Chanakya biography in hindi – विशाल भारतवर्ष हिमालय से द्रविड़ तक तथा गांधार से ब्रह्मदेश तक फैला हुआ है। परंतु छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित भारतवर्ष एक वैभव संपन्न व शक्तिशाली राज्य हुआ करता था।
आचार्य चाणक्य का नाम ऐसे महान और समझदार लोगों की गिनती में आता है जिन्होंने अपने ज्ञान के बलबूते पर अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करवा दिया। इन्हें पूरी दुनिया आज भी सबसे महान राजनीतिज्ञ के तौर पर जानती है। चाहे बीता हुआ पुराना समय हो या फिर आज का समय, लोग एक सफल व्यक्ति बनने के लिए चाणक्य द्वारा बताए गए उसूलों पर ही चलना चाहते हैं। आज से 371 BC पूर्व “Chanaka” नाम के एक गांव में चाणक्य का जन्म हुआ। और यह गांव पैसे के लिए उस समय “GOLLA REGION” के अंतर्गत आता था
आचार्य चाणक्य के पिता “आचार्य चरक” बहुत ही दरिद्र विद्वान थे। आचार्य चरक की धर्म पत्नी अपने पति के समान सुंदर और संतोषी स्वभाव की थी। आचार्य उनसे बहुत प्रेम करते थे। इनके घर कोई संतान नहीं थी। एक दिन तीन साधु आचार्य चरक की झोपड़ी पर आए। प्रेम पूर्वक भोजन खाने के बाद उन्होंने चरक को आशीर्वाद दिया कि ईश्वर की कृपा से शीघ्र ही तुम्हारी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। तुम्हारे वंश का नाम युगो युगो तक रोशन होगा। कुछ समय पश्चात ऋषि की पत्नी गर्भवती हो गई। उनकी पत्नी ने एक स्वस्थ सुंदर और विचित्र बालक को जन्म दिया। बालक का रंग माता पिता जैसा ना होकर सावला था। उसका शरीर लगभग एक साल के शिशु जैसा लगता था। और जन्म के समय उसके मुंह में 2 दांत निकले हुए थे उसका माथा चौड़ा चेहरे पर तेज पटकती हुई लकीरे तथा नथुनी फूले हुए थे। जैसे बालक कुछ तनाव का अनुभव कर रहा हो। कभी-कभी वह अचानक यूं ही मुस्कुरा पड़ता जैसे कोई रहस्य की बात उसे समझ आ गई हो। चरक और उसकी पत्नी पुत्र को पाकर फूले नहीं समा रहे थे। उसके दांत और क्रियाकलापों को देखकर वे दोनों हैरान अवश्य थे। अचानक पत्नी ने पूछा मैंने तो यह सुन रखा है कि बच्चे का रंग या तो मां जैसा होता है या फिर पिता जैसा। चरक बोले मगध पर अत्याचार के काले बादल छाए है और क्रूर सैनिकों के आतंक ने मगध के भविष्य पर कालिख पोत दी है, शायद वह कालिख हमारे पुत्र को भी लग गई।
चरक ने अपनी पत्नी को बताया कि नंद एक विलासी राजा है दिन रात शराब और शबाब में डूबा रहता है। उसे प्रजा की सुध लेने का होश ही कहा है। किसी भी समय कुछ भी हो सकता है राजकोष लूट रहा है। देश की सीमाओं पर विदेशी यवन तलवार लिए खड़े हैं। आस्तीन के सांप कुचक्र करते हैं। ईश्वर को कोटि-कोटि धन्यवाद दीजिए जिन्होंने हमें पुत्र रत्न दिया। इसका नाम “कौटिल्य” रखेंगे। उनकी पत्नी ने कहा -विद्वान सदा से ही पूज्य रहा है आप अपने पुत्र को इतनी शिक्षा देना कि राजा और राज्य से इसके सामने आत्मसमर्पण करने को तैयार हो जाए। चरक बोले इसे प्रतिभाशाली व यशस्वी बनाने के लिए मैं एड़ी चोटी का जोर लगा दूंगा। इसे ऐसा पंडित बनाऊंगा जिसकी कीर्ति से मेरा देश रोशन होगा। गरीबी के वातावरण में कौटिल्य धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। कौटिल्य अपने पिता से शिक्षा और यज्ञ आदि कर्म सीखते हुए एक अध्यापक, अर्थशास्त्री और दार्शनिक बन गए।
आचार्य चाणक्य का बदला
आचार्य चाणक्य ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने नंद वंश को खत्म कर मौर्य शासन की नींव रखी थी। । चाणक्य को लोग “कौटिल्य” और “विष्णुगुप्त” के नाम से भी जानते थे। चाणक्य बचपन से ही बहुत ज्ञानी थे और चाणक्य के तेज दिमाग को देखते हुए उनके पिता ने उन्हें तक्षशिला के स्कूल में पढ़ाई करने के लिए भेज दिया। वहां पर चाणक्य को अर्थशास्त्र और वेदों के बारे में अच्छी जानकारियां पाने का मौका मिला और अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद से चाणक्य वही एक टीचर के तौर पर पढ़ाने लगे। जो जगह आज पटना के नाम से प्रसिद्ध है। चाणक्यय के समय में उस जगह को “पाटलिपुत्र” कहा जाता था। उस समय शक्तिशाली पाटलिपुत्र राज्य मगध की राजधानी थी। जहां पर नंद वंश का साम्राज्य था और “धनानंद” वहां के राजा थे ।
एक बार राजा धनानंद ने मगध के अंदर बहुत बड़ा यज्ञ करवाया और जब यज्ञ चल रहा था उस समय चाणक्य भी वहीं पर मौजूद थे। चाणक्य ब्रह्मभोज के समय ब्राह्मण की गद्दी पर जा बैठ,। लेकिन जब राजा धनानंद ब्रह्म भोज वाली जगह पर पहुंचे तब चाणक्य के पहनावे को देखकर उन्होंने भरी सभा में चाणक्य का मजाक उड़ाया और ब्रह्म भोज के बीच से ही उन्हें उठने का आदेश दिया। इस अपमान से क्रोधित होकर चाणक्य ने अपनी चोटी खोल दी और राजा धनानंद को कहा – “जब तक मैं नंद वंश का सफाया नहीं कर लूंगा तब तक वह अपनी चोटी नहीं बांध दूंगा । ” यहीं से चाणक्य के जीवन का मकसद हो गया नंद वंश को खत्म करना और अपने द्वारा चुने गए किसी आदमी को राजा बनाना। फिर अपमान सहने के बाद चाणक्य विंध्या नाम के एक जंगल में चले गए। वहां उन्होंने सोने के सिक्के तैयार किए जो कि कोई खास तकनीक से बनाए गए थे और उनकी यह टेक्निक एक सिक्के को 8 सीटों में तब्दील करने की ताकत रखती थी। इस तरह से कुल 800 मिलियन सिक्के तैयार करके उन्होंने जंगल में ही कहीं छुपा दिया। फिर आचार्य चाणक्य उस आदमी की खोज में निकल गए जो धनानंद की जगह ले कर मगध पर राज कर सके। चाणक्य ने राजा धनानंद के बेटे से भी दोस्ती बढ़ाई और उसे मगध के सिंहासन को पाने के लिए उकसाने लगे।
इसी बीच चाणक्य ने एक और लड़के को कुछ बच्चों के साथ बहादुरी से लड़ते हुए देखा और उसे देखकर वह पल भर में ही समझ गए कि यह कोई आम लड़का तो नहीं है। फिर जब उन्होंने उस लड़के के बारे में जानकारियां इकट्ठे की तो यह पता लगा कि वह मौर्य साम्राज्य का वंश “चंद्रगुप्त” हैं। जिनके पिता की हत्या राज्य के लालच के चलते कर दी गई थी और राजकुमार चंद्रगुप्त राज्य से निकाल दिए गए थे। फिर इन बातों को जानने के बाद आचार्य चाणक्य को यह महसूस हुआ कि चंद्रगुप्त में धनानंद की गद्दी पाने की योग्यता है।
हालांकि अभी भी “पबाता” जो कि राजा धनानंद के लड़के थे और चंद्रगुप्त जोकि “मौर्य साम्राज्य” के वंश के थे। इन दोनों के बीच किसी एक को चुनना बाकी था। फिर सही चुनाव के लिए आचार्य चाणक्य ने दोनों की परीक्षा लेने की सोची। और चाणक्य ने पबाता और चंद्रगुप्त दोनों को धागे में लगी हुई एक रक्षा कवच दी जिसे उन्होंने कहा कि वह गले में पहन कर रखें। जब एक बार चंद्रगुप्त सो रहे थे तब चाणक्य ने पबाता से कहा कि- वह चंद्रगुप्त को बिना जगाए और बिना धागे को काटे हुए चंद्रगुप्त के गले से उस रक्षा कवच को निकाल कर लाए। लेकिन हजार कोशिश करने के बाद भी पबाता यह काम नहीं कर पाए और यही काम पबाता के सोते समय चंद्रगुप्त को करने के लिए कहा गया। और फिर क्या था चंद्रगुप्त ने तलवार उठाई और पबाता का सिर धड़ से अलग कर दिया और रक्षा कवच चाणक्य को लाकर दे दिया। अब चाणक्य को मगध का भावी राजा मिल गया था।
चाणक्य ने अगले 7 सालों तक चंद्रगुप्त को राजनीति और कर्तव्यों की सीख देनी शुरू कर दी। फिर अपने द्वारा छुपाए गए सोने के सिक्कों को निकालकर चाणक्य ने एक विशाल सेना तैयार की, जिन्होंने नंद वंश को हराकर चंद्रगुप्त को राजा की गद्दी पर बैठा दिया। जीत के बाद से चाणक्य ने चंद्रगुप्त का प्रधानमंत्री बन कर जीवन बिताया।
इस दौरान आचार्य चाणक्य ने दो किताबें भी लिखी जिसमें पहली किताब पहले “चाणक्य नीति” थी। इसमें उन्होंने “अच्छे शासक को कैसे शासन करना चाहिए” इस बारे में बताया। दूसरी किताब “अर्थशास्त्र थी। जिसमें चाणक्य ने “राज्य की आर्थिक नीतियों” के बारे में विस्तार से बताया। इस तरह से अपने आप को सबसे सफल राजनीतिज्ञ और ज्ञानी लोगों की गिनती में ला कर खड़ा करने के बाद चाणक्य ने इस दुनिया को अलविदा कहा। उन की मृत्यु के पीछे भी कई सारी अलग-अलग कहानियां बताई जाती है।
आचार्य चाणक्य ने कूटनीति और राजनीति के बारे में जो अपनी व्याख्या समझाइए उससे सभी की जिंदगी आसान बना दी है। उनके विचार आज भी अक्सर हम को सुनने और देखने को मिल जाते हैं।