होमी जहांगीर भाभा जीवनी Homi Jehangir Bhabha biography in hindi – आज हम भारत को जिस मुकाम पर देखते हैं, यह केवल उन लोगों के त्याग के कारण मुमकिन हो पाया है जिन्होंने खुद के जान की परवाह किए बिना अपने देश की सेवा की। इन लोगों में एक “होमी जहांगीर भाभा” का नाम शामिल है, जिसने भारत को वह सामर्थ्य प्रदान की जिसके कारण आज भारत के सामने दुनिया की बड़ी से बड़ी पावर भी भारत को मिलिट्री काउंटर करने से बचना चाहती है। वह शक्ति “न्यूक्लियर पावर” है और भारत के लिए होमी भाभा ने इसका सपना देखा था। लेकिन यह अत्यंत पीड़ा की बात है कि वह व्यक्ति जो केवल 18 महीने में भारत के लिए “न्यूक्लियर वेपन” बना सकने में सक्षम था और उनकी मृत्यु एक प्लेन क्रैश में हो गई थी।
भारत के स्वतंत्र होने के 8 वर्ष पूर्व होमी जहांगीर भाभा, लगभग 13 वर्ष विदेश में रहने के बाद जब छुट्टी बिताने भारत आए ,तब तक यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, एक वैज्ञानिक के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। इसी बीच दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हो गया और इन्होंने वापिस विदेश जाने का इरादा छोड़ दिया। यह हमारे देश के लिए एक वरदान साबित हुआ क्योंकि आगे चलकर इस नौजवान ने विज्ञान के क्षेत्र में भारत की नियति को बदल कर रख दिया। इस नौजवान का नाम “होमी जहांगीर भाभा” था। इनके प्रयासों के कारण आज भारत “परमाणु ऊर्जा” यानी एटॉमिक एनर्जी के क्षेत्र में विकसित देशों के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा है। साथ ही आज सैकड़ों भारतीय, भारत में ही रह कर अंतरराष्ट्रीय स्तर का वैज्ञानिक शोध कार्य करने में समर्थ है।
होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्टूबर सन 1909 में मुंबई एक शिक्षित और धनी पारसी परिवार में हुआ था। भाभा के परिवार में अध्ययन और शिक्षा के क्षेत्र मे सेवा की लंबी परंपरा रही थी। साथ ही उन के परिवार में राष्ट्रीयता की भावना भी उपस्थित थी। इस पारिवारिक वातावरण ने बालक भाभा के व्यक्तित्व के विकास में एक अहम भूमिका निभाई।
भाभा की प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में हुई। वह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। उन्हें विज्ञान की किताबें पढ़ने में बहुत आनंद आता था। साथ ही उन्हें कला, संगीत और साहित्य में भी बहुत रूचि थी। भाभा बालक चित्रकारी बहुत अच्छी करते थे और उन्होंने बचपन में चित्रकारी में अनेक प्रतियोगिताओं में पुरस्कार जीते। वह बहुत रचनात्मक थे और हर कार्य आदर्श तरीके से करते थे।
स्कूली शिक्षा पूरी के बाद, होमी भाभा अपने माता-पिता की इच्छा के अनुसार इंग्लैंड के “कैंब्रिज विश्वविद्यालय” इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने गए। कैंब्रिज में रहकर होमी बाबा को “भौतिक विज्ञान” ज्यादा रुचिकर लगने लगा। यह वह समय था जब बौद्धिक विज्ञान के क्षेत्र में एक के बाद एक महत्वपूर्ण खोजे हो रही थी। इन गतिविधियों का केंद्र कैंब्रिज में स्थित प्रख्यात वैज्ञानिक “रदरफोर्ड की प्रयोगशाला” थी। कैंब्रिज में भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार विजेता “डैरिक” भी कार्य कर रहे थे, जिनसे भाभा बहुत प्रभावित थे। होमी बाबा ने अपने माता-पिता की इच्छा अनुसार पहले इंजीनियरिंग की पढ़ाई सफलतापूर्वक पूरी की। उसके बाद इन्होंने भौतिक विज्ञान का अध्ययन करना शुरू किया और फिर इस की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में पास कर ली।
अगले 8 साल तक होमी भाभा ने यूरोप में रहकर भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में शोध कार्य किया। उन्होंने “अंतरिक्ष किरणों” तथा “मूल कणों” पर मौलिक अनुसंधान किया। जिसके कारण उन्हें कई पुरस्कार मिले और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय में उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा।
सन 1939 में होमी भाभा भारत वापस आए और विश्व युद्ध छिड़ जाने के कारण उन्होंने यहीं रुकने का निर्णय लिया। नोबेल पुरस्कार विजेता “चंद्रशेखर वेंकटरमन” के आग्रह पर, होमी भाभा ने बेंगलूर स्थित “भारतीय विज्ञान संस्थान” में कार्य करना शुरू कर दिया। उन्होंने न केवल अपना शोध कार्य जारी रखा बल्कि अन्य भारतीय युवा वैज्ञानिकों को भी अपना सहयोग दिया। धीरे-धीरे होमी भाभा के मन में अपनी मातृभूमि के प्रति एक जिम्मेदारी की भावना प्रबल होने लगी। उन्हें चिंता सताने लगी कि क्या भारत वैज्ञानिक विकास में, विश्व में अन्य देशों के साथ कदम मिला पाएगा।
उस समय विकसित देशों में “नाभिकीय भौतिक विज्ञान” के क्षेत्र में तेजी से शोध कार्य चल रहा था। कुछ वैज्ञानिकों का मत था नाभिकीय विखंडन से था परमाणु ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। कुछ दशकों में उसका उपयोग विद्युत शक्ति के उत्पादन के लिए किया जा सकेगा। अधिकतर वैज्ञानिक इससे सहमत नहीं थे। परंतु होमी भाभा को विश्वास था कि परमाणु ऊर्जा जल्द ही एक सच्चाई बन जाएगी ओमी भाभा को परमाणु ऊर्जा एक बहुत ही आकर्षक विकल्प लग रहा था क्योंकि उनका अनुमान था कि जैसे-जैसे भारत विकास के पथ पर अग्रसर होगा, उसको ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ेगी और उसकी ऊर्जा की बढ़ती मांग देश के पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों से पूरी ना हो पाएगी।
विकसित देशों में परमाणु ऊर्जा पर शोध कार्य बहुत गोपनीय तरीके से हो रहा था। होमी भाभा यह भी समझ रहे थे यदि भारत ने परमाणु ऊर्जा को वास्तविकता बनाना है, तो उसके लिए तकनीकी ज्ञान भी भारत में ही विकसित करना होगा। इसके लिए ऐसे संस्थान की जरूरत थी जो पूरी तरह से “नाभिकीय भौतिक विज्ञान” के क्षेत्र में मूलभूत अनुसंधान करने को समर्पित हो। होमी भाभा ने 1945 मे “टाटा ट्रस्ट” से वित्तीय सहायता लेकर मुंबई में “टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान” स्थापित किया।
होमी भाभा बेंगलुरु से मुंबई आए और उन्होंने युवा शोधकर्ताओं को आमंत्रित किया। उन्हें अपने नए संस्थान में कार्य करने के लिए समुचित अवसर, साधन और वातावरण प्रदान किया। होमी भाभा वैज्ञानिक उत्कृष्टता के लिए प्रतिबद्ध थे और साथ ही वह एक कुशल प्रबंधक भी थे। जल्द ही “टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान” एक श्रेष्ठ संस्थान बन गया। इसका निरंतर विस्तार और विविधीकरण हुआ। यह आज विश्व का एक अग्रणी संस्थान है। जहां विज्ञान और गणित के विभिन्न क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय स्तर का शोध कार्य हो रहा है। देश विदेश में कार्य कर रहे हजारों वैज्ञानिक और अनेकों भारतीय इस संस्थान के ऋणी है। जहां उनकी प्रतिभा का विकास और प्रशिक्षण हुआ। यह सब संभव हुआ क्योंकि होमी भाभा में महत्व काशी सपने देखने का और इन सपनों को वास्तविकता में बदलने का साहस था। होमी भाभा का सपना टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान पर ही खत्म नहीं हुआ। सन 1947 जब भारत स्वतंत्र हुआ तो देश के विकास की योजनाएं बननी शुरू हो गई। दूसरे विश्व युद्ध में “हिरोशिमा” और “नागासाकी” में परमाणु ऊर्जा का विध्वंस रूप देखकर सहम गया था परंतु तब तक कुछ वैज्ञानिक यह भी स्थापित कर चुके थे कि परमाणु ऊर्जा को नियंत्रित करके उससे विद्युत शक्ति उत्पादन किया जा सकता है। विद्युत शक्ति उत्पादन के लिए परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग की भी उम्मीद बन रही थी।
होमी जहांगीर भाभा ने देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को परमाणु क्षेत्र के परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र की संभावनाओं से अवगत कराया और उनको विश्वास दिलाया कि स्वतंत्र भारत के विकास में परमाणु ऊर्जा बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। पंडित नेहरू होमी भाभा के व्यक्तित्व से अत्यंत प्रभावित थे।
परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को कार्यान्वित करने के लिए होमी भाभा के सुझाव पर, नेहरू जी ने भारत सरकार के तहत एक विभाग “परमाणु ऊर्जा विभाग” बनाया।
जिसका उत्तरदायित्व परमाणु ऊर्जा से संबंधित खनिज खोज से लेकर तकनीकी शोध और विकास तक का सारा कार्य था। सफर जल्दी ही पूरा हो गया। जल्दी ही यह कार्य इतना विस्तृत हो गया कि उसको अब “टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान” मे जारी रखना संभव ना था और उसके लिए एक अलग संस्थान की जरूरत महसूस होने लगी।
1954 में होमी भाभा ने मुंबई के पास “ट्रांबे” में 12 सौ एकड़ की जमीन पर “परमाणु ऊर्जा संस्थान” स्थापित किया। जिसे हम आज “भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र” के नाम से जानते हैं। यहां पर सन 1956 में भारत का पहला “रिएक्टर” स्थापित किया गया। जिसका नाम “अप्सरा” रखा। यह भारत के लिए विशेष गौरव की बात थी इस रिएक्टर का डिजाइन और निर्माण होमी बाबा के नेतृत्व में, भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों द्वारा किया गया था। यह रिएक्टर आज भी कार्यशील है। भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का तेजी से विकास हुआ। इस विकास के कारण बड़ी संख्या में प्रशिक्षित व्यक्तियों की जरूरत पड़ने लगी।
सन 1958 में होमी भाभा ने “ट्रांबे” में ही “परमाणु ऊर्जा प्रशिक्षण केंद्र” की स्थापना की। यहां पर हर वर्ष पूरे भारत से विज्ञान और इंजीनियरिंग के स्नातकों को चुनकर प्रशिक्षित किया जाने लगा। होमी भाभा ने भारत में जिस परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की परिकल्पना की और उसके विकास की पहल की, उसके सफल परिणाम अब हमारे सामने आने लगे हैं।
आज भारत में कई परमाणु बिजली संयंत्र है। जहां परमाणु ऊर्जा से, विद्युत शक्ति का उत्पादन सफलतापूर्वक किया जा रहा है। होमी भाभा की गतिविधियां परमाणु ऊर्जा पर रुकी नहीं। उन्होंने जल्द ही पहचाना कि अंतरिक्ष शोध के लिए, एक महत्वपूर्ण क्षेत्र “रॉकेट और उपग्रह ” देश के विकास के नए अवसर थे। होमी भाभा के अंतरिक्ष के क्षेत्र में शोध कार्य शुरू करवाने के प्रस्ताव को सन 1961 में भारत सरकार ने स्वीकार कर लिया। होमी भाभा अंतरिक्ष शोध के लिए बहुत महत्वकांक्षएं थी, पर दुर्भाग्यवश अपनी कल्पनाओं को साकार होता देखने के लिए वह जीवित ना रहे।
सन 1966 में होमी भाभा की मुंबई से जेनेवा जाते समय विमान दुर्घटना में अकाल मृत्यु हो गई। पूरा विश्व उनकी आकस्मिक मृत्यु पर स्तब्ध रह गया। होमी जहांगीर भाभा आज हमारे बीच नहीं है पर उन्होंने अपने अथक प्रयासों से परमाणु ऊर्जा के विकास का जो पथ प्रशस्त किया, उसके कारण आज भारत परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर चुका है। भारत की उपलब्धियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत किया जाता है। होमी भाभा द्वारा स्थापित संस्थानों में, प्रशिक्षित व्यक्तियों की विशेषज्ञता का लाभ, भारत को परमाणु ऊर्जा के अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनकी, आंतरिक, रक्षा आदि कई क्षेत्रों में हुआ। इन संस्थानों ने भारत की तकनीकी विकास में उत्प्रेरक का कार्य किया।
होमी जहांगीर भाभा सच्चे अर्थों में आधुनिक भारत के निर्माताओं में से एक थे। देश के वैज्ञानिक विकास के लिए वह सतत प्रयत्नशील रहे। देश सदैव होमी जहांगीर भाभा का ऋणी रहेगा।