राजा कृष्णदेवराय जीवनी Raja Krishnadevaraya biography in hindi – भारत में कई ऐसे महान राजा हुए हैं जिन्होंने न केवल युद्ध शैली से सबका दिल जीता है बल्कि राज परंपरा से अपनी एक अलग पहचान बनाई है। भारत देश में चंद्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक हर्षवर्धन और राजा भोज जैसे ना जाने कितने ऐसे राजा हुए हैं जिन्होंने इतिहास को न केवल बदल दिया बल्कि अपनी एक अलग छाप भी छोड़ दी। इसे कड़ी में दक्षिण भारत के एक राजा “कृष्णदेवराय” का नाम आता है यह वह राजा थे, जिनकी सोच का कायल अकबर भी था।
तुगलक वंश के शासक “मोहम्मद तुगलक” के शासन काल के अंतिम समय उसकी गलत नीतियों की वजह से पूरे राज्य में अव्यवस्था फैल गई थी। इसका दक्षिण के राजाओं ने खूब फायदा उठाया। उन्होंने अपने राज्य को स्वतंत्र घोषित कर दिया था। इसी दौरान हरिहर और बुक्का ने 1337 ईस्वी में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की थी। इस राज्य के सबसे शक्तिशाली राजा कृष्णदेव राय थे ।
महान राजा कृष्णदेव राय का जन्म 16 फरवरी 1471 में कर्नाटक के हमटी में हुआ था। उनके पिता “तिलोक नारस नायक” थे। उनके पिता “शालू वंश” के एक सेनानायक थे। नारस नायक, शालू वंश के दूसरे और अंतिम शासक “ईमाडी नरसिंह” के संरक्षक थे। अल्पायु ईमाडी नरसिंह को कैदी बनाकर उनके पिता ने 1491 में विजयनगर की बागडोर ले ली। पिता के राजा बनते ही कृष्ण देव राय की किस्मत बदल गई। पल भर में उनकी जिंदगी एक सेनानायक के बेटे से राजा के बेटे में बदल गई। उनके पास सारी सुविधाएं आ गई ।वह एक आलीशान जिंदगी व्यतीत करने लगी थी। तभी उन पर बुरी किस्मत के बादल मंडराने लगे। उनके पिता को राज संभाले अभी ज्यादा वक्त भी नहीं हुआ था कि उनके पिता की मौत हो गई। पिता की मौत के बाद राज्य बिखरने लगा। ऐसी स्थिति में कृष्ण देव के बड़े भाई ने उन्हें राज्य की जिम्मेदारी संभालने का आग्रह किया। राज्य की बागडोर अपने हाथों में लेते ही उन्होंने राज्य में फैले विद्रोह को शांत किया और अपने राज्य की सीमा को मजबूत किया।
वह बहुत ही शांति और सूझबूझ से अपने फैसले लेते थे। वह कभी भी अपना हित नहीं देखते थे और हमेशा एक बीच का रास्ता निकालते थे ताकि हर किसी का भला हो सके। कृष्ण देव को एक महान राजा मानने का यह भी एक कारण माना जाता है। उन्होंने उस समय अपने राज्य को संभाला, जब वह पूरी तरह से टूटने की कगार पर था। जो काम नामुमकिन सा लग रहा था उसे उन्होंने पूरा करके दिखा दिया था। इसके बाद उन्होंने अपना शासन शुरू किया। कृष्णदेवराय जानते थे कि उन्हें अपने राज्य को खुशहाल बनाना है, तो उन्हें प्रजा तक पहुंच रखनी होगी। इसके लिए उन्होंने एक अनूठी पहल शुरू की। उन्होंने अवंतिका जनपद के महान “राजा विक्रमादित्य” के नवरत्न रखने की परंपरा से प्रभावित होकर “अष्ट दिग्गज” की स्थापना की। यह अष्ट दिग्गज पूरी तरह से राजा कृष्णदेव के अधीन थे। उनका काम था कि राज्य को सुखी बनाए रखने के लिए राजा को सलाह दे। बात दुश्मनों की हो, जंग की हो या फिर प्रजा की खुशी की। कृष्ण देव के यह अष्ट दिग्गज उन्हें हर चीज की सलाह देते थे। बाद में अष्ट दिग्गज का नाम बदलकर “नवरत्न” कर दिया गया था । इस समिति में बाद में “तेनालीराम” को भी शामिल कर लिया गया। तेनालीराम को, कृष्णदेव राय के दरबार का सबसे प्रमुख और बुद्धिमान दरबारी माना जाता था। उनकी सलाह और बुद्धिमता की वजह से कई बार राज्य को आक्रमणकारियों से निजात मिली। वहीं दरबार में उनकी मौजूदगी से राज्य में कला और संस्कृति को भी बढ़ावा मिला। यह कहने में कोई शक नहीं है कि वह विजयनगर साम्राज्य के “चाणक्य” थे।
एक अच्छे राजा की निशानी कृष्ण देव राय में मौजूद थी। सेनानायक के पुत्र होने की वजह से उन्हें युद्ध की अच्छी अच्छे से समझ थी, इसी वजह से उन्हें हराना काफी मुश्किल काम था। माना जाता है कि अपने 21 वर्ष के शासनकाल के दौरान उन्होंने 14 युद्ध लड़े इस दौरान उन्होंने सभी युद्धों में जीत हासिल की। बाबर ने अपनी आत्मकथा “तुजुक ए बाबरी” में कृष्ण देव राय को भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक तक बता दिया था। कृष्णदेव राय के शासन में हर कोई उनसे प्रभावित था फिर चाहे वह उनका दोस्त हो या फिर दुश्मन।
कृष्ण देव राय न केवल एक योद्धा थे बल्कि एक विद्वान भी थे। उन्होंने तेलुगू के प्रसिद्ध ग्रंथ “अमुक्तमाल्यद” की रचना की। उनकी यह रचना तेलुगु के महाकाव्य में से एक है। तेलुगु के अलावा कृष्णदेव राय ने संस्कृत भाषा में एक नाटक “जामवंती कल्याण” को भी लिखा था। राजा कृष्णदेव राय को लोग इनके तेज दिमाग के लिए जानते हैं। उन्होंने हर उस चीज को अपनाया, जिसके जरिए उनका राज्य खुशहाल रहें। यही कारण है कि इतिहास में कृष्ण देव राय का नाम दर्ज है।