दिलीप कुमार जीवनी – Dilip Kumar biography in hindi – हिंदी सिनेमा के इतिहास में कई बेहतरीन कलाकार आए और चले गए। परंतु दिलीप कुमार जैसे एक कलाकार ऐसे भी आए जिन्होंने फिल्म इंडस्ट्री का चेहरा बदल दिया। दिलीप कुमार की अदाकारी से अभिनय की नई परिभाषा का जन्म हुआ। इस महान शख्सियत ने यह साबित कर दिया की “सुपरस्टार” भी किसी को कहा जा सकता है।
“दादासाहेब फालके अवॉर्ड” के विजेता दिलीप कुमार उर्फ युसूफ खान का जन्म 11 दिसंबर 1922 को पेशावर में हुआ जो कि आज पाकिस्तान का हिस्सा है। हिंदी सिनेमा के शोमैन राज कपूर और दिलीप साहब बचपन के दोस्त थे और दोनों ने एक ही स्कूल में पढ़ाई भी की थी। दिलीप कुमार की 17 साल की छोटी सी उम्र में में पिताजी के साथ लड़ाई हुई और वह पुणे आ गए। पुणे आने के बाद उन्होंने एक कैंटीन के बाहर सैंडविच स्टॉल लगाया और पैसे कमाना शुरू कर दिया। जब उन्होंने यह काम शुरू किया तब किसी को बताया नहीं कि वह अमीर घराने से आए हैं।
उस वक्त की महान हीरोइन और मुंबई टॉकीज की मालकिन “देविका रानी” की नजर दिलीप कुमार पर पड़ी। दिलीप साहब की उर्दू और इंग्लिश की समझ देखकर देविका रानी ने उन्हें बांबे टॉकीज में स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर रखा। देविका रानी के कहने पर उन्होंने 1944 की फिल्म “ज्वार भाटा” में पहली बार एक्टिव की। दिलीप कुमार का असली नाम “युसूफ खान” है लेकिन देविका रानी की सलाह पर उन्होंने अपना नाम युसूफ खान से बदलकर “दिलीप कुमार” कर लिया था । एक वक्त ऐसा भी आया था जब दिलीप कुमार को हॉलीवुड की फिल्म ऑफर हुई थी और दिलीप साहब ने उस फिल्म में काम करने से मना कर दिया। उस फिल्म का नाम “Lawrence of Arebia” था। इसी फिल्म को 1963 में सबसे ज्यादा ऑस्कर अवार्ड भी मिले थे।
भारत में फिल्म फेयर अवार्ड की शुरुआत 1956 में हुई। दिलीप कुमार पहले हीरो थे जिन्हें पहली बार “फिल्म फेयर बेस्ट एक्टर” का अवार्ड दिया गया। यह अवार्ड उन्हें 1952 की सुपरहिट फिल्म “दाग” के लिए मिला। दिलीप कुमार ने सात बार “फिल्म फेयर बेस्ट एक्टर” अवार्ड हासिल किया। यह रिकॉर्ड महानायक अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान से भी नहीं टूटा है।
50 के दशक में दिलीप कुमार अकेले ऐसे हीरो थे जो सबसे ज्यादा फीस लेते थे। बताया जाता है कि वह करीब करीब ₹100000 लेते थे। अगर इन ₹100000 की तुलना आज की जाए तो 50 करोड़ देने वाले एक्टिंग के भगवान यानी कि रजनीकांत से तुलना हो सकती है। 50 के दौर में उन्हें “ट्रेजडी किंग” कहा जाने लगा। दिलीप कुमार अशोक कुमार को अपना गुरु मानते थे। जब ऑल इंडिया सुपर स्टार राजेश खन्ना की एंट्री फिल्मों में हुई तब दिलीप साहब की फिल्में फ्लॉप होने लगी थी। इसलिए उन्हें पांच सालों तक कोई काम नहीं किया।
1981 हो जब उन्होंने फिल्मों में दोबारा एंट्री ली तो सिर्फ करेक्टर रोल ही किए थे जिसमें उनकी प्रमुख फिल्में क्रांति, शक्ति, मशाल, धर्म अधिकारी, कानून अपना अपना, सौदागर, किला आदि थी। इन फिल्मों में दिलीप कुमार ने करैक्टर रोल निभाया।
1960 की ऐतिहासिक फिल्म “मुग़ल-ए-आज़म” दिलीप कुमार की आज तक की सबसे ज्यादा कमाने वाली फिल्म है। दिलीप साहब ने एक भारतीय हीरो के रूप में सबसे ज्यादा अवार्ड जीतने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। 1967 की फिल्म “राम और श्याम” में दोहरा किरदार निभाते हुए दिलीप कुमार ने इतिहास बदल दिया।
दिलीप साहब का पहला प्यार “मधुबाला” थी। इन दोनों की लव स्टोरी 7 साल तक चली। लेकिन फिर एक समय ऐसा भी आया जब सेट पर दोनों साथ होते हुए भी आपस में बात नहीं किया करते थे। मुग़ल-ए-आज़म की शूटिंग के वक्त डायरेक्टर “के आसिफ” दोनों को बहुत समझाते थे परंतु दोनों ने एक साथ ना रहने का फैसला ले लिया था। इस फिल्म में जो सबसे रोमांटिक सीन है वह इसी हालात में शूट हुआ था।
मधुबाला से अलग होने के बाद दिलीप साहब की जिंदगी में “सायरा बानो” आई। 1966 में उन्होंने शादी कर ली। उस वक्त सायरा बानो की उम्र 22 साल की थी और दिलीप साहब 44 साल के थे। कहा जाता है कि 1981में दिलीप साहब ने इसलिए दूसरी शादी कर ली क्योंकि उन्हें सायरा से बच्चा नसीब नहीं हुआ। दूसरी शादी करने के बाद भी उन्हें बच्चे का सुख प्राप्त ना हो सका। दिलीप साहब दो साल बाद वापस सायरा बानो के पास आ गए। दिलीप साहब की इस एक गलती को सायरा बानो ने माफ कर दिया और आज भी दोनों एक साथ जिंदगी गुजार रहे हैं।
फिल्म इंडस्ट्री को महत्वपूर्ण योगदान देने वाले दिलीप साहब को भारत सरकार ने 1991 में “पद्मश्री” से सम्मानित किया और 2015 में पद्म विभूषण से नवाजा गया। आठ बार फिल्म फेयर अवार्ड जीतने वाले दिलीप साहब को फिल्म फेयर द्वारा 1993 में “लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड” से भी नवाजा गया। उसके बाद 1994 में उन्हें “दादा साहेब फाल्के अवार्ड” मिला जिसने दिलीप साहब पर चार चांद लगा दिए। “दादा साहेब फाल्के अवार्ड” फिल्म इंडस्ट्री का सबसे बड़ा अवार्ड माना जाता है और इसी साल पाकिस्तान ने अपने देश का सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार “निशाने इम्तियाज” से दिलीप साहब को सम्मानित किया।
2000 से 2006 के बीच दिलीप साहब मेंबर ऑफ पार्लियामेंट भी रहे हैं। दिलीप कुमार अपनी पत्नी सायरा बानो के साथ मुंबई में चैन की जिंदगी जी रहे हैं। एक्टिंग की दुनिया में अपना पहला कदम 1944 की फिल्म “ज्वार भाटा” से रखने वाले दिलीप साहब की आखिरी फिल्म “किला” थी जो कि 1988 में रिलीज हुई थी। दिलीप साहब वह अभिनेता है जिन्हें फिल्म इंडस्ट्री आज भी याद करती है और आगे भी याद करती रहेगी।