प्लेटो जीवनी Plato Philosopher biography in hindi – कुछ लोग दुनिया में आते हैं और अपनी ऐसे छाप छोड़ जाते हैं कि वह हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं। उनकी कही बातें और शब्द हमेशा दुनिया में जिंदा रहती है। आने वाली तमाम पीढ़ियां उन बातों को समझती और सिखती है। ऐसी ही एक शख्सियत ग्रीक के महान दार्शनिक “प्लेटो” है। ग्रीक के इतिहास में प्लेटो का नाम बहुत ही अदब से लिया जाता है। एक नई सोच को उजागर करने के लिए उनकी काफी सराहना की जाती है। प्लेटो ने दुनिया को ज्ञान का वह सागर दिया, जिसे उन्होंने बहुत ही लंबी तपस्या के बाद पाया था। आज भी लोग उनकी कही बातें करते हैं और उन्हें याद करते हैं।
इतिहासकारों के मुताबिक प्लेटो का जन्म “एथेंस” ग्रीस में 428 ईशा ईसा पूर्व में एक बड़े परिवार में हुआ था। वहीं कुछ विद्वानों के अनुसार प्लेटो का जन्म 424 और 423 ईसा पूर्व के बीच में माना जाता है। प्लेटो के जन्म के बारे में किसी का भी कोई एक मत नहीं है। प्लेटो के पिता का नाम “एरिसटर्न” और मां का नाम “पेरिटयानी” था कुछ इतिहासकारों के मुताबिक प्लेटो का नाम उनके दादा “अरिष्टोक्रेट” के नाम पर रखा गया था। माना जाता है कि प्राचीन ग्रीक में एक परंपरा हुआ करती थी जिसके तहत ग्रीकवासी अपने बड़े बेटे का नाम हमेशा ही उसके “दादा के नाम” पर रहते थे। दूसरी और यह भी माना जाता है कि प्लेटो का नाम उनका उपनाम था।
कहते हैं कि प्लेटों के बचपन के दिनों में ही उनके पिता की मौत हो गई थी। कुछ वक्त के बाद ही उनकी मां ने, उनके चाचा से शादी कर ली, जो एक ग्रीक राजनेता थे और उस समय के राजा फारस के राजदूत भी थे। अपने चाचा की बदौलत उन्हें समाज में एक ऊंचे दर्जे का मौका मिला। शाही राजघराने में उनका उठना बैठना होता था। इतना ही नहीं प्लेटो ने अपने समय के सबसे मशहूर विद्वानों से अपनी शिक्षा प्राप्त की थी। वह एक रईस का जीवन जीते थे।
प्लेटो ने विभिन्न विषयों जैसे दर्शनशास्त्र, साहित्य और जिमनास्टिक में अलग-अलग विद्वानों से अपनी शिक्षा प्राप्त की। उनके जीवन पर मुख्य प्रभाव “सुकरात” का ही रहा। सुकरात उस समय के एक बहुत बड़े दार्शनिक थे। सुकरात के संवाद और बहस के तरीकों ने ,प्लेटो को इतना प्रभावित किया कि वह जल्द ही उनके शिष्य बन गए। उन्होंने सुकरात से कई नई चीजें सीखी, जिन्होंने प्लेटों को बाद में माहौल बनाने में मदद किया।
एथेंस और स्पार्टा के बीच “पेलोपॉन्नेशियन का युद्ध” हुआ। इस युद्ध में प्लेटो ने 409 से 404 ईसा पूर्व तक अपनी सेवाएं दी, मगर बदकिस्मती से वह जंग हार गए। इसका परिणाम यह रहा कि स्पार्टा ने वहां पर अपना राज शुरू कर दिया। स्पार्टा राज के बाद एथेंस में लोकतंत्र खत्म कर दिया गया, जिसका असर प्लेटो पर भी पड़ा। स्पार्टन ने वहां “कुलीन तंत्र” की स्थापना की। प्लेटों के कुछ रिश्तेदार इस कुलीन तंत्र में शामिल थे। उन्होंने उस समय एथेंस के लोगों का जीवन बहुत कठिन बना दिया था। प्लेटो चाहते थे कि वह लोगों की मदद करें, मगर वह मजबूर थे। थोड़े समय बाद कुलीन तंत्र खत्म हुआ और एथेंस में लोकतंत्र की वापसी हुई। प्लेटो ने उस वक्त राजनीति में जाने का मन बनाया और अपने गुरु सुकरात के कहने पर, प्लेटो राजनीति में ना जाकर, दर्शनशास्त्र की ओर वापस लौट आए।
सुकरात के खुले विचारों के कारण उन पर युवा पीढ़ी को बिगाड़ने के आरोप लगते ही रहते थे। थोड़े समय बाद आरोपों का यह सिलसिला इतना गहरा हो गया कि सुकरात को पहले कैद कर लिया गया और फिर मौत की सजा सुना दी गई । प्लेटो पर सुकरात की मृत्यु का गहरा असर हुआ और वह उस जगह नहीं रहना चाहते थे जहां पर उनके गुरु की मौत हुई । उन्होंने सोच लिया कि वहां से दूर चले जाएंगे। इसी के साथ कुछ समय बाद वह अपनी यात्रा पर निकल गए। अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने सिएरा, इटली, सेसिली और मिस्र की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने प्रसिद्ध विद्वान “पाइथागोरस” से इटली में गणित, भूविज्ञान’ रेखागणित, भूगोल और धर्म का ज्ञान लिया। प्लेटो के गुरु भले ही उनके साथ नहीं थे, मगर उन्होंने गुरु की बताई बातें याद रखी थी। वह दुनिया के किसी भी कोने में रहे हो, मगर उन्होंने कभी भी ज्ञान अर्जित करना नहीं छोड़ा। उनके पास एक ही सपना था अपने गुरु सुकरात की तरह एक दार्शनिक बनना। यात्रा के थोड़े समय बाद ही प्लेटो ने लेखन कार्य शुरू किया।
प्लेटो की प्रमुख कृतियों में सुकरात से उन के संवाद हैं। जिसे तीन भागों में बांटा गया है इस कड़ी में सबसे पहले प्लेटो ने “अपोलोजि ऑफ सुकरात” लिखी। जिसमें उन्होंने अपने गुरु सुकरात के विचारों के बारे में लिखा और उन विचारों का विश्लेषण नेटवर्क के लेखों से किया। इससे सुकरात के जीवन की अधिकतर जानकारी प्राप्त होती है। प्लेटो ने कई विषयों पर लेख लिखे जिनमें सामान्य दर्शन और नीति शास्त्र के लेख सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुए। जिनमें प्रमुख है —–Appiah Miner, Apology, Cristo, Protagorass आदि। मध्य संवादों में इन्होंने अपने व्यक्तिगत विचारों और विश्वासों को व्यक्त किया है। अपनी किताब “सिंपोजियम” में उन्होंने प्यार की प्रकृति के बारे में लिखा है। उन्होंने अपने मशहूर किताब “द रिपब्लिक” भी इसी समय लिखी। अपने लेखन की तीसरी अवधि में प्लेटो ने विभिन्न विषयों जैसे कला, ब्रह्मांड , विज्ञान आदि को विस्तार दिया है। इस दौरान उन्होंने सुकरात से प्राप्त ज्ञान से हटकर, पदार्थ विधा में अपना ध्यान लगाया। उन्होंने अति प्राचीन पदार्थ “विधा” का गहन अध्ययन किया और मनुष्य के जीवन में कला की भूमिका के बारे में लिखा है। प्लेटो की रचनाओं में उस समय की जिंदगी को लेकर कई बातें की गई है।
कहते हैं कि प्लेटो की बातें इतनी सटीक होती थी कि पढ़ने वाले को छू जाती थी। शायद यही कारण था कि प्लेटो का नाम आज भी दार्शनिक सूची में आदर से लिया जाता है। 387 के आसपास 40 वर्षीय प्लेटो, एथेंस लौट आए और उन्होंने “प्लैटर की अकादमी” की स्थापना की। कहते हैं कि उस समय पश्चिम में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए यही एकमात्र संस्थान था या एक ओपन एयर विद्यालय था जहां दुनिया के छात्र शिक्षा प्राप्त करने आते थे। उनके स्कूल में प्रसिद्ध बुद्धिजीवी अलग-अलग विषयों पर विचार-विमर्श करते थे। “प्लैटर की अकादमी” उस दौर में काफी लोकप्रिय हुई। धारणा है कि उस अकादमी से जो एक बार पढ़ लेता था, उसका नाम विद्वानों में शामिल हो जाता था। उसे एक साथ इतनी चीजों का ज्ञान वहां से प्राप्त होता था कि जीवन के हर कदम पर उसके काम आए। अपने लंबे सफर और सुकरात की शिक्षा के कारण प्लेटो को एक नहीं बल्कि बहु विषय का ज्ञान प्राप्त हो गया था। उन्होंने कभी इस ज्ञान का घमंड नहीं किया और हमेशा ही चाहा कि उनका ज्ञान औरों के भी काम आए।
प्लेटो का यह कथन सत्य है—
“एक नायक 100 में से एक ही होता है,
एक बुद्धिमान व्यक्ति हजारों में एक पाया जाता है,
लेकिन एक संपूर्ण व्यक्ति शायद एक लाख लोगों में भी ना मिले।”
उन्होंने जो कुछ कहा और लिखा वह आज भी सत्य है। यह तमाम बातें सिद्ध कहती है कि वह उन गिने-चुने संपूर्ण व्यक्ति में से एक थे जिन्हें आज भी लोग याद करते हैं।