तात्या टोपे जीवनी Tantia Tope biography in hindi – 1857 की क्रांति के संग्राम मे “नाना साहिब” के नाम के साथ “तात्या टोपे” का नाम हमेशा लिया जाता है। तात्या टोपे ने अपनी रणनीति और युद्ध कौशल से अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था।
तात्या के “पतले” होने के कारण, उनके छोटे भाई उन्हें “तात्या” कहकर बुलाते थे। इस कारण उनका नाम “तात्या” पड़ गया। “टोपे” का मतलब होता है एक सिपाही जो सेना की अगुवाई करता है। इस तरह इनका नाम “तात्या टोपे” पड़ा। इसके अलावा इन को “तात्या टोपे” के नाम से भी बुलाया जाता है।
तात्या टोपे का जन्म, कट्टर मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जब वह छोटे थे तब उनके पिता, बाजीराव द्वितीय के दरबार में नौकरी करने लगे इसलिए तात्या टोपे भी अपने परिवार के साथ “बिठूर” आ गए। बिठूर में वह बाजीराव के दत्तक पुत्र नानासाहेब के संपर्क में आए। इस तरह नानासाहेब और तात्या टोपे बचपन से ही दोस्तों के समान रहे थे और कालांतर में तात्या टोपे की पहचान नाना साहिब के दाहिने हाथ के जैसी बन गई थी। तात्या टोपे ने शास्त्रों की शिक्षा नानासाहेब और लक्ष्मीबाई के साथ ली थी। वह बचपन से ही वीर थे। एक बार धनु विद्या की एक परीक्षा में तीनों को और अन्य शाही बच्चों को 5 तीर दिए गए, जिनमें से बाबा साहेब ने दो बार, नाना साहेब ने तीन बार, लक्ष्मीबाई ने चार बार, जबकि तात्या टोपे ने पांचो बार निशाना साधा ।
1857 की क्रांति में योगदान देने वाले तात्या टोपे, अपने दोस्त और बिठूर के पेशवा नानासाहेब के अधिकार छीन जाने के कारण अंग्रेजों से नाराज थे। 1851 में लॉर्ड डलहौजी ने “डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप” की नीति लागू करते हुए देश के विभिन्न प्रांतों को हड़पना शुरू कर दिया था। इस नीति के अनुसार भारतीय शासक, दत्तक पुत्र को उस राज्य का उत्तराधिकारी ना मानकर, वहां पर अंग्रेजों का शासन शुरू करने का आदेश दिया। नानासाहेब, बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे इसलिए यह नियम उन पर लागू करने की कोशिश की गई। इसके बाद अंग्रेजों ने नाना साहिब की पेंशन भी बंद कर दी थी। ऐसे में नाना साहिब और तात्या टोपे अंग्रेजों की चालाकी को समझ रहे थे और दोनों ने इस अपमान का प्रतिशोध लेने का विचार किया।
इसी दौरान अंग्रेजों के खिलाफ सैन्य विद्रोह हो गया और इस जोड़ी को अंग्रेजों से युद्ध का सही मौका मिल गया। तात्या टोपे ने नाना साहेब के साथ मिलकर एक सेना तैयार की जिसमें विद्रोही सैनिक भी शामिल थी। 4 जून 1857 को नाना साहिब ने, कानपुर जीत कर खुद को वहां का “पेशवा” घोषित किया तो तात्या टोपे को नाना साहेब का “सेनापति” नियुक्त किया गया। नाना साहिब की सेना ने तात्या टोपे के नेतृत्व में सबसे पहले कानपुर जीता था। जहां पर उन्होंने लगभग 20 दिन तक अंग्रेजों को बंदी बनाकर रखा था जिसके बाद सतीचौरा और बीवी गढ़ का नरसंहार भी हुआ था।
कानपुर के दूसरे युद्ध में अंग्रेजो से हारने के बाद तात्या टोपे और नानासाहेब कानपुर छोड़ कर चले गए। जिसमें नानासाहेब, मुख्यधारा से गायब हो गए लेकिन तात्या टोपे ने अंग्रेजों के साथ अपना संघर्ष जारी रखा था। उन्होंने “कालपी के युद्ध” में झांसी की रानी की मदद की। नवंबर 1857 को उन्होंने ग्वालियर में विद्रोहियों की सेना एकत्र की और कानपुर को वापस जीतने का असफल प्रयास किया। ग्वालियर में उन्होंने नानासाहेब को पेशवा घोषित किया। अंग्रेजों ने जल्द ही उनसे ग्वालियर भी छीन लिया। ग्वालियर में उन्हें एक पूर्व सरदार मान सिंह ने धोखा दिया था, उसने जागीर के लालच में अंग्रेजों से हाथ मिला लिया। हालांकि तात्या टोपे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से उम्र में लगभग 14 से 15 वर्ष बड़े थे लेकिन इन दोनों की परवरिश एक ही परिवेश में हुई थी इसलिए तात्या का लक्ष्मीबाई के साथ बहन जैसा संबंध था।
झांसी पर ब्रिटिश का आक्रमण होने पर लक्ष्मीबाई ने तात्या टोपे से सहायता मांगी, तब टोपे ने 15000 सैनिकों की टुकड़ी झांसी भेजी। तात्या टोपे ने कानपुर से निकलकर कालपी का युद्ध किया जिसमें उनका सहयोग देने, रानी लक्ष्मीबाई भी पहुंच चुकी थी। वास्तव में टोपे कानपुर से निकल कर बेतवा, कुंज और कालपी से होते हुए ग्वालियर तक पहुंचे थे। लेकिन इससे पहले कि वहां पर स्थिर हो पाते वह “जनरल रोर” से हार गए और इस युद्ध में ही लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुई हो गई।
वीर शिवाजी के राज्य में जन्मे तात्या टोपे ने, उनकी गोरिल्ला युद्ध नीति को अपनाते हुए अंग्रेजों का सामना किया था। गोरिल्ला युद्ध को “छापेमारी का युद्ध” कहा जाता है। जिसमें छुपकर अचानक से दुश्मन पर प्रहार किया जाता है, जब दुश्मन युद्ध के लिए तैयार ना हो और आक्रमणकारी युद्ध के तुरंत बाद वहां से निकलकर अदृश्य हो जाते हैं। दुश्मन वापस संभले, तब तक अचानक से वापिस सामने आ जाओ। पहाड़ियों के आसपास इस युद्ध नीति को आसानी से अपनाया जा सकता है। इस मे तात्या टोपे ने विंध्या की खाई से लेकर अरावली पर्वत श्रंखला तक अंग्रेजों से गोरिल्ला पद्धति से वार किया था और अंग्रेज तात्या टोपे का जंगल पहाड़ियों और घाटियों में 28 किलोमीटर तक पीछा करने के बाद भी उन्हें पकड़ नहीं पाए थे।
ग्वालियर में मिली हार के बाद भी, तात्या टोपे कई छोटे-बड़े राजाओं को इकट्ठा करके अंग्रेजों से गोरिल्ला युद्ध करते रहे। उन्होंने सांगानेर के पास, बनास नदी के पास और छोटा उदयपुर पर अन्य कई जगहों पर भी अंग्रेजों से कई युद्ध किए। वह हारते, उनकी सेना बिखरती और तात्या टोपे जल्द ही अपनी सेना खड़ी कर लेते थे। इस तरह उत्तर और मध्य भारत में अंग्रेजों ने 1857 की क्रांति को लगभग हर तरह से काबू में कर लिया था। लेकिन तात्या टोपे तक पहुंचने और उन्हें पकड़ना अंग्रेजों के लिए आसान नहीं था। अगले 2 वर्षों तक तात्या टोपे ऐसे ही अंग्रेजों को परेशान करते रहे।
तात्या टोपे को मान सिंह से मिले धोखे के कारण जनरल नेपियर से हार मिली और ब्रिटिश आर्मी ने उन्हें 7 अप्रैल 1859 को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के बाद टोपे ने क्रांति में अपनी भूमिका को माना और कहा कि उन्हें कोई दुख नहीं है। उन्होंने जो भी किया वह मातृभूमि के लिए किया। शिवपुरी में उन्हें 1859 को फांसी पर चढ़ा दिया गया था।
तात्या टोपे ने अपने जीवन काल में अंग्रेजों से डेढ़ सौ युद्ध किए थे जिसमें उन्होंने 10,000 अंग्रेज सैनिकों को मारा था। 2007 में तात्या टोपे के पोते की दो बेटियां तृप्ति और प्रगति को “कंटेनर ऑफ कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड” में रेलवे मंत्रालय की नौकरी दे दी थी।
तात्या टोपे को जब शिवपुरी में बंदी बना लिया गया तब उन्होंने एक औपचारिक स्टेटमेंट अंग्रेजों को दिया था। जिसके अनुसार नानासाहेब ने कहा था कि उनका सतीचौरा और बीबीगड़ नरसंहार में कोई योगदान नहीं था। इस के अलावा भी कई रोचक और रहस्यमई खुलासे स्टेटमेंट में किए गए थे। कानपुर में तात्या टोपे का स्मारक बना हुआ है। इसी शहर में एक जगह का नाम भी तात्या टोपे के नाम पर है जिसे “तात्या टोपे नगर” कहा जाता है। शिवपुरी में भी उनका स्मारक बना हुआ है। कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल म्यूजियम में तात्या टोपे का “अचकन” प्रदर्शनी में लगा हुआ है, गोल्डन जरी और लाल बॉर्डर के इस अचकन को इन्होंने 1857 की युद्ध में पहना था। 2016 में राज्य के कल्चर एंड टूरिज्म एवं सिविल एविएशन मंत्री ने ₹200 का इस स्मरणीय सिक्का और ₹10 का सरकुलेशन सिक्का जारी किया।
तात्या टोपे के बारे में यह कहा जाता है गोरिल्ला युद्ध में अंग्रेजो को छकाने और पकाने वाला शेर था ।