पद्मावती जीवनी Rani Padmini biography in hindi – “पद्मिनी रानी पद्मावती” इतिहास के पन्नों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 12वीं और 13वीं सदी में दिल्ली के सिंहासन पर, दिल्ली सल्तनत का राज था। सुल्तान ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए कई बार मेवाड़ पर आक्रमण किया। इन आक्रमणों में से एक आक्रमण, अलाउद्दीन खिलजी ने, बेहद सुंदर रानी पद्मिनी पद्मावती को, पाने के लिए किया था। यह कहानी अलाउद्दीन के इतिहासकारों ने किताबों में लिखी है, ताकि वह राजपूत प्रदेशों पर आक्रमण को सिद्ध कर सके। कुछ इतिहासकार इस कहानी को गलत बताते हैं उनका कहना है कि यह कहानी मुस्लिम सूत्रों ने, राजपूत शौर्य को उत्तेजित करने के लिए लिखी थी।
रानी पद्मिनी के पिता का नाम गंधर्व सेन और माता का नाम “चंपावती” था। रानी पदमाती के पिता “गंधर्व सेन” सिंगल प्रांत के राजा थे। बचपन में पद्मनी के पास “हीरामणि” नाम का बोलता तोता था जिसके साथ उन्होंने अपना अधिकतर समय बिताया था। रानी पद्मिनी बचपन से ही बहुत सुंदर थी और बड़ी होने पर उसके पिता ने उसका स्वयंवर आयोजित किया। इस स्वयंवर में उन्होंने सभी हिंदू राजाओं और राजपूतों को बुलाया। एक छोटे प्रदेश का राजा “मलखान सिंह” भी उस स्वयंवर में आया था। राजा रावल रतन सिंह जी पहले से ही अपनी एक पत्नी नागमती होने के बावजूद स्वयंवर में आए थे। प्राचीन समय में राजा एक से अधिक विवाह करते थे ताकि वंश को अधिक उत्तराधिकारी मिले। राजा रावल रतन सिंह ने, मलखान सिंह को स्वयंवर में हराकर पद्मिनी से विवाह कर लिया। विवाह के बाद वह अपनी दूसरी पत्नी पद्मिनी के साथ वापस चित्तौड़ लौट आए ।
उस समय चित्तौड़ पर राजपूत राजा रावल रतन सिंह का राज था। एक अच्छे शासक और पति होने के अलावा रतन सिंह कला के संरक्षक भी थे। उनके दरबार में कई प्रतिभाशाली लोग थे जिनमें से “राघव चेतन” संगीतकार भी एक था। राघव चेतन के बारे में लोगों को यह पता नहीं था कि वह एक जादूगर भी है। वह अपनी इस पूरी प्रतिभा का उपयोग दुश्मन को मार गिराने में उपयोग करता था एक दिन राघव चेतन का बुरी आत्माओं को बुलाने का कृत्य रंगे हाथों पकड़ा जाता है। इस बात का पता चलते ही रावल रतन सिंह ने उग्र होकर राघव चेतन का मुंह काला करवा कर और गधे पर बिठाकर अपने राज्य से निर्वासित कर दिया। रतन सिंह की इस कठोर सजा के कारण राघव चेतन उसका दुश्मन बन गया।
अपने अपमान से नाराज होकर राघव चेतन दिल्ली चला गया। जहां पर वह दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को चित्तौड़ पर आक्रमण करने के लिए, उकसाने का लक्ष्य लेकर गया। दिल्ली पहुंचने पर राघव चेतन दिल्ली के पास एक जंगल में रुक गया, जहां पर सुल्तान अक्सर शिकार के लिए आया करते थे। एक दिन जब उसको पता चला है कि सुल्तान का शिकार दल जंगल में प्रवेश कर रहा है तो राघव चेतन ने अपनी बांसुरी से मधुर स्वर निकालना शुरू कर दिया। जब राघव चेतन की बांसुरी में मधुर स्वर सुल्तान की शिकार दल तक पहुंची तो सभी इस विचार में पड़ गए इस घने जंगल में इतनी मधुर बांसुरी कौन बजा सकता है? सुल्तान ने अपने सैनिकों को बांसुरी वादक को ढूंढ कर लाने को कहा। जब राघव चेतन को उसके सैनिकों ने अलाउद्दीन खिलजी के समक्ष प्रस्तुत किया तो सुल्तान ने उसकी प्रशंसा करते हुए उसे अपने दरबार में आने को कहा। चालाक राघव चेतन ने उसी समय राजा से पूछा कि आप मुझ जैसे साधारण संगीतकार को क्यों बुलाना चाहते हैं, जबकि आपके पास कई सुंदर वस्तुएं हैं। राघव चेतन की बात ना समझते हुए खिलजी ने साफ-साफ बात बताने को कहा। राघव चेतन ने सुल्तान को रानी पद्मिनी की सुंदरता का बयान किया जिसे सुनकर खिलजी की वासना जाग उठी। अपनी राजधानी पहुंचने के तुरंत बाद उसने अपनी सेना को चित्तौड़ पर आक्रमण करने को कहा क्योंकि उसका सपना सुंदरी को अपने हरम में रखना था।
चित्तौड़ पहुंचने के बाद अलाउद्दीन को चित्तौड़ का किला दिखा। उस प्रसिद्ध सुंदरी पद्मावती की एक झलक पाने के लिए सुल्तान बेताब हो गया और उसने राजा रतन सिंह को यह कह कर संदेश भेजा कि वह रानी पद्मिनी को अपनी बहन समान मानता है और उससे मिलना चाहता है। सुल्तान की बात सुनते ही रतन सिंह उसके क्रोध से बचने और अपना राज्य बचाने के लिए उसकी बात से सहमत हो गए। रानी पद्मिनी अलाउद्दीन को, कांच में अपना चेहरा दिखाने के लिए राज़ी हो गई। जब अलाउद्दीन को यह खबर पता चली कि रानी पद्मिनी उससे मिलने को तैयार हो गई है वह अपने चुनिंदा योद्धाओं के साथ सावधानी से किले में प्रवेश कर गया। रानी पद्मिनी के सुंदर चेहरे को कांच के प्रतिबिंब में जब अलाउद्दीन खिलजी ने देखा तो उसने सोच लिया की रानी पद्मिनी को अपनी बनाकर रहेगा। वापस अपने शिविर में लौटते वक्त अलाउद्दीन कुछ समय के लिए रतन सिंह के साथ चल रहा था। खिलजी ने मौका देखकर रतन सिंह को बंदी बना लिया और पद्मिनी की मांग करने लगा।
चौहान राजपूत सेनापति गोरा और बादल ने सुल्तान को हराने के लिए एक चाल चलते हुए, खिलजी को संदेशा भेजा कि अगली सुबह पद्मिनी को सुल्तान को सौंप दिया जाएगा। अगले दिन सुबह भोर होते ही 150 पालकिया किले से, खिलजी के शिविर की तरफ रवाना हो गई। पालकिया वहां रुक गई, जहां पर रतन सिंह को बंदी बना रखा था। पालकिया को देखकर रतन सिंह ने सोचा कि यह पालकिया किले से आई है और उनके साथ रानी भी यहां आई होंगी। वह अपने आप को बहुत अपमानित समझने लगे। उन पालकिया में ना ही उनकी रानी और ना ही दासिया थी। अचानक से उसमें से पूरी तरह से सशस्त्र सैनिक निकले और रतन सिंह को छुड़ा दिया और खिलजी के अस्तबल से घोड़े चुराकर तेजी से घोड़े पर किले की तरफ भाग गए। बादल ने रतन सिंह को सुरक्षित जिले में पहुंचा दिया। जब सुल्तान को पता चला है कि उसकी योजना नाकाम हो गई तो सुल्तान ने गुस्से में आकर अपनी सेना को चित्तौड़ पर आक्रमण करने का आदेश दिया। सुल्तान के सेना ने किले में प्रवेश करने की कड़ी कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। खिलजी के किले की घेराबंदी करने का निर्णय किया। यह किलाबंदी इतनी कड़ी थी कि किले में खाद्य अपूर्ति धीरे-धीरे समाप्त हो गए अंत में रतन सिंह ने द्वार खोलने का आदेश दिया और उसके सैनिकों से लड़ते हुए रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए।
यह सूचना सुनकर रानी पद्मिनी ने सोचा कि अब सुल्तान की सेना चित्तौड़ के सभी पुरुषों को मार देगी। चित्तौड़ की औरतों के पास दो विकल्प थे। या तो वह जौहर के लिए तैयार हो जाए या विजय सेना के समक्ष अपना अपमान सहने को तैयार हो जाए।
सभी महिलाओ का पक्ष जौहर की तरफ ही था। एक विशाल चिता जलाई गई और रानी पद्मिनी के बाद चित्तौड़ की सारी औरतें उसमें कूद गई। इस प्रकार दुश्मन बाहर खड़े देखते रह गए। अपनी महिलाओं की मौत के बाद, चित्तौड़ के पुरुष के जीवन में कुछ नहीं बचा था। चित्तौड़ के सभी पुरुषों में “शाखा प्रदर्शन” करने का प्रण लिया। जिसमें प्रत्येक सैनिक केसरी वस्त्र और पगड़ी पहन कर दुश्मन सेना से तब तक लड़े, जब तक कि वह सभी खत्म नहीं हो गए। विजय सेना ने जब किले में प्रवेश किया तो उनका राख और जली हुई हड्डियों के साथ सामना हुआ। जिन महिलाओं ने जौहर किया उनकी याद आज भी लोकगीतों में जीवित है, जिसमें उनके गौरवान्वित कार्य का बयान किया जाता है।