मोहम्मद शहाबुद्दीन की जीवनी – Mohammad Shahabuddin Biography in hindi – शहाबुद्दीन संगीन से संगीन गुनाहों में शामिल था। अपने विरोधियों को या तो वह तेजाब में नहला देता था या फिर सरेआम गोलियों से भुनवा देता था। जेल के पीछे से मौत का खेल खेलना उसका शौक था। वही पुलिस था, वही कानून था और वही जज। बड़े-बड़े पुलिस ऑफिसर को सबके सामने जलील करना उसकी आदत थी। उसके गुनाहों की फेहरिस्त इतनी लंबी थी कि उसे ताउम्र जेल के सलाखों के पीछे भेज दिया गया। लेकिन यह उसकी सियासी सरपरस्ती थी, यह उसका रुतबा था की जेल की सलाखें भी उसका खौफ कम नहीं कर पाई।
शहाबुद्दीन ने 23 साल की उम्र में राजनीति में विधायक के तौर पर अपने सफर की शुरुआत की थी। शहाबुद्दीन को इनके जिले में “साबु 47” के नाम से जाना जाता है। यह पहचान बिहार के उस अपराधी की है जिस पर ना जाने कितने हत्या, लूट, अपहरण और डकैती जैसे संगीन मामले दर्ज है।
सिवान जिले के “प्रतापपुर” में जन्मे इस अपराधी का राजनेता बनने का किस्सा किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। 1986 के बाद से शहाबुद्दीन पर आपराधिक मामले दर्ज होने शुरू हो गए थे। यह आज तक दिल्ली के तिहाड़ जेल में उम्र कैद की सजा काट रहा था। पटना हाईकोर्ट के 30 अगस्त 2017 को दिए गए फैसले पर, सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी थी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस के कॉल, न्यायमूर्ति के. एल. जोसेफ की पीठ में 2014 में हुए कत्ल के मामले में सजा सुनाई गई थी। मामला यह था -अगस्त 2004 में साबुद्दीन और उनके लोगों ने रंगदारी न देने पर सिवान के प्रतापपुर गांव के चंदा बाबू के दो बेटे सतीश और गिरीश रोशन को तेजाब डालकर जिंदा जला दिया था ।
शहाबुद्दीन पर कई आपराधिक मामले चल रहे थे और उसे इन मामलों में हुई सजा:-
- चर्चित तेजाब कांड- दो भाइयों की हत्या -सजा उम्रकैद
- छोटेलाल अपहरण कांड सजा- उम्र कैद
- SP सिंगल पर गोली चलाने का मामला सजा -10 वर्ष
- एक मामला आर्म्स एक्ट का सजा -10 वर्ष
- मामला जीरादेई थानेदार को धमकाने का सजा -1 वर्ष
- मामला चोरी की मोटरसाइकिल बरामद सजा 3 वर्ष
- मामला माले कार्यकर्ता पर गोली चलाने की सजा- 2 वर्ष
- मामला राज नारायण सिंह का सजा 2 वर्ष।
वह मामले जिसमे साबुद्दीन बरी हो चुके थे:-
- दरोगा संदेश बैठा के साथ मारपीट का मामला
- डीएवी कॉलेज में बमबारी सूती फैक्ट्री मामले में।
इतने सारे संगीन मामलों के बाद भी लोग यह नारा लगाते थे
“वीर साबु तू मत घबराना तेरे पीछे सारा जमाना।”
सितंबर 2016 में एक बार शहाबुद्दीन जेल से बाहर निकला और उसके साथ एक हजार से ज्यादा गाड़ियों का काफिला था, काफिला गुजर रहा था, टोल टैक्स वाले किनारे पर मूकदर्शक बने हुए थे। यह एक अपराधी का जेल से छूटने के बाद उस का खौफ था लेकिन जनता उसके लिए जय जयकार करती है। अपराधी खुलेआम प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को “परिस्थितियों का नेता” और लालू यादव को अपना नेता बताता है।
यह तब की बात है जब बिहार में नीतीश और लालू के गठबंधन वाली सरकार चल रही थी और इस मुख्यमंत्री ने ही शाहबुद्दीन को 11 साल पहले जेल भिजवाया था। 2016 में साबुद्दीन का जेल से छूटना कोई आश्चर्य करने वाली बात नहीं थी। लालू की पार्टी के सत्ता में आते ही यह प्रयास लगाए जा रहे थे कि लालू के जंगलराज में, शहाबुद्दीन जैसे गुंडे वोट बटोर ते हैं और वह जीतते है। शहाबुद्दीन का उसके इलाके में इतना वर्चस्व था कि उसे चुनाव जीतने के लिए प्रचार करने की जरूरत नहीं पड़ती थी। शहाबुद्दीन साहब का नाम ही काफी था। शहाबुद्दीन के डर के कारण, शहाबुद्दीन की फोटो “सिवान जिले” के हर दुकान में टंगी होती थी। सिवान से बीजेपी के सांसद “ओम प्रकाश यादव” को इसी शहाबुद्दीन ने एक समय पर दौड़ा-दौड़ा कर पीटा था।
बिहार में 80 के दशक को बहुत याद किया जाता है यह वही दौर था जब “लालू प्रसाद यादव” मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पक्की कर रहे थे। उसी समय शहाबुद्दीन और लालू यादव के साथ हो गए। वह भी मात्र 23 साल की उम्र में पहली बार 1990 में विधायक बन गए जब कि विधायक बनने के लिए उम्र सीमा 25 साल होती है। फिर भी शहाबुद्दीन दो बार विधायक बना और चार बार सांसद। इस अपराधी की “केंद्रीय गृह राज्य मंत्री” बनने तक की बात चली थी लेकिन किसी मुकदमे के खुल जाने के बाद वह इस पद के योग्य नहीं रहा। लालू यादव को शहाबुद्दीन की अहमियत बखूबी मालूम थी। लालू यादव के लिए शहाबुद्दीन कुछ भी करने को तैयार थे और लालू, शहाबुद्दीन के लिए। इसी प्रेम में बिहार, अपहरण एक उद्योग बना। सैकड़ों लोगों का अपहरण हुआ, व्यापारी बिहार छोड़ -छोड़ कर भाग रहे थे। इसी बढ़ते अपराध उद्योग को देखते हुए उस समय के के कई अन्य अपराधी इसमें अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन शहाबुद्दीन जैसा दम- खम किसी के पास नहीं था। मिठास वाली भाषा के साथ शब्दों पर अच्छी पकड़ पा कर, न्यायिक प्रक्रिया में पूरा भरोसा रखने वाले शहाबुद्दीन को लालू प्रसाद यादव का पूरा साथ और सहयोग था। शहाबुद्दीन की अपराधों की लिस्ट बहुत लंबी है। उसके आपराधिक वारदात हैं – सालों तक सिवान के डॉक्टर fees के नाम पर ₹50 लेते थे क्योंकि शहाबुद्दीन साहब का आदेश था -8:00 बजने के बाद लोग घर से बाहर नहीं निकलते थे क्योंकि शहाबुद्दीन का डर था। कोई नई कार नहीं खरीदता था क्योंकि साहब कहे जाने वाले अपराधी इस पर अपना हक जमाने लगते थे। -लोग अपनी तनख्वाह तक भी नहीं बताते थे क्योंकि चौकी पर रंगदारी देनी पड़ती थी। -शादी विवाह में कितना खर्च हुआ इसका भी ब्योरा कोई नहीं देता था- लोग यह भी नहीं बताते थे कि बच्चे कहां नौकरी कर रहे हैं। -किसी परिवार में कुछ बच्चे नौकरी करने बाहर गए तो कुछ घर पर ही रह गए क्योंकि सारे बाहर चले जाते तो मां-बाप को रंगदारी देनी पड़ती। -धनी लोग पुरानी मोटरसाइकिल से चलते थे और कम पैसे वाले पैदल लालू राज में “सीवान जिले” का ऐसा विकास था परंतु इन अपराधों ने शहाबुद्दीन का जनाधार भी बना दिया था। वह अपने घर में जन अदालत लगाने लगे। लोगों की समस्याओं को निपटाने लगे। किसी का घर किसी ने हड़प लिया तो साहब का इशारा आता था तो अगली सुबह वह आदमी खुद घर खाली करके चला जाता था। साहब डाइवोर्स के मामले में निपटा देते थे। शहाबुद्दीन किसी की जमीन की लड़ाई तो मानो ऐसे निपटा देते थे जैसे वह इसमें महारत हासिल कर चुके हो। लोग कहते हैं कि कई बार तो ऐसा हुआ कि पीड़ित को पुलिस नसीहत देती है कि साहब के पास जाओ वहां तुम्हारा दुख का निपटारा हो जाएगा। क्या आम क्या खास, साहब के पास तो पुलिस वाले प्रमोशन और ट्रांसफर के लिए हाजिरी लगाते थे। एक फोन या चिट्ठी पर उनका काम हो जाता था। जनता इन छोटे-मोटे फायदों में इतनी मशगूल हो गई थी कि बड़े अपराध की तरफ उनका ध्यान नहीं जाता था। या यूं कहें कि डर और थोड़े से फायदे के लिए उनका दिमाग मंद पड़ गया था। लोगों ने देखना बंद कर दिया था कि उनसे कितनी जमीनें हड़पी जा रही हैं। कितने हथियार पाकिस्तान से मंगवाए जा रहे हैं।
नतीजा यह हुआ कि शाहबुद्दीन लगातार चुनाव जीतता गया। आगे चलकर साबुद्दीन की हिम्मत इतनी बढ़ गई थी कि वह पुलिस पर फायरिंग करने में भी नहीं हिचकता था। इसकी हिम्मत इतनी बढ़ गई थी कि पुलिस और सरकारी कर्मचारियों पर भी इसने हाथ उठाना शुरू कर दिया था। मार्च 2001 में इसने एक पुलिस अफसर को थप्पड़ मार दिया। इसके बाद सीवान की पुलिस बौखला गई थी। एक अलग ही अंदाज में पुलिस ने दल बल के साथ शहाबुद्दीन पर हमला कर दिया। गोलीबारी हुई और पुलिस समेत 8 लोग मारे गए । परंतु शहाबुद्दीन पुलिस की तीन गाड़ियों को जलाते हुए नेपाल भाग गया। उसे भगाने के लिए उसके आदमियों ने पुलिस पर फायरिंग भी की थी।
एक समय ऐसा आया जब शहाबुद्दीन में 1999 में कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता का अपहरण कर लिया जिसके बारे में अभी तक कुछ पता नहीं चल पाया है। इसी मामले में शहाबुद्दीन को 2003 में जेल जाना पड़ा। उसने जेल में ऐसा जुगाड़ कर रखा था कि जेल में ही पंचायत लगाता था।
इसके आदमी बंदूक लेकर खड़े रहते थे। पुलिस से ले कर के हर व्यवसाय का आदमी उसके मदद मांगने आता था। शाहबुद्दीन के जेल जाने के 8 महीने बाद 2004 में लोकसभा चुनाव था, लेकिन इस अपराधी को चुनाव प्रचार करने की जरूरत नहीं पड़ी और वह जीत गया। तब ओम प्रकाश यादव इस के खिलाफ खड़े हुए थे और वह चुनाव हार गए। चुनाव खत्म होने के बाद ओम प्रकाश यादव के 8 कार्यकर्ताओं का खून हो गया था।
2005 में सिवान के डीएम “सी के अनिल” और एसपी “सूरत संजय शहाबुद्दीन “को सिवान जिले में तड़ीपार घोषित कर दिया। एक सांसद अपने जिले में तड़ीपार हो जाए तो वह उस राज्य के लिए बड़ा सवाल हो जाता है। फिर शहाबुद्दीन के घर पर रेड पड़ी और रेड में पाकिस्तान में बने हथियार और बम मिले। साथ ही यह सबूत मिले थे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से भी शहाबुद्दीन के संबंध है। सुप्रीम कोर्ट ने शहाबुद्दीन से पूछा था कि सांसद होने के नाते तुम्हें ऐसे हथियार रखने की जरूरत क्यों पड़ी है जो सिर्फ “आर्मी” के पास या “सीआरपीएफ” के पास होते है यहां तक कि राज्य पुलिस के पास भी नहीं है। गैर कानूनी हथियार बरामद होने के कारण शहाबुद्दीन को जेल जाना था जो की पुलिस के लिए आसान नहीं था। गिरफ्तारी के आदेश होने के तीन महीने बाद तक शाहबुद्दीन दिल्ली के अपने आवास में रहता रहा। बिहार और दिल्ली पुलिस की टुकड़ी शाहबुद्दीन को गिरफ्तार करने जाती और वापिस आ जाती। लेकिन एक दिन बिहार पुलिस का दस्ता बिना किसी को बताए दिल्ली पहुंचा और शहाबुद्दीन को उठा लाया। शहाबुद्दीन का रुतबा जेल जाने से भी कम नहीं हुआ और शहाबुद्दीन ने जेल में रहते हुए जेलर को धमकी दी कि मैं तुमको तड़पा तड़पा कर मारूंगा। कहा जाता है कि सुनवाई पर इसके वकील, जज को धमकी दे आते थे इसके आदमी जेल मे लोगों को धमकाते थे। शहाबुद्दीन पर 2007 में कम्युनिस्ट पार्टी के दफ्तर में तोड़फोड़ करने के आरोप में 2 साल की सजा हुई और फिर कम्युनिस्ट पार्टी के वर्कर की हत्या करने के कारण आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। एक और बड़ी घटना में शहाबुद्दीन का नाम 1997 में आया। जब जेएनयू के एक छात्र “चंद्रशेखर” बिहार की नई राजनीति में, राजनीति करने आए थे जिन को जान से मार दिया गया। 2009 में शहाबुद्दीन को इलेक्शन कमीशन ने चुनाव लड़ने से बैन कर दिया तब शहाबुद्दीन की पत्नी हिना को हराकर ओम प्रकाश यादव सांसद बने ।
शहाबुद्दीन फिलहाल बिहार की राजनीति से बहुत पीछे चला गया था लेकिन वर्ष 2014 में शहाबुद्दीन का नाम लोगों की जबान पर फिर से आने लगा। “राजीव रंजन हत्याकांड” का मामला था जिसमें दो भाइयों की हत्या के केवल एकमात्र गवाह राजीव थे उनके दो भाइयों की 2014 में तेजाब से नहला कर हत्या कर दी गई थी क्योंकि रंगदारी को लेकर शहाबुद्दीन के आदमियों और राजीव और उनके भाइयों में, बहस हो गई थी। इन लोगों ने बंदूक दिखा कर राजीव के भाइयों को तेजाब से नहला दिया था, जिसमें दोनों भाई मारे गए थे। पुलिस ने राजीव के परिवार वालों को कहा कि आप सिवान छोड़ कर के चले जाइए परंतु कोर्ट में पेशी से पहले राजीव को मार दिया गया। 2016 में एक पत्रकार “राजदेव रंजन” की हत्या कर दी गई जिसमें शाहबुद्दीन का नाम आया। इन दो भाइयों की हत्या वाले इस मामले में उसको बेल मिल गई क्योंकि कोई गवाह नहीं था। वह तिहाड़ की जेल में अपने कर्मों की सजा काट रहा था ।
दिनांक 1/5/ 2021 को अचानक खबर मिली कि बिहार के बाहुबली आरजेडी के पूर्व सांसद नेता शहाबुद्दीन की कुरौना से मौत हो गई। वह कोरोना संक्रमित थे। तिहाड़ जेल में बंद शहाबुद्दीन की 20 अप्रैल को कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी और वह अस्पताल ने भर्ती कराए गए थे।