//Sudha Murty – an Indian educator, author and philanthropist / सुधा मूर्ति
सुधा मूर्ति जीवनी Sudha Murty biography in hindi

Sudha Murty – an Indian educator, author and philanthropist / सुधा मूर्ति

सुधा मूर्ति जीवनी Sudha Murty biography in hindi – “डर” एक ऐसा एहसास है जो जीवन में कभी ना कभी तो जरूर होता है। अंधेरे का डर, हारने का डर, ऊंचाई का डर, लोग क्या कहेंगे इस बात का डर, भीड़ से अलग चलने का डर और कुछ नया करने का डर। जब हम कुछ नया करते हैं तो हमें अपने रास्ते पर अकेला ही चलना होता है और अपने रास्ते पर अकेले चलने के लिए बिना किसी सहारे के, अपनी मुश्किलें हल करने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए। जो शायद हर किसी में नहीं होती। लेकिन यह कहावत “डर के आगे जीत” है यहां, सही साबित होती नजर आई।

सुधा मूर्ति एक ऐसी लड़की है जिसने “लोग क्या कहेंगे” उसकी परवाह ना कर के अपने रास्ते पर अकेले चलने की हिम्मत की और यह आगे चलकर भारतीय महिला शक्ति की एक मिसाल बनी। सुधा मूर्ति एक ऐसी ही शख्सियत हैं जिन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेज में एक मात्र अकेली लड़की होते हुए, इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी।

दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो महान सामाजिक कार्य करते हैं और प्रसिद्ध बन जाते हैं और हम भी उन सभी के प्रयासों की प्रशंसा करते हैं, लेकिन कुछ व्यक्तित्व ऐसे भी होते हैं जो महान सामाजिक कार्य करते तो हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें मान्यता प्राप्त नहीं होती है और वह पर्दे के पीछे छुप जाते हैं। उन्हीं में से एक” सुधा मूर्ति” प्रसिद्ध भारतीय लेखिका है। यह “इंफोसिस” फाउंडेशन की चेयरपर्सन भी है जो कि एक non-profit organization है।

सुधा मूर्ति का जन्म 19 अगस्त 1950 को “शेगाव हवेरी” कर्नाटक में हुआ था। उनके पिता “डॉ आर एस कुलकर्णी” एक डॉक्टर थे और उनकी मां विमला कुलकर्णी एक शिक्षिका थी। सुधा मूर्ति ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई “BVB कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी हुबली” से B.E की। वह कर्नाटक में पहले स्थान पर रही, जिसके लिए उन्होंने, कर्नाटक के मुख्यमंत्री से “स्वर्ण पदक” प्राप्त किया। उन्होंने 1974 में “भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु” से कंप्यूटर विज्ञान से “एमटेक” की डिग्री ली और अपनी कक्षा में प्रथम स्थान पर रही। उन्होंने “इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियर” से स्वर्ण पदक प्राप्त किया उन्होंने “टेल्को” कंपनी मे नौकरी के लिए विज्ञापन देखा, जिसके फुटनोट में लिखा था कि “महिला उम्मीदवार इसमें अप्लाई ना करें” वह इस बात को सहन नहीं कर पाई और उन्होंने कंपनी में लिंग भेदभाव के बारे में “जेआरडी टाटा” को एक पत्र लिखा। जल्द ही उन्हें इंटरव्यू के लिए एक फोन आया और उन्हें नौकरी के लिए चुना गया।

सुधा मूर्ति ऐसी पहली महिला इंजीनियर बनी, जिसने भारत की सबसे बड़ी ऑटो निर्माता कंपनी “टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कंपनी” (TELCO) में काम किया और तभी वह नारायण मूर्ति से मिली और उन्होंने नारायण मूर्ति से 10 फरवरी 1978 को विवाह कर लिया। उनके दो बच्चे अक्षिता और रोहन हैं । उनकी पुत्री अक्षिता ने ब्रिटेन के “ऋषि सुनाक” से शादी की। जोकि फाइनेंस मिनिस्टर है और उनके बेटे रोहन मूर्ति”मूर्ति क्लासिकल लाइब्रेरी” के संस्थापक हैं।

1996 में लोगों की मदद करने के उद्देश्य से सुधा और उनके दोस्तों ने एक non-profit orgnization की, स्थापना की जिसका नाम “इंफोसिस फाउंडेशन” है था। उसका मिशन ग्रामीण विकास में सहायता प्रदान करना, स्वास्थ्य की देखभाल, कला और संस्कृति को आगे बढ़ाना है। सुधा के इंफोसिस फाउंडेशन ने बाढ़ प्रभावित इलाकों में 2300 से अधिक घर और इससे अधिक भारत में स्कूलों के लिए 70,000 पुस्तकालय के निर्माण में मदद की। उनके “एनपीओ” ने बेंगलुरु के ग्रामीण क्षेत्रों में 10,000 से अधिक शौचालय के निर्माण में भी मदद की। यह “non-profit organization” इंफोसिस द्वारा फाउंडेड स्थापित की गई है।

सुधा मूर्ति किताबों की भी शौकीन है वह भारत की प्रसिद्ध लेखिकाओं में से एक है। उन्होंने अंग्रेजी और कन्नड़ भाषा में कई किताबें लिखी। जो आम तौर पर उनके वास्तविक जीवन की अनुभव के आधार पर हैं उनकी कुछ किताबें हैं- How I Taught My Grandmother To Read, The Accolades Galore, DollarBahu, Three Thousand Stitches.

अपने जीवन काल में सुधा मूर्ति ने कहीं पुरस्कार प्राप्त किए हैं जैसे 995 में उन्होंने “रोटरी क्लब ऑफ कर्नाटक” से “श्रेष्ठ टीचर पुरस्कार” प्राप्त किया। 2006 में साहित्य के लिए “आर के नारायण” अवार्ड प्राप्त किया। उन्होंने भारत के चौथे सबसे बड़े सिविलियन अवार्ड “पदम श्री” भी प्राप्त किया। उन्होंने ऐसे और भी अनेक पुरस्कार प्राप्त किए।

सुधा मूर्ति हमारे समाज के लिए एक आदर्श है। उन्होंने हमें सिखाया है कि मानवता और नैतिक मूल्य अनमोल है, जो पैसे से नहीं खरीदे जा सकते। सब कुछ होने के बावजूद भी सुधा एक बहुत ही साधारण सा जीवन जीना पसंद करती हैं। वह साल में तीन बार “राघवेंद्र स्वामी मंदिर” में अपनी सेवाएं प्रदान करती हैं। जिसके दौरान वह स्वयं ही सड़क पर बैठी सब्जी बेचने वालों से सब्जी खरीदती है। मंदिर के रसोईघर की साफ सफाई करती हैं, सब्जी भी काटती है और बर्तन भी धोती हैं। यह सब काम स्वयं करना उनकी महानता को दर्शाता है। हम सब को उनसे सीख लेनी चाहिए।