//Baba Banda Singh Bahadur – was a Sikh warrior and a commander of Khalsa army / बाबा बन्दा सिंह
बाबा बन्दा सिंह जीवनी Baba Banda Singh Bahadur biography in hindi

Baba Banda Singh Bahadur – was a Sikh warrior and a commander of Khalsa army / बाबा बन्दा सिंह

बाबा बन्दा सिंह जीवनी Baba Banda Singh Bahadur biography in hindi – वीर योद्धा बाबा बंदा सिंह बहादुर का नाम “माधव दास” था। दशम गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह ने उन्हें ऐसी ताकत बक्शी थी जिस से उन्होंने मुगल सल्तनत को हिला कर रख दिया था। बाबा बंदा सिंह बहादुर जिनके नाम में ही “बहादुर” शब्द है उन्हें सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह ने, मुगलों के जुल्म से लड़ने वाला एक योद्धा बनाया था। बाबा बंदा सिंह बहादुर के वीर योद्धा बनने और उनका बलिदान, दिल को दहला देने वाला है। सिखों ने जुल्मों के आगे घुटने ना टेकने की जो सोच कायम की, उस मे ना जाने कितने सिख वॉरियर्स ने हंसते-हंसते बलिदान दे दिया। मधु दास नाम का एक वैरागी संत, एक बहादुर योद्धा जिस ने दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह के साहबजादो के हत्यारों को सजा दी थी और उनकी शहीदी का बदला लिया था

माधव दास का जन्म 16 अक्टूबर 1670 को जम्मू कश्मीर के “पुंछ” जिले के राजौरी क्षेत्र में हुआ था। उनका असली नाम “लक्ष्मण देव” था, जिन्होंने 15 वर्ष की आयु में ही वैराग्य धारण कर लिया था। मधु दास बचपन में घुड़सवारी, तीरंदाजी और तलवार चलाने की शिक्षा लिया करते थे। एक दिन अचानक शिकार करते हुए उन्होंने एक हिरनी पर बाण चला दिया, दुर्भाग्य से जिस हिरनी को वह बाण लगा था, वह हिरनी गर्भवती थी। बाण लगने के बाद वह हिरनी और उसका बच्चा भी मर गया। इस दृश्य को देखकर माधवदास बहुत दुखी हुए और उन्होंने सब कुछ छोड़ कर तीर्थ यात्रा पर जाने का निर्णय लिया। माधव दास ने सभी तीर्थों की यात्रा की ,बहुत से साधु संतों से ज्ञान और योग साधना सीखी। इसी बीच उनकी मुलाकात जानकी दास बैरागी साधु से हुई और वह उनके शिष्य बन गए।

माधव दास इसके बाद तीर्थ स्थलों का भ्रमण करते रहे। उत्तर भारत में अनेक स्थलों की यात्रा करने के बाद वह महाराष्ट्र के नांदेड़ पहुंचे, जहां वह कुटिया बनाकर रहने लगे और ईश्वर की प्राप्ति के लिए ध्यान करने लगे।

1708 में गुरु गोविंद सिंह जी मुगल बादशाह बहादुर शाह के साथ “दक्कन” आए थे। गुरुजी को पता चला कि माधवदास नांदेड़ में है। इसके बाद वह माधवदास की कुटिया पहुंचे। वहां गुरु जी ने सिखों को लंगर बनाने का आदेश दिया। यह खबर सुनकर माधव दास जो कुछ दूरी पर था बहुत क्रोधित हो गया। माधव दास बहुत से तंत्र-मंत्र और विद्या जानता था। उसने क्रोध में गुरुजी पर उन विद्याओं का प्रयोग किया, लेकिन उसने देखा कि उसके तंत्रों मंत्रों का कोई असर नहीं हो रहा तब वह गुरु जी के चरणों में गिर पड़ा। गुरुजी ने उससे पूछा कि बताओ माधवदास तुम कौन हो? तब मधु दास ने कहा कि मैं आपका बंदा। गुरुजी जानते थे कि वह योद्धा है। जिसका जन्म पूजा -पाठ और उस तरह के धार्मिक कर्मकांड के लिए नहीं हुआ, जो वह कर रहा था, बल्कि उसका जन्म जुलम के खात्मे के लिए हुआ था। गुरु जी ने माधवदास को सितंबर 1708 को अमृत पान करवाया और उसे नया नाम “बंदा सिंह बहादुर” दिया।

गुरुजी मुगल बादशाह बहादुर शाह के साथ “दक्कन” आए थे। वह चाहते थे कि मुगल बादशाह पंजाब में “सरहिंद” के नवाब “वजीर खान” और उसके दूसरे साथियों को सजा दे, जिसने गुरु जी के “दोनों छोटे साहब- जादो” को दीवारों में चुनवा कर कत्ल करवा दिया था और उनकी माता “गुजरी” को भी मार डाला था। लेकिन जब उन्होंने देखा कि मुगल बादशाह बहादुर शाह की ऐसा करने की कोई इच्छा नहीं है तब उन्होंने बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के अभियान की जिम्मेवारी दी। गुरुजी ने बंदा सिंह बहादुर को अपनी तलवार, धनुष अपनी तरकस के पांच तीर, नगाड़ा निशान साहिब और अपने हाथों से लिखा एक हुकमनामा देकर पंजाब रवाना किया। गुरु जी के द्वारा दिए उस हुकमनामा में सभी सीखो को बंदा सिंह बहादुर के साथ जुड़ने के लिए कहा गया था ताकि पंजाब में मुगलों के जन्म को खत्म किया जा सके। बंदा सिंह के साथ “पांच हजूरी सिखों” को भी भेजा गया, ताकि पंजाब में सिखों को बताया जा सके कि बंदा सिंह को गुरु जी ने यह जिम्मेवारी दी है और उन्हें सरहद पर चढ़ाई करने की पूरी ताकत बक्शी है।

महाराष्ट्र से पंजाब पहुंचने में बंदा सिंह को लगभग 1 साल का समय लगा था। हालांकि वह चार या पांच महीने में पंजाब पहुंच सकते थे। लेकिन मुगल बादशाह ने अपने सैनिक उनके पीछे लगा दिए थे जिस कारण वह छुपते हुए और रास्ते में सिखों को अपने साथ मिलाते हुए पंजाब की ओर बढ़ रहे थे। रास्ते में बंदा सिंह को खबर मिली कि गुरुजी नहीं रहे। इसके बाद बंदा सिंह की क्रोध की अग्नि और अपने गुरु का आदेश पूरा करने की इच्छा प्रबल हो गई और वह सरहद की ओर बढ़ने लगे। रास्ते में बंदा सिंह बहादुर ने कुछ डाकुओं को भी सबक सिखाया और वहां के लोगों को उनके आतंक से मुक्ति दिलाई। सरहद की ओर बढ़ते हुए बंदा सिंह बहादुर के साथ सिख जुड़ते जा रहे थे। इसी बीच बंदा सिंह ने “सोनीपत” और “कैथल” में मुगलों के खजाने को लूट लिया और उन्हें लोगों में बांट दिया। “टोहाना” में बंदा सिंह मालवा ने सिखों को संदेश भिजवाया हैं कि सरहद के वजीर खान को खत्म करने के लिए सभी सिखों को एक साथ आना होगा।

बंदा सिंह बहादुर ने सबसे पहले “समाना” पर कब्जा किया। समाना मे गुरु तेग बहादुर के शीश काटने वाले, “जल्लाद जलालुद्दीन” का घर था। इसी जल्लाद के बेटे ने गुरु गोविंद सिंह जी के छोटे साहबजादे का भी कत्ल किया था। गुरु गोविंद सिंह जी को धोखे से , आनंदपुर खाली करवाने वाला “अली हुसैन” भी “समाना” का ही था। समाना की लड़ाई में बंदा सिंह बहादुर ने अपने सिख योद्धाओं के साथ, वहां की मुगल सेना को चीटियों की तरह मसल दिया। इसके बाद “कुंजपुरा गुर्रम धासक्का” पर भी खालसा फौज का परचम लहरा दिया। एक के बाद एक लड़ाइयां जीते हुए और सिखों की फौज को बड़ा करते हुए अब बंदा सिंह बहादुर की फौज “सरहिंद” पहुंच गई थी।

“सरहिंद” को कब्जे में करना और उसे जीतना आसान नहीं था। बंदा सिंह ने 3 महीने तक अपनी सेना को मजबूत किया और वजीर खान की कमजोरियों का पता लगाया। बंदा सिंह बहादुर की आर्मी में सैनिकों की संख्या 30000 से 40000 तक पहुंच गई थी, लेकिन बंदा सिंह के पास हाथी, घोड़े और बंदूके नहीं थी। वही वजीर खान ने भी इस लड़ाई को “जिहाद” का नाम देकर अपने साथ बहुत से मुसलमानों को जोड़ लिया था। उसके पास आर्मी, हाथी, घोड़े, तीरंदाज और बंदूके भी थी। इस तरह वजीर खान के पास भी 30,000 से 40,000 की सेना थी।
सरहिंद से 20 किलोमीटर दूर “छप्पर चेरी” नामक स्थान पर दोनों सेनाओं की टक्कर हुई। एक तरफ गुरु के सिख, मुगलों के जुल्म के खिलाफ लड़ रहे थे, दूसरी तरफ धर्म को अत्याचार करने का लाइसेंस बनाने वाले मुगल थे। वजीर खान और बंदा सिंह बहादुर की सेना में जबरदस्त युद्ध हुआ और अंत में सिखों की जीत हुई। पंजाब में जुल्म और सितम का सबसे बड़ा नाम “वजीर खान” इस लड़ाई में मारा गया।

इस हादसे से मुगल बादशाह बहादुर शाह तिलमिला उठा और वह दिल्ली आ गया ताकि सिखों का पंजाब से प्रभाव खत्म किया जा सके। बहादुर शाह ने सभी गवर्नर को पंजाब पर चढ़ाई करने का आदेश दे दिया। जब बंदा बहादुर पंजाब के बाहर था, तब मुगल सेना ने सरहद पर कब्जा कर लिया। मुगलों से अपनी आधी लड़ाई के लिए बंदा बहादुर ने, सेना को “लोह गढ़” में इकट्ठा किया। मुगल इस लड़ाई में जीत गए और उन्होंने “लोह गढ़” के किले पर कब्जा कर लिया। इस लड़ाई में बंदा सिंह बहादुर बचकर निकलने में कामयाब रहे। इसके बाद बंदा सिंह बहादुर लंबे समय तक मुगलों से छुपते रहे। अंत में “गुरदास नंगल” गांव में उनके छिपने की खबर मुगलों को लग गई। मुगल सेना ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया और वह पकड़े गए।

बंदा सिंह बहादुर को लोहे के पिंजरे में बंद करके दिल्ली लाया गया। दिल्ली पहुंचने पर मुगलों ने उन्हें अपना धर्म बदलने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्हें मजबूर करने के लिए उनके सामने ही उनके छोटे से बेटे की हत्या कर दी गई, फिर भी वह नहीं झुके। फिर चिमटीओं से उनकी त्वचा नोची गई लेकिन उन्होंने अपना सर नहीं झुकाया। गर्म सलाखों से उनकी आंखें निकाल दी गई। उन्हें बहुत यातनाएं दी गई ताकि वह अपना धर्म छोड़कर मुस्लिम धर्म कबूल कर ले। लेकिन एक सच्चे गुरु सिख ने उन यातनाओ की बिल्कुल परवाह नहीं की और अंत में उन्हें कत्ल कर दिया गया।

बंदा सिंह बहादुर ने अपने गुरु के वचनों का मान रखते हुए छोटे साहबजादे की हत्या का बदला लिया। उन्होंने मुगलों को, जो पूरे भारत पर अपना अधिकार कर चुके थे नाकों चने चबवा दिए। बंदा सिंह बहादुर की शहादत को पूरा हिंदुस्तान हमेशा याद रखेगा और मुगलों के उस दौर को भी याद रखेगा, जब धर्म मानवता से बड़ा हो जाता है, तब सत्ताए इंसानियत की सीमाएं लांघ जाती हैं। धर्म के नाम पर ही लोगों पर अत्याचार होने लगते हैं। ऐसे में धर्म की रक्षा के लिए भगवान धरती पर गुरु, पीर, फकीर और योद्धाओं का रूप लेकर जन्म लेते रहते हैं।