के विरुद्ध हुए “नागरिक अवज्ञा अभियान” में उनका समर्थन किया था लेकिन बाद में हिंदू महासभा, 1940 के “भारत छोड़ो आंदोलन” से दूर रही। गॉडसे ने हिंदू महासभा के लिए एक मराठी अखबार की स्थापना की, जिसका नाम “अग्रणी” था, जिसे कुछ साल बाद “हिंदू राष्ट्र” के नाम से जाना जाने लगा।

गॉडसे उस समय महात्मा गांधी के सिद्धांत “मृत्यु तक उपवास” के विरोध में थे। नाथूराम गोडसे एक विचारक, समाज सुधारक, पत्रकार थे और गांधी जी के सम्मान करने वालों में अग्रिम पंक्ति में थे किंतु सत्ता परिवर्तन के बाद गांधीजी में जो बदलाव देखने को मिला उससे नाथूराम ही नहीं बल्कि संपूर्ण राष्ट्रवादी युवा वर्ग आहत था। नाथूराम गोडसे भारत का विभाजन नहीं होने देना चाहते थे और परिणाम स्वरूप उन्हें गांधी जी की हत्या करनी पड़ी क्योंकि उस समय गांधी जी “भारत विभाजन” का समर्थन कर रहे थे जिसका बहुत से लोग विरोध कर रहे थे।

1940 में हैदराबाद के शासक निजाम ने उसके राज्य में रहने वाले हिंदुओं पर “जजिया कर” लगाने का प्रयास किया । “जरिया कर” हिंदुओं से लिया जाने वाला कर था जो कि हिंदू को इसलिए देना पड़ता था क्योंकि वह हिंदू है। पहले कई मुगल शासक भी हिंदुओं से जजिया कर लिया करते थी तब गोडसे “हिंदू महासभा” में काम करते थे। हिंदू महासभा के तत्कालीन अध्यक्ष विनायक दामोदर सावरकर के आदेश पर नाथूराम गोडसे कुछ कार्यकर्ताओं के साथ हैदराबाद गए और “जजिया कर” का विरोध किया। निजाम ने इन सभी को जेल में बंद करवा दिया परंतु बाद में उसे अपना निर्णय वापस लेना पड़ा था।

भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के समय माउंटबेटन ने, भारत सरकार को, पाकिस्तान को ₹75 करोड़ देने को कहा। भारत सरकार ने ₹20 करोड़ दे दिए थे लेकिन पाकिस्तान ने उन पैसों का प्रयोग करके कश्मीर पर हमला कर दिया। इसे देखते हुए भारत सरकार ने पाकिस्तान को बचे हुए 55 करोड रुपए ना देने का निश्चय किया क्यों कि पाकिस्तान इन रुपयों का उपयोग भारत के विरुद्ध भी कर सकता था। लेकिन गांधी जी से काफी नाराज हुए और अनशन पर बैठ गए। और पाकिस्तान को ₹55 करोड़ देने की जिद करने लगे। यह अनशन असफल हुआ तो मुसलमान काफी निराश हुए और उन्होंने अपना क्रोध हिंदुओं पर उतारा। इन्होंने हिंदुओं के धन संपत्ति व जीवन को नुकसान पहुंचाया। इस प्रयोग के अपमान को “मोपाला विद्रोह” के नाम से जाना जाता है।

एक और कारण यह भी बताया जाता है कि जब पाकिस्तान से हिंदू शरणार्थी भारत आ रहे थे, तब दिल्ली में गॉडसे कैंपों में जाकर उनकी सहायता करते थे। शरणार्थियों को मंदिर और गुरुद्वारे मे शरण दी जा रही थी। जब जगह कम पड़ने लगी, तब शरणार्थियों ने एक खाली पड़ी मस्जिद में शरण ले ली। यह बात जब गांधीजी को पता चली तो गांधीजी मस्जिद के आगे धरने पर बैठ गए और मस्जिद खाली कराने की जिद करने लगे। सरकार ने उनकी इस बात को भी मान लिया। जब पुलिस मस्जिद खाली करा रही थी, तब वहां पर गॉडसे मौजूद थे। उन्होंने बच्चों को सर्दी से ठिठुरते और बारिश में भीगते हुए देखा तो उन्हें बहुत दुख हुआ और उन्होंने गांधी को मारने का निश्चय किया। गोडसे ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर योजना बनाई। इसके अनुसार मदनलाल पाहवा ने गांधी की प्रार्थना सभा में बम फेंका, इस अफरा तफरी में गांधी जी को मारना था और उसी समय गोडसे की पिस्तौल जाम हो गई है, गॉडसे और उनके के साथी भागने में कामयाब हो गए, परंतु मदनलाल पाहवा को भीड़ ने पकड़कर, पुलिस के हवाले कर दिया।

30 जनवरी 1914 को नाथूराम गोडसे, गांधी जी की शाम वाली सभा में पहुंचे। जब गॉडसे गांधी जी का चरण स्पर्श करने के लिए गांधीजी को सहारा देने वाली लड़की ने कहा -“भाई बापू को देरी हो रही है इन्हें जाने दो” लेकिन गॉडसे ने उस लड़की को एक तरफ किया और गांधीजी के बिल्कुल नजदीक से पिस्तौल द्वारा उनके सीने पर
अपनी Berettam 1934 ऑटोमेटिक पिस्टल से तीन गोलियां मारकर गांधी का अंत कर दिया और भागने का कोई प्रयास नहीं किया। गांधी जी को तुरंत बिरला हाउस ले जाया गया जहां उनकी मृत्यु हो गई।

पंजाब उच्च न्यायालय में उन पर मुकदमा चलाया गया। यह मुकदमा लगभग एक वर्ष तक चला और 15 नवंबर 1949 को पंजाब के अंबाला जेल में नाथूराम गोडसे को फांसी दे दी गई।