जादव मोलाई पाऐंग जीवनी – Jadav Payeng biography in hindi – भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में बसा राज्य असम अपने विशाल घने जंगलों के लिए विश्व प्रसिद्ध है| यहां के “मानस नेशनल पार्क” और “काजीरंगा जंगल” द वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में शामिल है| हरा भरा वातावरण विभिन्न प्रकार के दुर्लभ पेड़ वन्य प्राणी और उनके झुंड अगर देखने को मिल जाए तो यहां देश-विदेश से आए पर्यटकों की खुशी की सीमा नहीं रहती| वन उपवन पेड़ पौधे पानी हवा हमारे प्राकृतिक धरोहर के अभिन्न अंग है| मनुष्य जाति जहां पर जीवन की सभी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए प्रकृति पर निर्भर करती है, वही वन उपवन असंख्य वन्य प्राणियों को भी आश्रय प्रदान करते हैं| पेड़ पौधों और वनों के अभाव में पृथ्वी पर जीवन संभव ही नहीं| इस तथ्य और सत्य को असम के जोरहाट शहर के छोटे से गांव में रहने वाले, बहुत ही साधारण शख्स जादव मोलाई पाऐंग ने अत्याधिक गहराई से महसूस किया|
जादव मोलाई पाऐंग का गांव, असम में बैठी विशाल ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बसा है| ब्रह्मपुत्र नदी में बारिश के मौसम में अक्सर बाढ़ आ जाती है| आसपास के गांव पेड़ पौधे जानवर आदि बाढ़ में बह जाते हैं| अगर कोई व्यक्ति पेड़ की छांव में बैठा है क्योंकि बहुत समय पहले किसी ने पेड़ लगाया था| आज के समय में हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रकृति के साथ बहुत खिलवाड़ कर रहे हैं| शहर फैलते जा रहे हैं और जंगल सिकुड़ते जा रहे हैं| पृथ्वी पर इंसानों की जनसंख्या हर साल 1.1% के आसपास बढ़ जाती है और ऑक्सीजन देने वाले मुख्य स्रोत जंगलों को हम खत्म करते जा रहे हैं, यह भी बेहद चिंताजनक विषय है| कोई भी इसे रोकने के लिए अपनी तरफ से छोटा सा प्रयास भी नहीं करना चाहता| हमारी जीने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी ऑक्सीजन है, जो मुफ्त मिलती है, मगर हम सब इसके स्रोत को खत्म करते जा रहे हैं|
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो पर्यावरण के लिए बहुत जागरूक रहते हैं| “जादव मोलाई पाऐंग” एक ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने अकेले ही 1360 एकड़ की जमीन को जंगल में बदल दिया| आसाम में रहने वाले जादव मोलाई पाऐंग जी का जीवन हम सभी के लिए एक उदाहरण है| बिना किसी स्वार्थ के उन्होंने हम सब को इतना बड़ा तोहफा दिया| इन्हें पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जी ने “फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया” की उपाधि दी थी|
जादव मोलाई पाऐंग का जन्म 1963 में आसाम के “मिसिंग ट्राइब” में हुआ था| आसाम में “जोरहाट” के पास दुनिया का सबसे बड़ा रिवर आईलैंड “मजूरी” है यानी कि वह जगह जो हर समय पानी से घिरी हो| यह ब्रह्मपुत्र नदी से घिरा हुआ है| पिछले कुछ दशक से हर साल बाढ़ में इस आइलैंड का बहुत बड़ा हिस्सा कट कर पानी में मिल जाता है| अगर ऐसा ही चलता रहा, तो शायद आने वाले समय में यह आइलैंड बचेगा ही नहीं| यह सब देखकर बचपन में ही जादव मोलाई पाऐंग के मन में इसे बचाने की इच्छा जगने लगी| 16 साल की छोटी उम्र में जब उन्होंने देखा कि पेड़ों के ना होने की वजह से, बाढ़ में इतनी तबाही हुई है और इतने जानवर भी मारे गए हैं, तो उन्होंने बांस के बीस पेड़ पर लगाकर शुरुआत की| जब सरकार के फॉरेस्ट विभाग ने 200 हेक्टेयर की जमीन पर पेड़ लगाने का प्लान बनाया तो उन्होंने भी उनके साथ काम करना शुरू कर दिया| 16 साल की उम्र में ही उन्होंने उस प्रोजेक्ट पर एक लेबर की तरह काम किया, जिसे पूरा होने में 5 साल लग गए| 5 साल के बाद जब काम पूरा हुआ तो बाकी लेबर चले गए, मगर वह वही रहे, पेड़ों की देखभाल करते रहे और खुद से नए पेड़ भी लगाते रहे|
जादव मोलाई पाऐंग ने मजूरी आईलैंड में ही लकड़ी का एक छोटा सा घर बना लिया, जहां वह अपने परिवार के साथ रहते हैं| उनके 3 बच्चे हैं, दो लड़का और एक लड़की और बच्चे उनके इस काम में उनकी मदद करते हैं| वह पेड़ों की देखभाल करने के लिए और नए पेड़ लगाने के लिए प्रतिदिन जंगल में जाते हैं| जब पेड़ बड़े हुए तो उनकी समस्या और बढ़ गई क्योंकि कुछ लोग पैसों के फायदे के लिए पेड़ों को काटने की कोशिश करने लगे| जंगल में रहने वाले जानवरों को भी पैसों के लिए मारने की कोशिश की गई| मगर जादव जी हमेशा फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को ऐसी किसी भी गतिविधि की सूचना देकर जंगल को बचा लेते हैं| यहां तक कि ऐसा करने की कोशिश करने वाले वह खुद भी लड़ जाते हैं| उनका कहना है कि जंगल के पेड़ काटने से पहले, मुझे काटना पड़ेगा| आज इस जंगल में बंगाल टाइगर, गेंडे, हाथी, हिरण, खरगोश जैसे कई जानवर रहते हैं| उनके पाले हुए कई गाय और भैंसों को जंगल के टाइगर खा चुके हैं, मगर इसके लिए वह उन लोगों को जिम्मेदार मानते हैं जो पेड़ों को काटने और जानवरों को मारने की कोशिश करते हैं जिसके कारण जंगल के जानवर परेशान होते हैं| उन्होंने कई गाय और भैंस पाली हैं, जिनका दूध बेचकर अपना खर्चा चलाते हैं|
1979 से वह हर रोज लगातार मेहनत कर रहे हैं| वह अब रंग ला रही है| बस 1360 एकड़ की बंजर जमीन “जंगल” में बदल चुकी है| इस जंगल को अब उन्हीं के नाम पर “मोलाई फॉरेस्ट” के नाम से जाना जाता है| साल 2008 में एक जर्नलिस्ट ने जंगल को देखा तो उसके बारे में उन्हें जानने की इच्छा हुई| जब यादव जी ने उन्हें देखा तो उन्हें लगा कि कोई जानवर को मारने आया है इसलिए वह उनसे झगड़ने लगे| मगर बाद में उन्हें पता चला कि वह जर्नलिस्ट हैं और उनके अच्छे काम को देखने आए हैं तब जा कर उनकी जर्नलिस्ट से बात हुई| उस जनरलिस्ट ने उनके बारे में एक आर्टिकल भी लिखा, जिसके बाद लोग उन्हें जानने लगे| उन्हें अपने प्रयासों के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं| 2015 में उन्हें भारत सरकार द्वारा “पद्मश्री” से भी सम्मानित किया गया| छोटे बच्चों की किताबों में भी उनके बारे में पढ़ाया जाता है|
ऐसे लोग हमारे असली हीरो है जो अपनी जिंदगी और भविष्य के बारे में सोचे बिना समाज के हित के लिए काम करते हैं| “जादव मोलाई पाऐंग” ग्लोबल वार्मिंग से हो रहे नुकसान से धरती को बचाना चाहता है| अभी भी वह अपनी साधना में पहले की भांति लीन है| पर्यावरण तथा जीव जगत की रक्षा के लिए वह चाहता है कि स्कूलों में विद्यार्थियों के लिए “पर्यावरण विज्ञान विषय” अवश्य होना चाहिए|
जब तक यह सृष्टि रहेगी धरती पर जीवन रहेगा| “जादव मोलाई पाऐंग” के नाम सेेे जुड़ा यह जंगल हमेशा अमर रहेगा|