द्रौपदी मुर्मू जीवनी Droupadi Murmu biography in hindi – द्रौपदी मुर्मू भारत की 15वीं राष्ट्रपति बनी। इन्होंने संवैधानिक पद के लिए विपक्ष के नेता यशवंत सिन्हा को हराकर जीत हासिल की। द्रौपदी मुर्मू जब झारखंड की राज्यपाल थी तब वह एक बार राष्ट्रपति कोविंद जी से मिलने “राष्ट्रपति भवन” गई थी तब उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि वह भारत की अगली राष्ट्रपति चुनी जाएंगी ।
जब दुबल मुर्मू छोटी थी, तो इनके पिता और दादा गांव के ग्राम प्रधान थे। 1997 में राजनीति में आने से पहले द्रौपदी मुर्मू “श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन रिसर्च सेंटर” मे प्रोफेसर थी। 1979 इन्होंने उड़ीसा मे सहायक विभाग के रूप में भी काम किया है। कुछ वर्षों तक सरकारी नौकरी करने के बाद इन्होंने अपने बच्चों की देखभाल के लिए 1983 में सरकारी नौकरी छोड़ दी थी। 2003 में इन्होंने अपने गांव में एक पुल बनवाया ताकि उनके गांव के लोग आसानी से आवागमन कर सकें
मुर्मू जी का जन्म 20 जन 1958 के को उड़ीसा के जिले “मयूरभंज” के गरीब आदिवासी परिवार में हुआ था। द्रौपदी मुर्मू उड़ीसा के अनुसूचित जनजाति “संथाल” जनजाति से बिलॉन्ग करती हैं। उनके परिवार में अनेक समस्याएं थी। परिवार गरीबी में जी रहा था। उनके पिताजी का नाम “बिरंचि नारायण टू डू” था जोकि एक किसान थे। इन्होंने बहुत अभाव में अपना बचपन बिताया, लेकिन अपनी गरीबी को कभी भी अपनी मेहनत के आड़े नहीं आने दिया। द्रौपदी मुर्मू जी ने अपने जनपद मे ही शुरुआती शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद भुवनेश्वर के “रामा देवी महिला महाविद्यालय” से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा देने के लिए यह अध्यापिका बन गई और शिक्षक के तौर पर इन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत की।
इनके पति का नाम “श्याम चरण मुर्मू” था। वह एक बैंक अधिकारी थे लेकिन 2014 में इनका निधन हो गया।
यह सब चलते हुए जिंदगी से तंग आ चुकी थी लेकिन यह कभी हार नहीं मानी। पति की मौत के एक साल बाद ही झारखंड की नवमी राज्यपाल बनी। द्रौपदी मुरमू ने राज्यपाल बनने के एक साल बाद ही यह घोषणा की कि इनकी मृत्यु के बाद इनकी आंखें दान कर दी जाए
इनके दो बेटे थे एक काम लक्ष्मण मुरमू था इनका निधन 2009 में हो गया। पर दूसरे की मृत्यु 2013 में हो गई। इनकी एक पुत्री भी है इसका नाम “इतिश्री मुर्मू” है। वह भी एक बैंक कर्मचारी हैं। दुखों से टूटी हुई द्रौपदी मुर्मू ने अध्यात्म का सहारा लिया। वह राजस्थान के “माउंट आबू” में “ब्रह्मकुमारी संस्थान” में जाने लगी। तनाव कम करने के लिए कई कई दिनों तक ध्यान करने लगी उन्होंने राजयोग भी सीखा और वहां के अलग-अलग कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगी।
अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के साथ की थी। 1997 में उनको “रायरंगपुर पंचायत “से भारी जीत मिली और उन्होंने “पार्षद” का पद संभाला। इसके बाद उनकी पार्टी ने उन्हें जनजाति मोर्चा का वाइस प्रेसिडेंट बना दिया। मुर्मू 2000 से 2002 तक उड़ीसा की मंत्री बनी। 2015 से 2021 के लिए उन्हें झारखंड का राज्यपाल चुन लिया गया और 2022 में भारत की पहली “आदिवासी महिला राष्ट्रपति” चुनी जा चुकी है।
झारखंड की राज्यपाल चुने जाने के बाद द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड राज्य में पक्ष व विपक्ष दोनों नेताओं की बात सुनी। उनके कार्यकाल में राज्य भवन का द्वार हर संगठन के व्यक्ति के लिए खुला रहता था। उन्होंने बीजेपी की पुरानी सरकार और झारखंड की नई सरकार, दोनों ही सरकारों को कई सारी नसीहत दी।
एक बार बीजेपी की पुरानी सरकार, आदिवासियों के हितों को सुरक्षित करने वाले, 2 कानूनों में संशोधन की कोशिश कर रही थी। विपक्षी पार्टियों ने हंगामा किया। इसके बावजूद 21 नवंबर 2016 को बिल पारित करवा दिया गया । इस बिल पर 7 महीने तक विचार करने के बाद उन्होंने इस बिल को वापस लौटा दिया और कहा आप इस पर पुनर्विचार कीजिए। उन्होंने राज नहीं बल्कि राज धर्म निभाया।
21 जुलाई 2022 को द्रोपदी मुर्मू भारत के 15 वे राष्ट्रपति के रूप में चुनी गई। इन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में, विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को हराकर जीत हासिल की। इनकी जीत पर प्रधान नरेंद्र मोदी ने भी इन्हें बधाई दी।