Gangotri Dham Yatra Information in Hindi – हिंदुओं के चार धामों में से गंगोत्री की यात्रा ,सबसे सुगम यात्रा मानी जाती है ।इसके बाद बद्रीनाथ ,यमुनोत्री और सबसे दुर्गम यात्रा केदारनाथ की मानी जाती है।
गंगा मैया के मंदिर का निर्माण कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा किया गया था। वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण जयपुर के राजघराने द्वारा किया गया है।
गंगोत्री आने के लिए ऋषिकेश से सीधा रास्ता है। नरेंद्र नगर, नई टिहरी ,उत्तरकाशी होते हुए , 70 किलोमीटर की दूरी तय कर कर गंगोत्री पहुंच सकते हैं।
Gangotri Dham Yatra Information in Hindi – गंगोत्री पहुंचने से पहले ही यहां का वातावरण श्रद्धालुओं का मन मोह लेता है।
सामने ऊंचाई पर ऊंची ऊंची पहाड़ियां अत्यंत सुंदर लगती हैं। यहां की सर्द बर्फीली हवाएं जब चेहरे से टकराती हैं तो मन आनंदित हो जाता है। यह स्थान उत्तरकाशी से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दर्शनार्थी सीढ़ियों से चढ़कर मंदिर तक पहुंचते हैं।
गंगोत्री से गोमुख जाने के लिए पैदल मार्ग है जिसकी दूरी लगभग 18 किलोमीटर है।
मुख्य मंदिर में प्रवेश करते ही, मंदिर का पीछे का हिस्सा दिखाई देता है। मंदिर के दाएं और गंगा घाट पर जाने के लिए सीढ़ियां हैं। इसी जगह पर ऋषि भागीरथी की तपस्वी स्थल भी है।
प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर में पवित्र गंगा मैया के दर्शन करने के लिए, लाखों तीर्थयात्री यहां आते हैं। और यहां के वातावरण को देखकर श्रद्धालुओं का मन हर्ष से भर जाता है।
मंदिर के सामने की ओर भगवान शिव, पार्वती जी, गणेश जी, नंदी जी आदि देवी देवताओं की मूर्तियां हैं।
और यहीं पर भागीरथी ऋषि को हिमालया में विराजमान होते हुए बहुत ही खूबसूरती के साथ दर्शाया गया है।
गंगोत्री के कपाट अप्रैल के अंतिम पक्ष में या मई के प्रथम पक्ष में खोले जाते हैं। शीतकाल में अक्टूबर के प्रथम पक्ष में मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं।
तत्पश्चात मां गंगा की उत्सव डोली का शीतकालीन पड़ाव ,मुखी मठ या मुखवा पहुंचता है। शीतकाल में भी मां गंगा की पूजा अर्चना की जाती है।
मुखवा गांव प्राकृतिक रूप से समृद्ध है। यहां गंगोत्री धाम के तीर्थ पुरोहितों का गांव भी है। मां गंगा की भोग मूर्ति के शीतकालीन स्थल को, “मुखी मठ” भी कहा जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री रामचंद्र जी के, चक्रवर्ती राजा के पूर्वज, भागीरथी ने एक पवित्र शीला पर बैठकर भगवान शिव की तपस्या की थी।
इस पवित्र शीला के पास ही इस मंदिर का निर्माण किया गया। सफेद चमकदार ग्रेनाइट से बना यह मंदिर बहुत ही सुंदर है।
यह भी मान्यता है कि पांडवों ने महाभारत का युद्ध जीतने के बाद, अपने परिजनों के मारे जाने पर, उनकी आत्मिक शांति के लिए इस स्थान पर एक महान अनुष्ठान किया था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव अपनी जटाओं को फैला कर यहां पर बैठ गए थे और उन्होंने मां गंगा को अपनी जटाओं में लपेट लिया था।
कई वर्षों से यह मंदिर हिंदुओं के लिए आत्मिक और अध्यात्मिक प्रेरणा का स्त्रोत रहा है।
पुराने समय में चार धाम की यात्रा पैदल होती थी। चढ़ाई भी अत्यंत दुर्गम थी। परंतु 1980 में गंगोत्री के सड़क बनने के बाद इस जगह का पर्याप्त विकास हुआ।
इसी मंदिर के नीचे ऋषि भागीरथी की तपस्थली है। मुख्य मंदिर के दर्शन के पश्चात श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं। भागीरथी तपस्थली के साथ ही गणेश जी का मंदिर है।
इसी के ठीक सामने मां गंगा का भव्य दर्शन होता है। जिसके किनारे तीर्थयात्री अपने पूर्वजों के श्राद्ध और क्रिया कर्म के कार्य भी करते हैं।
भागीरथी के दाई ओर का परिवेश बहुत ही आकर्षक व मनोहारी है। यहां से हिमालय की ऊंची ऊंची चोटियां नजर आती हैं जो श्रद्धालुओं के मन को हर्ष से भर देती है।
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