//Jagdish Chandra Bose – Physicist, Botanist and Science Fiction / जगदीश चंद्र बोस
Jagdish Chandra Bose biography in Hindi

Jagdish Chandra Bose – Physicist, Botanist and Science Fiction / जगदीश चंद्र बोस

Jagdish Chandra Bose biography in Hindi – भारत के महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस ( Jagdish Chandra Bose ) ने पूरी दुनिया को बताया कि पेड़ पौधों में भी हमारी तरह जीवन होता है। वो भी हमारी तरह सर्दी -गर्मी को महसूस करते हैं। उन्हें भी दर्द होता है। सुख-दुख का एहसास होता है।
इसके अलावा जगदीश चंद्र बोस ( Jagdish Chandra Bose ) ने ऐसी मशीन का आविष्कार किया जिससे बिना तारों के संदेशों को भेजा जा सकता है। जिसको हम आज के समय में “Wireless Technology” के रूप में जानते हैं। उनके इस रिसर्च के आधार पर टीवी, रेडियो और इंटरनेट काम करते हैं।

जगदीश चंद्र बोस ( Jagdish Chandra Bose ) का जन्म 30 नवंबर 1858 को “Mymen Singh” नामक गांव में हुआ था। पहले यह गांव भारत में था लेकिन अब बांग्लादेश का हिस्सा है। उनके पिता का नाम “भगवान चंद बोस था, जो उस समय “Deputy Collector” थे। भगवान चंद बोस अपने बेटे को एक सच्चा देशभक्त बनाना चाहते थे , इसलिए उन्होंने जगदीश चंद बोस का दाखिला एक बंगला स्कूल में करवा दिया। उनका मानना था कि अंग्रेजी सीखने से पहले अपनी मातृभाषा व संस्कृति का ज्ञान होना चाहिए।

जगदीश चंद्र बोस ( Jagdish Chandra Bose ) ने एक बार इंटरव्यू देते हुए बताया था कि जब मैं एक बंगला स्कूल में गया तो मेरे दाएं तरफ मेरे पिता के ड्राइवर का बेटा और बाएं तरफ मछुआरे का बेटा बैठा करता था। मैं इन्हीं के साथ खेलता भी था। उनकी पेड़ पौधों और पंछियों की बातें को, मैं बहुत ध्यान से सुनता था । शायद इन्हीं बातों से मुझे चीजों को जानने की जिज्ञासा हुईऔर मैंने खोज की। स्कूल की पढ़ाई के बाद वह कोलकाता आ गए और वहां एक मशहूर “St. Xavier’s स्कूल” में दाखिला लिया जहां से उन्होंने Physics की पढ़ाई की और आगे की पढ़ाई के “Christ College” चले गए, जहां उन्होंने “Natural Science” की डिग्री ली। 1885 में वह अपने देश भारत आकर कोलकाता के “Presidency Collage” में फिजिक्स के अध्यापक बन गए। तब वहां अधिकतर अध्यापक अंग्रेज थे और प्रिंसिपल भी अंग्रेज ही था। उस समय भारतीय अध्यापकों को, अंग्रेज अध्यापकों के मुकाबले बहुत कम तनख्वाह दी जाती थी और भारतीयों के साथ भेदभाव होता था। लेकिन जगदीश चंद्र बोस ने शुरू से ही अपने देश और जाति के स्वाभिमान को समझा था। इसलिए उन्होंने इसका विरोध करते हुए, अंग्रेज अध्यापकों की तुलना में, कम तनख्वाह लेने के लिए मना कर दिया। उन्होंने ठान लिया कि अगर मैं अंग्रेज अध्यापकों के समान मेहनत करता हूं तो मुझे भी उन्हीं के बराबर तनख्वाह और इज्जत मिलनी चाहिए। उन्होंने 3 वर्ष तक तनख्वाह नहीं ली। जिसके कारण उन पर पैसों की कमी हो गई।

जगदीश चंद्र बोस ( Jagdish Chandra Bose ) ने अपने घर को बेचकर शहर के दूर एक सस्ता मकान ले लिया। कोलकाता काम करने के लिए, वह अपनी पत्नी के साथ नाव द्वारा हुगली नदी को पार करके आते थे। उनकी पत्नी नाव लेकर उन्हें छोड़ जाती थी और शाम को उन्हें लेने आ जाती थी। बहुत परेशानियों का सामना करने के बाद वह अपनी बात पर अड़े रहे और फिर अंत में अंग्रेजों को जगदीश चंद्र बोस के सामने झुकना ही पड़ा। इसी के साथ और सभी भारतीय अध्यापकों को भी अंग्रेज अध्यापकों के समान तनख्वाह देने का नियम बनाना पड़ा।

जगदीश चंद्र बोस ( Jagdish Chandra Bose ) यहां पर पढ़ाने के बाद अपना बचा हुआ समय रिसर्च में लगाते थे। रिसर्च करते हुए उन्होंने रेडियो और Optics की खोज में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और ऐसी मशीनें बनाई जिनसे बिना तार के संदेशों को भेजा और प्राप्त किया जा सकता था।

उनके इस प्रयोग के आधार पर आज भी “Wireless Technology” काम करती है। लेकिन इस खोज का पूरा श्रेय एक दूसरे वैज्ञानिक “Marcony” को चला गया क्योंकि जगदीश चंद्र बोस ने किसी भी खोज के Patent के खिलाफ थे। उन्होंने अपने खोजों से व्यवसायिक लाभ उठाने की जगह सभी को बता दिया ताकि और भी लोग इस पर आगे काम करते रहे हैं और ज्यादा से ज्यादा नहीं खोजें हो सके। उनकी खोज पर आगे काम करते हुए Macrony ने इसे अपने नाम से रजिस्टर करा दिया।

उन्होंने “Bio-Physics” के क्षेत्र में भी बहुत ही आश्चर्यजनक खोजें की है । उन्होंने अपनी खोज में दिखाया कि पौधों में उत्तेजना का संचार इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से होता है ना कि केमिकल माध्यम से। उनका मानना था कि पेड़ पौधों में भी हमारी तरह जीवन होता है। उन्हें भी हमारी तरह दर्द होता है। हमारी तरह सुख-दुख का एहसास होता है । इसी खोज को सिद्ध करने के लिए जगदीश चंद्र बोस ने एक ऐसी मशीन का आविष्कार किया, जिससे पौधों की नब्ज को नापा जा सकता था। इस मशीन को बाद में “Crescograph” के नाम से जाना गया ।

इस को सिद्ध करने के लिए उन्होंने एक पौधे को जड़ के साथ ऐसे बर्तन में डाल दिया जिसमें “Bromide” जहर घुला हुआ था। उन्होंने देखा कि पौधे की नब्ज एक सामान्य जीव की तरह अस्थिर हो रही है। अचानक कभी तेज हो जाती है और कभी धीमे। धीरे-धीरे करके वह मुरझा सी गई। एक तरह से इंसान की नब्ज की तरह, पौधे की भी नब्ज ने भी काम करना बंद कर दिया और उस पौधे की मृत्यु हो गई ।

जगदीश चंद्र बोस ( Jagdish Chandra Bose ) ने इस बात को बताने के लिए बहुत सारे महान वैज्ञानिकों को एक जगह बुलाया और रिसर्च को दिखाने के लिए एक जहरीला इंजेक्शन एक पौधे को लगाया और कहा कि इसकी पल्स धीरे धीरे बंद हो जाएगी और यह पूरी तरह मुरझा जायेगा। लेकिन कुछ घंटों तक ऐसा नहीं हुआ और वह पौधा वैसा का वैसा हरा भरा रहा । ऐसा देखकर वहां बैठे सभी लोग हंसने लगे। लेकिन जगदीश चंद्र बोस ( Jagdish Chandra Bose ) को अपनी रिसर्च का पूरा भरोसा था । उन्होंने कहा मेरी रिसर्च गलत नहीं हो सकती। मैं इस इंजेक्शन को अपने पर आजमाता हूं और जैसे ही वह अपने आप को इंजेक्शन लगाने जा रहे थे तभी एक आदमी आगे बढ़ा और उसने यह स्वीकार किया कि उसने इंजेक्शन की जगह, पानी से भरा इंजेक्शन रख दिया था।

उसके बाद उन्होंने इंजेक्शन को बदलकर सफलतापूर्वक अपनी खोजों को लोगों को सामने लाएं और दोस्तों के कहने पर “Croscograph” का “Patent” लिया है। अमेरिका में यह किसी भारतीय द्वारा लिया गया पहला “Patent” था।

इसके अलावा भी जगदीश चंद्र बोस ने बहुत सारी छोटी-छोटी खोजे की और भारत देश का नाम पूरे विश्व में रोशन किया।

“Institute of electrical and electronics engineers” ने अपने “Wireless Hall of Fame” में जगदीश चंद्र बोस को सम्मिलित किया और वह 1920 में “Royal Society” के “fellow” भी चुने गए।

आखिर में विज्ञान के क्षेत्र में क्रांति लाने के बाद भारत के वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस ( Jagdish Chandra Bose ) ने 23 नवंबर 1937 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

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