शेर सिंह राणा जीवनी Sher Singh Rana biography in hindi – राजपूत शेर सिंह राणा को, फूलन देवी की हत्या के आरोप में देश के सबसे हाईटेक “तिहाड़ जेल: में रखा गया था लेकिन किसी ना किसी तरह, यह राजपूत जेल से बाहर निकलने में कामयाब हो जाता है और एक गैर मुल्क अफगानिस्तान में जाकर, पृथ्वीराज चौहान जी की अस्थियों को लेकर वापिस भारत लौटते हैं। इन्होंने खुदाई करते समय एक वीडियो भी बनाया था जो आज भी इंटरनेट पर उपलब्ध है।
शेर सिंह राणा का नाम “पंकज सिंह पुंडीर” है। इनका जन्म 17 मई 1976 को उत्तराखंड के रुड़की में हुआ था। उनकी स्कूली शिक्षा और कॉलेज की पढ़ाई रुड़की से ही हुई। उनकी माता का नाम “सत्यवती” और पिता का नाम “ठाकुर सुरेंद्र सिंह राणा” था। साल 1981 में फूलन देवी ने कानपुर के एक गांव में पहुंचकर अपने साथियों के साथ मिलकर 22 लोगों को मार दिया था। इस हत्याकांड के कुछ समय बाद फूलन देवी समाजवादी पार्टी से सांसद बन गई थी। दिल्ली के अशोक रोड में तत्कालीन समाजवादी पार्टी सांसद फूलन देवी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। अचानक दो दिन बाद, देहरादून में एक शख्स शेर सिंह राणा सामने आता है और हत्या के लिए खुद को दोषी बताते हुए आत्मसमर्पण कर देता है।
ऐसा कहा जाता है कि जो लोग फूलन देवी द्वारा मारे गए थे उनमें से ज्यादातर लोग ठाकुर थे। इसी कारण बदले की भावना से शेर सिंह राणा ने फूलन देवी को मारा था। लेकिन एक इंटरव्यू में जब यह सवाल रिपोर्टर द्वारा शेर सिंह राणा से पूछा गया, तो उन्होंने साफ साफ मना कर दिया और कहा कि हत्या के समय वह, फूलन देवी की बहन और एक अन्य व्यक्ति मेरे साथ ऑफिस में ही मौजूद थे। वह सब भलीभांति जानते हैं कि मैंने हत्या नहीं की थी। व्हाट्सएप वीडियो लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया गया था जिसमें मैंने यह बात मानी थी कि मैंने हत्या की है। वह पुलिस के कारण मैंने बोला था। इस हत्याकांड के बाद शेर सिंह राणा को दिल्ली के हाईटेक जेल तिहाड़ में भेज दिया गया था।
इसी दौरान भारत देश में एक अत्यंत दुखदाई घटना घटी। आतंकवादियों ने भारत के एक जहाज को हाईजैक कर लिया था और उसे सीधा कंधार ले गए थे। इस घटना के बाद तत्कालीन विदेश मंत्री “जसवंत सिंह” वहां पहुंचे और जब वह वहां से लौटकर भारत आए तो उन्होंने एक हकीकत से पर्दा उठाया। जसवंत सिंह जी ने बताया था कि अफगानिस्तान में आज के समय में पृथ्वीराज जी की समाधि बनी हुई। पृथ्वीराज चौहान जी ने, गौरी को बहुत ही बुरी तरह मौत के घाट उतारा था, जिसके बाद चंद्रवरदाई और पृथ्वीराज चौहान ने एक दूसरे को मारकर वीरगति को प्राप्त होने का वचन दिया था, और ऐसा ही हुआ। गौरी का वध होने के बाद चंद्र बताएं ने खुद को और पृथ्वीराज चौहान को खत्म कर लिया था और वीरगति को प्राप्त हो गए थे।
इस घटना के बाद गौरी के सैनिकों ने उनके शव को अफगानिस्तान ले जाकर के शव को इस्लामिक परंपरा के आधार पर, जमीन में दफन कर दिया था। जहां लगभग 800 साल से, वहां के लोग पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई की समाधि का अपमान करते आ रहे थे। जब जसवंत सिंह जी ने अपनी आंखों से यह सब देखा तो बहुत दुखी हुए और उन्हें वापस लौट मीडिया के समक्ष यह बात रखते हुए बताया कि किस प्रकार अफगानिस्तान में पृथ्वीराज चौहान जी की समाधि का अपमान हो रहा है। यह सुनते ही देशभर में पृथ्वीराज चौहान जी की अस्थियां हत्या भारत लाने की आवाजें उठने लगी। इस सत्य ने समस्त देशवासियों के मन को झकझोर कर रख दिया था और इसे सबसे ज्यादा ठेस राजपूतों की गरिमा को पहुंची थी।
यह खबरें अखबार के जरिए तिहाड़ जेल में बैठे शेर सिंह राणा तक भी जा पहुंची और उन्हें बहुत ही दुख हुआ।
“आज तक” के इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया कि जेल में उन्हें एक ऐसी जगह पर रखा हुआ था जहां उनके साथ बड़े-बड़े कैदी मौजूद थे। उन कैदी में से जब एक अफगानी कैदी ने यह खबर सुनी तो वह बोला -कि हिंदुस्तान में आज तक किसी की हिम्मत नहीं हुई कि अफगानिस्तान जाकर पृथ्वीराज चौहान जी की अस्थियां लेकर आ सके और हम अफगानी यहां पर आकर कुछ भी कर सकते हैं। यह सुनते ही शेर सिंह राणा ने उस अफगानी से कहा कि “ना केवल मैं इस जेल से बाहर जाऊंगा बल्कि अफगानिस्तान जाकर पृथ्वीराज चौहान की अस्थियां भी भारत लेकर आऊंगा।” इस बात पर वहां खड़े लोग हंस पड़े।
लेकिन कुछ दिन बाद सर्दियों के दिनों में कुछ लोग पुलिस के भेष में जेल पहुंचे और नकली वारंट के जरिए शेर सिंह राणा को लेकर, वहां से रफूचक्कर हो गए। एक घंटे के बाद जेल प्रशासन को इस घटना के बारे में पता चला। जेल से भागने के बाद उन्होंने रांची में फर्जी पासपोर्ट बनवाया और वहां से कोलकाता जा पहुंचे, जहां से उन्होंने बांग्लादेश का वीजा बनवा लिया और वह बांग्लादेश चले गए। वहां पहुंच कर उन्होंने फर्जी दस्तावेज बनवाए और वहां की एक यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया। उसी दौरान उन्होंने वहां रहते हुए, अफगानिस्तान के लिए भी अपना वीजा बनवा लिया। इसके बाद वह अफगानिस्तान, काबुल और कंधार होते हुए सीधा गर्दी पहुंचे ,जहां पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी की समाधि बनी हुई थी।
हालांकि इन सब में उन्हें लगभग एक महीने का समय बिताना पड़ा था क्योंकि उन्हें पृथ्वीराज की कब्र की सटीक लोकेशन का पता नहीं मिल पा रहा था कि पृथ्वीराज की कब्र कौन सी है। वहां पहुंच कर उन्होंने अपने सामने पृथ्वीराज चौहान की समाधि का अपमान होते देखा और इस घटना को अपने कैमरे में कैद कर लिया। शेर सिंह राणा ने पृथ्वीराज चौहान के अवशेष भारत वापस लाने की योजना बना ली और रात्रि के समय में उन्होंने पृथ्वीराज चौहान की कब्र की खुदाई शुरू कर दी। यह सब अपने कैमरे में भी रिकॉर्ड कर रहे थे ताकि वह इस सत्यता का सबूत भारतीय मीडिया को दे पाए। उन्होंने पृथ्वीराज चौहान की अस्थियों को वहां से निकाला और सम्मान पूर्वक भारत ले आए। इस कार्य को करने में उन्हें शुरुआत से अंत तक लगभग 3 महीने का समय लगा था। भारत लौटने पर उन्होंने गाजियाबाद के “पिलखुआ” में वीर सपूत पृथ्वीराज चौहान का एक मंदिर बनवाया, जहां पृथ्वीराज चौहान की अस्थियां रखी हुई है।
आधिकारिक तौर पर इन सभी बातों की पुष्टि अभी तक नहीं हो पाई है लेकिन जिस भी व्यक्ति ने यह कहानी सुनी है वह सभी भारतवासी, खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं। सन सन 2006 में पुलिस अधिकारियों ने शेर सिंह राणा को कोलकाता के गेस्ट हाउस से अपनी हिरासत में ले लिया था और उसके बाद उन्हें पुनः तिहाड़ जेल भेज दिया गया था जेल में रहने के दौरान उन्होंने अपने एक पुस्तक भी लिखी जिसका नाम “जेल डायरी” है।