मीराबाई चानू जीवनी Mirabai Chanu biography in hindi – ओलंपिक्स मेडल जीतकर लाना भारत के लिए हमेशा से मुश्किल रहा है लेकिन टोक्यो ओलंपिक्स के पहले ही दिन “वेटलिफ्टिंग” में मीराबाई चानू ने “सिल्वर मेडल” दिला कर भारत को खुशियों की सौगात दी है और कुछ ही देर के लिए सही, भारत मेडल टैली में तीसरे नंबर पर आ गया था। इन्होंने 9 किलोग्राम वर्ग में कुल 202 किलोग्राम वजन उठाकर यह पदक जीता है।
मीराबाई चानू का मणिपुर की राजधानी इंफाल से करीब 22 किलोमीटर दूर “Thoubal, Kakching,” नामक गांव है। इनका जन्म 8 अगस्त 1994 को एक साधारण ग्रामीण परिवार में हुआ था। छोटी सी उम्र से बड़े भाई से ज्यादा लकड़ियां उठा कर घर लाती थी और वजन उठाने की यही आदत बाद में इनके काम भी आई। बाकी बच्चों की तरह इनका मन भी बचपन से ही खेलकूद में ज्यादा लगता था। उनके पड़ोस में रहने वाले ज्यादातर बच्चे फुटबॉल खेला करते हैं लेकिन फुटबॉल खेलने से कपड़े खराब हो जाते थे और इसी वजह से वह कोई ऐसा खेल खेलना चाहती थी जहां पर कपड़े गंदे ना हो। इसके लिए उन्होंने 2008 में इंफाल जाकर “स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया” ट्रेनिंग सेंटर में “आर्चरी” सीखने का मन बनाया क्योंकि आर्चरी एक स्टाइलिश और साफ सुथरा खेल था, जहां कपड़े खराब नहीं होते थे। लेेकिन उस ट्रेनिंग सेंटर में आर्चरी सिखाने के लिए कोई भी कोच नहीं था इसलिए उन्होंने इस खेल को आगे जारी नहीं रखा लेकिन उस ट्रेनिंग सेंटर में वेटलिफ्टिंग में भारत का नाम कमाने वाली “कुंजारानी देवी” के कुछ वीडियो क्लिप देखें जो कि मणिपुर की एक वेटलिफ्टर थी जिन्हें देखने के बाद मीराबाई चानू उनसे काफी प्रभावित हुई और उन्होंने उन्हीं की तरह एक वेटलिफ्टर बनने का फैसला किया।
इन के गांव से ट्रेनिंग सेंटर करीब 22 किलोमीटर दूर था और रोज सुबह 6:00 बजे गांव से ट्रेनिंग सेंटर तक पहुंचना होता है लेकिन निरंतर अभ्यास और कड़ी मेहनत से उन्होंने सिर्फ 6 साल की ट्रेनिंग के बाद ही 2014 की “कॉमनवेल्थ गेम्स” में “सिल्वर मेडल” जीत लिया और 2016 के “रियो ओलंपिक” के लिए हो रहे नेशनल सिलेक्शन ट्रायल्स में 12 साल पुराने रिकॉर्ड को तोड़कर रियो ओलंपिक में मीराबाई चानू ने मेडल के लिए तगड़ी दावेदारी के साथ एंट्री कर ली लेकिन रियो ओलंपिक्स में मीराबाई चानू ओलंपिक्स के प्रेशर को ठीक से हैंडल नहीं कर पाई और डीएनएफ यानी (Did not finish) के टैग के साथ वापस घर लौट आई अपनेे सभी अटेम्प्ट्स में असफल होने के बाद मीराबाई चानू की आंखों से आंसू छलक रहे थे।
ओलंपिक में ना केवल शारीरिक शक्ति की जरूरत होती है बल्कि मानसिक शक्ति और संतुलन का भी इम्तिहान होता है। हार किसी की जिंदगी में आती हैं लेकिन असली चैंपियन वही होता है जो हारने के बाद भी अपनी कोशिशें जारी रखता है और अपने लक्ष्य को हासिल करने तक रुकता नहीं है। मीराबाई भी अपनी हार के बाद नहीं रुकी और 2017 में जब वर्ल्ड चैंपियनशिप हुई तब वहां पर इन्होंने “गोल्ड मेडल” जीता और यह “विश्व चैंपियन” बनी थी।
2018 के कॉमनवेल्थ गेम्स में इन्होंने ना सिर्फ गोल्ड मेडल जीता बल्कि सारे वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ कर “गोल्ड मेडल” जीता। इसके बाद उसी वर्ष इन्हें “राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार” से सम्मानित किया गया जो कि खेलों में दिया जाने वाला सबसे बड़ा सम्मान होता है। इनके कैरियर ने अभी थोड़ी रफ्तार पकड़ी ही थी कि 2018 में इन्हें “लोअर बैक इंजरी” हो गई और करीब एक साल तक इन्हें खेल से दूर रहना पड़ा था। 2019 में इन्होंने जोरदार वापसी की और टोक्यो ओलंपिक में मेडल लाने की तैयारी शुरू कर दी। “टोक्यो ओलंपिक्स” में मीराबाई चानू भारत की तरफ से इकलौती वेटलिफ्टर थी जिन्होंने 49 किलोग्राम वर्ग में जीत हासिल की है और इसी कैटेगरी में चीन की वेटलिफ्टर ने गोल्ड मेडल जीता था ।
ओलंपिक में मीराबाई ने “स्नैच सेगमेंट” में अपने पहले अटेम्प्ट में 84 किलोग्राम उठाने में सफल रही। सेकंड अटेम्प्ट में 87 उठाने में भी वह सफल रही लेकिन तीसरे अटेम्प्ट में 89 केजी उठाने में वह असफल रही। (Clean and Jerk) “क्लीन एंड जर्क” सेगमेंट में उन्होंने 110 kg सफलतापूर्वक उठाया। दूसरी बात उन्होंने 115 kg उठाया और तीसरी बार वह 117 kg उठाने में असफल रही है जिसके बाद उनका फाइनल स्कोर 87 + 115 यानी कि 202 किलोग्राम टोटल स्कोर बना। गोल्ड मेडल जीतने वाली चीन की “हुजी हुई” दोनों सेगमेंट में वर्ल्ड रिकॉर्ड को तोड़कर 210 का टोटल स्कोर बनाया।
मीराबाई चानू “वेटलिफ्टिंग” में भारत की तरफ से दूसरी एथलीट है जिन्होंने ओलंपिक में भारत को मेडल दिलाया है। भारत की पहली एथलेटिक “कर्णम मल्लेश्वरी” थी जिन्होंने सन् 2000 में सिडनी ओलंपिक में “ब्रांस मेडल” जीता था जोकि रियो ओलंपिक के इतिहास में भारत की तरफ से मेडल जीतने वाली पहली महिला बनी थी। मीराबाई चानू ने सिल्वर मेडल जीतने के बाद यह मेडल देश के नाम किया और सभी भारतीयों को इसके लिए धन्यवाद दिया।
मीराबाई चानू इंडियन रेलवे में मुख्य टिकट इंस्पेक्टर का काम भी करती हैं जिसके लिए उन्होंने इंडियन रेलवेज को भी धन्यवाद दिया। जब वह घर वापस लौटी तो भारत में उनका धूम-धड़ाके से स्वागत किया गया और भारत में ट्रेनिंग ले रहे नए एथलीट्स के लिए मीराबाई चानू एक उदाहरण बनकर उभरी है और उम्मीद है आने वाले ओलंपिक में भी भारत इसी तरह अपना परचम लहराएगा।
मीराबाई चानू के लिए यह सब इतना आसान नहीं था। एक बेहद गरीब परिवार में जन्मी चानू का यह सफर बहुत संघर्षपूर्ण रहा। उन्होंने अपने जज्बे से असंभव को संभव कर दिखाया।