सिन्धुताई सपकाल जीवनी Sindhutai Sapkal biography in hindi – सिंधुताई सपकाल अनाथ बच्चों के लिए समाज कार्य करने वाली मराठी सामाजिक कार्य करता है। सिंधुताई के अपने संघर्षपूर्ण जीवन में कठिन समस्या होने के बावजूद, उन्होंने अनाथ बच्चों को संभालने का कार्य किया है।
सिंधुताई का जन्म 14 नवंबर 1947 को महाराष्ट्र के “वर्धा” जिले में “पिंपरी मेघे” गांव में हुआ था। उनके पिता जी का नाम “अभिमान साठे” था जो कि एक चरवाहा यानी कि जानवरों को चराने वाला इसका काम करते थे। बेटी होने की वजह से सिंधुताई को घर में सभी लोग ना पसंद करते थे क्योंकि वह बेटी थी बेटा नहीं। इसलिए उन्हें घर में “चिंधी” कहकर बुलाते थे परंतु उनके पिताजी सिंधु को पढ़ाना चाहते थे। इसलिए वह सिंधु की मां के खिलाफ जाकर सिंधु को पाठशाला भेजते थे। मां का विरोध और घर की आर्थिक परिस्थितियों की वजह से सिंधु की शिक्षा में बाधाएं आती रही। जब सिंधु चौथी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण हुई, तब आर्थिक परिस्थिति, घर की जिम्मेदारियां और बाल विवाह की वजह से उन्हें पाठशाला छोड़नी पड़ी थी।
सिंधुताई 10 साल की थी तब उनकी शादी 30 वर्षीय “श्रीहरि सपकाल” से हुई। जब वह 20 साल की थी तब तीन बच्चों की मां बन गई थी। गांव के मजदूरों की मजदूरी के पैसे ना देने वाले, गांव के मुखिया की शिकायत सिंधुताई ने जिलाधिकारी से की थी। अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए मुखिया ने श्री हरि को, सिंधुताई को घर से बाहर निकालने के लिए प्रवृत्त किया जबकि वह 9 महीने से गर्भवती थी। उसी रात उन्होंने तबेले में एक बेटी को जन्म दिया। जब वे अपनी मां के घर गई तब उनकी मां ने उन्हें घर में रखने से इंकार कर दिया। उनके पिताजी का देहांत हो चुका था वरना वह अवश्य अपनी बेटी को सहारा देते। सिंधुताई अपनी बेटी के साथ रेलवे स्टेशन पर रहने लगी थी। पेट भरने के लिए भीख मांगती और रात को खुद को और अपनी बेटी को सुरक्षित रखने के लिए श्मशान में ही रहती। सिंधुताई अपने और अपने बच्चे की भूख मिटाने के लिए ट्रेन में गा कर भीख मांगने लगी। उन्होंने देखा कि स्टेशन पर और भी बेसहारा बच्चे हैं जिनका कोई नहीं है। सिंधु ताई उनकी “माई” बन गई। भीख मांगकर जो कुछ भी उन्हें मिलता, वह सब बच्चों में बांट देती। कुछ समय तक तो वह शमशान में रहती रही और वहीं फेंके हुए कपड़े पहनती रही।
कुछ समय बाद उनकी कुछ आदिवासियों से पहचान हो गई। वह उनके हक के लिए भी लड़ने गई और एक बार तो उनकी लड़ाई लड़ने के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक भी पहुंच गई। वह और उनके बच्चे आदिवासियों के बनाए झोपड़ी में रहने लगी। धीरे-धीरे सिंधुताई को “माई” के नाम से जाने लगा और लोग अपनी इच्छा से उन्हें बच्चों के लिए दान देने लगे। सभी बच्चों का अपना घर भी बन चुका था धीरे-धीरे सिंधुताई और भी बच्चों की मां बनने लगी, ऐसे में उन्हें लगा कि कहीं उनकी अपनी बच्ची ममता के रहते, उनके गोद लिए बच्चे के साथ भेदभाव ना कर बैठे इसलिए उन्होंने ममता को “दगडूशेठ हलवाई गणपती” के संस्थापक को दे दिया। ममता भी एक समझदार बच्ची थी उसने इस निर्णय में हमेशा अपनी मां का साथ दिया।
सिंधुताई भजन गाने के साथ साथ भाषण भी देने लगी थी और धीरे-धीरे लोकप्रिय होने लगी थी। सिंधुताई ने अपना पूरा जीवन अनाथ बच्चों के लिए समर्पित किया है इसलिए उन्हें “माई” कहा जाता है। उन्होंने 1050 अनाथ बच्चों को गोद लिया है। उनके परिवार में आज 207 दामाद और 36 बहू हुए हैं 1000 से भी ज्यादा पोते- पोतिया है। उनकी खुद की बेटी वकील है। उनके गोद लिए बहुत सारे बच्चे आज डॉक्टर, अभियंता और वकील है। उनमें से बहुत सारे खुद का अनाथ आश्रम भी चलाते हैं।
सिंधुताई को 273 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। जिनमें “अहिल्याबाई होलकर पुरस्कार” भी शामिल है, जो महाराष्ट्र राज्य द्वारा स्त्रियों और बच्चों के लिए काम करने वाले, समाज कार्यकर्ताओं को मिलता है। पुरस्कार से मिले इन सारे पैसों का उपयोग वह अनाथ आश्रम के लिए करती है। उनके अनाथ आश्रम पुणे, वर्धा, सासवड महाराष्ट्र में स्थित है।
2010 साल में सिंधु ताई के जीवन पर आधारित मराठी फिल्म “मी सिंधुताई सपकाल” बनाई गई जो 54 वे लंदन फिल्म महोत्सव के लिए चुनी गई थी। सिंधुताई के पति जब 80 साल के हो गए, तब वह उनके साथ रहने के लिए आए थे। सिंधुताई ने अपने पति को एक बेटे के रूप में स्वीकार किया, यह कहते हुए कि वह सिर्फ एक मां है। वह कहती हैं कि उनका पति उनका सबसे बड़ा बेटा है।
सिंधुताई कविता भी लिखती है और उनकी कविताओं में जीवन का पूरा सार होता है। वह अपनी मां का आभार व्यक्त करती है, क्योंकि वह कहती है अगर उनकी मां ने उनको पति के घर से निकालने के बाद घर में सहारा दिया होता, तो आज वह इतने सारे बच्चों की मां नहीं बन पाती।