मिल्खा सिंह जीवनी – Biography of Milkha Singh in hindi – मिल्खा सिंह भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद महिला बोगी में, सीट के नीचे छुपकर दिल्ली पहुंचे । उसने अपने पेट पालने के लिए फुटपाथ पर बने ढाबों में बर्तन साफ किए। विभाजन के समय जब देश के बड़े-बड़े धराने आजादी का जश्न मना रहे थे तब मिल्खा सिंह अपने परिजनों को अपनी आंखों के सामने मरता हुआ देख रहा था। मिल्खा सिंह घर से स्कूल 10 किलोमीटर दूर दौड़ कर जाया करता था और भारत-पाक विभाजन के दौरान अपनी जान बचा कर देश के लिए बड़े-बड़े कीर्तिमान हासिल किए।
20 नवंबर 1929 को अविभाजित भारत के गोविंदपुरा में, मिल्खा सिंह की पंजाबी राठौर परिवार में जन्म हुआ था। यह अपने 15 भाई-बहनों में सबसे लाड़ले थे। भारत पाक विभाजन में मिल्खा सिंह ने अपने मां-बाप और अपने भाई बहनों को अपनी आंखों के सामने मरते हुए देखा था। उस हादसे का जख्म आज तक उनके सीने में बना हुआ है।
मिल्खा सिंह जब पाकिस्तान से भागकर दिल्ली पहुंचे तब वहां अपनी बहन के यहां कुछ समय रुके ।कुछ समय मिल्खा सिंह ने रिफ्यूजी कैंप में भी गुजारा जहां उनकी जिंदगी बद से भी बदतर थी। मिल्खा सिंह ने बताया कि उन्होंने कई दिनों तक दुकानों में ढाबों में और ऐसी कई जगह पर काम किया ताकि वह अपना जीवन यापन कर सके।
जब मिल्खा सिंह बड़े हुए तो उन के भाई मलखान ने उन्हें सेना में भर्ती होने के लिए कहा। लेकिन सेना में भर्ती होना इतना आसान नहीं था। मिल्खा सिंह जब सेना में भर्ती होने गए तो वहां चार बार रिजेक्ट किए गए और पांचवी बार साल 1951 में उन्हें सफलता हासिल मिली। जब वह सेना में भर्ती होने के लिए क्रॉस कंट्री रेस कर रहे थे, तो उन्हें इस बात का अनुमान नहीं था कि वह एक दिन देश के लिए, इसी रेस से “स्वर्ण पदक” लाएंगे। सेना भर्ती दौड़ में छठवें स्थान पर आए थे। जिसके बाद उन्हें खेलकूद के लिए सेना में चुन लिया गया।
मिल्खा सिंह ने भारतीय सेना में रहते हुए कई सारे मेडल जीते। साल 1958 में मिल्खा सिंह ने एशियन गेम्स में 200 मीटर और 400 मीटर दोनों प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता। उसी साल उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल लेकर स्वतंत्र भारत के पहले “कॉमनवेल्थ गोल्ड मेडलिस्ट” होने का गौरव हासिल किया। साल 1960 में हुई एक रेस को याद करके मिल्खा सिंह अक्सर दुखी हो जाते हैं और उन्हें आज भी इस बात का मलाल रहता है कि वह उस रेस को जीत सकते थे लेकिन उनकी एक गलती ने उन्हें असफल बना दिया। दरअसल ओलंपिक जाने से कुछ साल पहले ही मिल्खा सिंह को एक वर्ल्ड लेवल का धावक माने जाने लगा था और मिल्खा सिंह के कोच को पूरा भरोसा था कि इस बार मिल्खा सिंह मेडल जीत कर जरूर आएंगे। इस विश्वास के पीछे एक कारण और था कि मिल्खा सिंह रोम ओलंपिक में भाग लेने से पहले 80 के करीब प्रतियोगिताओं में भाग ले चुके थे जिसमें उन्होंने 77 दौड़ में जीत हासिल की थी और यह अपने आप में एक बहुत बड़ा रिकॉर्ड था। रोम ओलंपिक में सारी दुनिया की नजरें मिल्खा सिंह पर टिकी हुई थी क्योंकि उस समय 400 मीटर दौड़ के सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे मिल्खा सिंह रोम ओलंपिक में क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल दोनों ही रेसों में दूसरे स्थान पर आए थे
मिल्खा सिंह बताते हैं कि जब वह रेस के लिए स्टेडियम में जाते थे तो लोग उन्हें “साधु” बुलाते थे क्योंकि इससे पहले उन लोगों ने सरदार नहीं देखा था। उन्हें लगता था कि उनके सर पर जो जुड़ा है, साधु वाला है। सेमी फाइनल दौर के बाद, फाइनल की दौड़ 2 दिन बाद हुई। इस बीच मिल्खा सिंह काफी दबाव में आ गए और वह नर्वस भी थे। रोम ओलंपिक 400 मीटर फाइनल दौड़ मैं पहले स्थान पर अमेरिका के व्हाटइस डेविस खड़े हुए थे मिल्खा सिंह का स्थान पांचवी लेन में था। उनकी बगल की लेन में एक जर्मन एथलीट्स थे जिन्हें सबसे कमजोर धावक माना जा रहा था। मिल्खा सिंह ने बताया कि उनके बगल में जो धावक था उसको मिल्खा सिंह कई बार हरा चुके थे। ओवरकॉन्फिडेंस में आकर मिल्खा सिंह ने उस 400 मीटर दौड़ को हल्के में ले लिया। मिल्खा सिंह अपने किताब में बताते हैं कि मैं रोम ओलंपिक की 400 मीटर वाली दौड़ में 250 मीटर तक लीड कर रहा था तभी उनके दिल में ख्याल आया कि वह बहुत तेज दौड़ रहे हैं। मिल्खा सिंह कहते हैं कि उनकी एक गंदी आदत पड़ गई थी कि वह रेस के दौरान पीछे आ रहे धावकों को मुड़कर जरूर देखते थे। राष्ट्रमंडल खेल और एशियन गेम्स में इस आदत का कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन रोम ओलंपिक में इस आदत ने उनसे मेडल छीन लिया और वह उस रेस में जीतते – जीतते हार गए। भले ही उस रेस में दौड़ रहे सभी धावकों ने एक नया विश्व कीर्तिमान बनाया था लेकिन हाथ में आया हुआ मेडल गवाने के बाद मिल्खा सिंह को बहुत पछतावा हुआ। दुनिया भर के एथलीट और खेलप्रेमी मिल्खा सिंह को “फ्लाइंग सिख” के नाम से भी जानते हैं।
मिल्खा सिंह को पाकिस्तान में होने वाले दौड़ प्रतियोगिता में, हिस्सा लेने के लिए न्योता भेजा गया तो उन्होंने उसे पहले नकार दिया क्योंकि उनकी यादें पाकिस्तान के साथ बहुत ही बुरी थी। वह उस जगह को कभी भी नहीं देखना चाहते थे, जहां उनके परिवार के लोगों की हत्या की गई थी। अधिकारियों ने मिल्खा सिंह को पाकिस्तान में होने वाली रेस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए मनाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन मिल्खा सिंह किसी की भी बात को सुनने के लिए तैयार नहीं थे। कहते हैं तत्कालीन प्रधानमंत्री “जवाहरलाल नेहरू” ने जब मिल्खा सिंह को समझाया तब मिल्खा सिंह पाकिस्तान जाने के लिए तैयार हो गए। पाकिस्तान में मिल्खा सिंह के जो सबसे तगड़ी प्रतिद्वंदी थे, उस एथलीट को एशिया का सबसे तेज धावक कहा जाता था।
खालिद ने पाकिस्तान के लिए कई सारे बोल मेडल जीते थे मिल्खा सिंह के लिए अब्दुल खालिद को हराना एक बहुत बड़ी चुनौती था। पाकिस्तान के लाहौर में हुए एथलेटिक मीट में जब मिल्खा सिंह मैदान पर उतरे तो पूरे मैदान में सन्नाटा पसर गया था पूरा मैदान खचाखच दर्शकों से भरा हुआ था और जैसे ही वहां पाकिस्तान के धावक अब्दुल खालिद आते हैं पूरे मैदान में मानव जोश आ जाता है, पूरा मैदान शोर से भर जाता है। मिल्खा सिंह पहले थोड़ा सा नर्वस होते हैं लेकिन फिर खुद को संभाल लेते हैं। रेस शुरू होती है। जैसा की अनुमानित था अब्दुल खालिद पहले कुछ सेकेंड तक रेस में आगे में दौड़ते हैं लेकिन फिर मिल्खा सिंह एक मोड़ पर खालिद को पछाड़ देते हैं। वह 200 मीटर की दौड़ में ऐसे दौड़े थे मानो उनके जीवन की आखिरी दौड़ थी। उन्होंने उस दौड़ को जीतने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी। इस दौड़ को खत्म करने से पहले जब मिल्खा सिंह और खालिद लाइन की तरफ बढ़ रहे थे तो अचानक से मिल्खा सिंह ने, कुछ दूरी से Finishing Line की तरफ छलांग मार दी और वह रेस अपने नाम कर ली। इसी दौड़ के बाद पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने कहा था -“आज तुम मिल्खा दौड़े नहीं हो, उड़े हो” और उन्होंने मिल्खा सिंह को “फ्लाइंग सिख” के खिताब से नवाजा था। इसके बाद मिल्खा सिंह पूरी दुनिया में “फ्लाइंग सिख” के नाम से पहचाने जाने लगे।
मिल्खा सिंह ने अपने कैरियर में कई सारे शानदार रेस प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और वहां भारत का नाम ऊंचा किया। इसके लिए उन्हें “पद्मश्री” “खेल रत्न” जैसे सम्मानित पुरस्कार से नवाजा गया। उन्होंने अर्जुन अवॉर्ड लेने से 2001 में इसलिए मना कर दिया क्योंकि उनका मानना था कि वह उन खिलाड़ियों को देना चाहिए जो अभी खेल रहे हैं ताकि उनका इससे उत्साहवर्धन हो सके।