अरविंद त्रिवेदी जीवनी Arvind Trivedi biography in hindi – 80 के दशक का मशहूर शो “रामायण” छोटे पर्दे पर अत्यंत हिट रहा था और इस शो ने टीवी इंडस्ट्री मे सफलता की नई बुलंदियों को छुआ। लॉकडाउन के चलते एक बार फिर रामायण “प्रसार भारती” और “डीडी नेशनल” पर प्रसारित किया गया जो कि लोगों को अत्यंत पसंद आया।
महान धारावाहिक “रामायण” में रावण का रोल अदा करने वाले अदाकार असल जिंदगी में बहुत बड़े राम भक्त हैं। अरविंद त्रिवेदी जी लंबी चौड़ी कद काठी, भारी-भरकम आवाज वाले और बड़े ही नेक दिल इंसान है। इन्होंने रावण का रोल इस तरह जीवंत किया कि असली रावण भी फीका पड़ जाए। इनका अट्ठाहॉस, शारीरिक बनावट और चेहरे के हाव भाव से लोगों के दिल में कुछ ऐसे बसे कि असल जिंदगी में भी लोग इनको “रावण” कहकर बुलाने लगे। उनकी धर्मपत्नी को लोग “मंदोदरी” और उनके बच्चों को “रावण पुत्र” कहकर बुलाने लगे।
अरविंद त्रिवेदी जी का जन्म हुआ 8 नवंबर 1938 को मध्यप्रदेश के सुंदर और बहुत ही शांत शहर “इंदौर” में हुआ था। उनके पिता एक सरकारी कर्मचारी थे और तबादलों के चलते यह “उज्जैन” में ही बस गए। अरविंद त्रिवेदी का बचपन यहीं पर बीता ।अरविंद जी के दो भाई और एक बहन है। अरविंद जी ने 4 जून 1966 में नलिनी से शादी की। उनकी तीन बेटियां हैं। अरविंद अपने परिवार के साथ मुंबई में रहते हैं।
अरविंद बचपन से ही रामलीला बड़े चाव से देखते थे और बचपन से ही उनकी लगन श्री राम जी के चरणों में लग गई थी। अरविंद के बड़े भाई तब तक गुजराती सिनेमा में जाना माना नाम बन चुके थे। अपने बड़े भाई से प्रेरणा और सहारा पाकर अरविंद जी ने भी अभिनय की देखी दुनिया का रुख किया अरविंद द्विवेदी ने अभिनय की दुनिया की शुरुआत रंगमंच से की और फिर गुजराती सिनेमा और देखते ही देखते 1971 में इन्होंने बॉलीवुड में छलांग लगाई और “पराया धन” फिल्म से अपना डेब्यू किया। इस फिल्म में “हेमा मालिनी” और “राकेश रोशन” जैसे बड़े-बड़े दिग्गज कलाकार थे। इतने बड़े मंच पर काम कर अरविंद जी की प्रतिभा को काफी चमक मिली और इनका अपने ऊपर विश्वास इतना बढ़ गया कि इन्होंने 80 के दशक तक हिंदी और गुजराती में दर्जनों फिल्में कर डाली।
1987 में अरविंद जी ने, रामानंद सागर की धारावाहिक “विक्रम बेताल” में काम किया और यहीं से रामानंद जी ने अरविंद जी की प्रतिभा को पहचान लिया था। जब रामायण के किरदारों का चयन हो रहा था तो अरविंद जी ने रामानंद सागर जी से रामायण में काम करने की इच्छा जताई और जब अरविंद जी से पूछा गया कि वह कौन सा रोल अदा करना चाहेंगे, तो उन्होंने कहा कि मैं केवट का किरदार अदा करना चाहूंगा क्योंकि यह खुद को बहुत बड़ा राम भगत मानते थे। अरविंद जी को रामानंद जी ने ऑडिशन के लिए बुलाया। जब अरविंद ऑडिशन देने पहुंचे तो रावण के किरदार के लिए ऑडिशन चल रहे थे जिनमें लगभग ऑडिशन देने वाले 300 लोग थे। उन 300 लोगों का ऑडिशन खत्म होने पर जब रामानंद जी अरविंद जी से मिले तो उन्होंने अरविंद को एक स्क्रिप्ट पढ़ने के लिए कहा। जैसे ही अरविंद जी ने स्क्रिप्ट पढ़ी तो रामानंद जी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बस मुझे मेरा रावण मिल गया। अरविंद जी इस बात पर काफी आश्चर्यचकित भी हुए कि मैंने तो कोई डायलॉग भी नहीं बोला, फिर भी मेरा चयन कैसे हो गया। कहीं ना कहीं रामानंद जी को पहले से ही पता था कि उनका यह जबरदस्त रावण का किरदार कौन निभाएगा और अरविंद जी ने भी इस किरदार को ऐसा निभाया कि जैसे अरविंद जी, सचमुच रावण को फिर से धरती पर ले आए हो। उन्होंने रावण के किरदार को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचा दिया। “रामायण” धारावाहिक सीरियल के बाद अरविंद जी अपनी निजी जिंदगी में लगभग रावण ही बन गए। रामायण सीरियल के बाद अरविंद जी ने पॉलिटिक्स का रुख किया। 1991 में अरविंद जी ने गुजरात के “साबरगांठा” से चुनाव लड़ा और एमपी बन गए।
रावण के कुछ ऐसे तथ्य है जिन्हें जानकर आश्चर्य होता है। रावण का नाम लेते ही एक घमंडी, अहंकारी और धूर्त राक्षस की छवि उभरती है, लेकिन रावण बहुत ही विद्वान, कुशल, सर्व शक्तिशाली और बुद्धिजीवी शिव भक्त था। रावण ना ही राक्षस था और ना ही ब्राह्मण। दरअसल रावण “ऋषि विश्रवा” का पुत्र था जो कि ब्राह्मण थे और उनकी माता का नाम “कैकसी” था जो “क्षत्रिय राक्षसी” थी, इसलिए रावण एक “ब्रह्मराक्षस” था। रावण के पास “पुष्पक विमान” था । रावण के पास वायुयान बनाने की विधि थी और उसके पास पुष्पक विमान के अलावा भी बहुत सारे यान और हवाई अड्डे थे। आज भी इनका पुख्ता प्रमाण श्रीलंका में मौजूद है।
“रावण” नाम का अर्थ क्या है और रावण को यह नाम कैसे मिला ? दरअसल रावण को यह नाम स्वयं भगवान शिव ने दिया था। रावण इतना बड़ा शिव भक्त था कि वह भगवान शिव को लंका ले जाना चाहता था। इस हठ में रावण “कैलाश पर्वत” को उठाने लग गया। भगवान शिव ने अपने पैर से कैलाश पर्वत को दबा दिया। रावण जब कैलाश पर्वत को उठा रहा था, तब उसकी उंगली कैलाश पर्वत के नीचे दब गई, लेकिन रावण चिल्लाया नहीं बल्कि दर्द से दहाड़ने लगा, तांडव करने लगा। यह देख कर शिव भगवान आश्चर्यचकित हुए और शिव ने उनका नाम “रावण” रखा। “रावण” शब्द का का अर्थ है “ऊंची आवाज में दहाड़ने वाला” । रावण इतना शक्तिशाली और ज्ञानी था कि उसने “तीनों लोको” और “नवग्रह” को विजय कर लिया था।
जब रावण के पुत्र ‘मेघनाथ’ का जन्म हुआ तब रावण ने ग्रह को इस तरह स्थापित कर दिया कि मेघनाथ को अमरता मिल जाए, लेकिन शनिदेव ने रावण का कहना नहीं माना। रावण ने कुछ क्षणों के लिए शनि देव को बंदी बनाकर रोक दिया था। बहुत सारे लोग कहते हैं रावण ने अहंकार में अंधे होकर राम से युद्ध किया था परंतु यह सत्य नहीं है। रावण ने बहुत सोच समझकर श्री राम जी से युद्ध किया था। यह इस बात से पता चलता है कि जब रावण की पत्नी मंदोदरी, रावण को समझाने की कोशिश कर रही थी, तब रावण ने मंदोदरी को कहा था कि “यदि राम एक साधारण मानव है तो मैं उसे आसानी से हरा दूंगा और अगर वह भगवान है तो भगवान के हाथों मरने से बड़ी, मोक्ष प्राप्ति नहीं हो सकती।” इसलिए रावण ने तर्कसंगत श्री राम जी से युद्ध किया था। भारत और श्रीलंका में कई स्थान ऐसे हैं जहां रावण की पूजा की जाती है। रावण के अनेकों मंदिर हैं और अनेक अनन्य भक्त हैं।