Dhirubhai Ambani success story in hindi – धीरूभाई अंबानी को “धीरज लाल हीराचंद अंबानी” के नाम से भी जाना जाता है। इनकी ख्याति देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी फैली हुई है।
धीरूभाई अंबानी(Dhirubhai Ambani) बिजनेस की दुनिया के बेताज बादशाह और बिजनेसमैन की लिस्ट में शुमार है। जिन्होंने अपने दम पर सपने देखे और उन्हें हकीकत में बदल कर पूरी दुनिया के सामने यह साबित कर दिया कि अगर स्वयं पर विश्वास हो तो निश्चित रूप से सफलता तुम्हारे कदम चूमती है। धीरुभाई अंबानी(Dhirubhai Ambani) का मानना था कि “जो सपने देखने की हिम्मत करते हैं, वही पूरी दुनिया को जीत सकते हैं।” धीरुभाई ने ना केवल बिजनेस की दुनिया में, अपितु भारत को एक उद्योग क्षेत्र में एक नई पहचान दी। एक गरीब खानदान में पैदा हुए धीरूभाई अंबानी ने बड़े बिजनेसमैन बनने के सपने देखे। अपनी कठिन मेहनत के बल पर उन्हें हकीकत में बदला।
धीरूभाई अंबानी(Dhirubhai Ambani) का जन्म 8 दिसंबर 1932 को, गुजरात राज्य के जूनागढ़ के पास, एक छोटे से गांव “चोरवार्” में हुआ था। उनकी मां “जमुना बेन” एक घरेलू महिला थी। उनके पिता “गोवर्धन अंबानी” एक अध्यापक थे। जिनके लिए अपने परिवार का लालन-पालन करना काफी चुनौतीपूर्ण था। नौकरी से उनके घर खर्च के लिए पैसे पूरे नहीं पड़ते थे। चार भाइयों के बीच धीरुभाई का पढ़ना मुश्किल था। ऐसी स्थिति में धीरुभाई को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। धीरूभाई अंबानी ने घर का खर्च चलाने के लिए अपने पिता के साथ भजिया बेचना शुरू कर दिया।
धीरू भाई ने गुजरात की “कोकिलाबेन” से शादी की थी। इनसे धीरुभाई के दो बेटे और दो बेटियां थी। बेटों के नाम मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी और बेटियों के नाम नीना अंबानी और दीप्ति अंबानी है। धीरूभाई ने अपने हालातों को देखते हुए सबसे पहले फल और नाश्ता बेचने का बेचने का काम किया। उन्होंने गांव के पास ही एक धार्मिक स्थल पर पकौड़े बेचने का काम करना शुरू कर दिया। लेकिन यहां पर्यटक साल में कुछ ही दिन वहां आते थे तो वहां यह काम ज्यादा नहीं चलता था जिससे धीरूभाई अंबानी(Dhirubhai Ambani) को यह काम बंद करना पड़ा।
किसी भी काम में सफल न होने की वजह से उन्होंने अपने पिता के कहने पर एक नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी। धीरुभाई ने अपने बड़े भाई “रामणीक” की मदद से यमन में नौकरी करने का फैसला किया। उन्होंने “Shell” के पेट्रोल पंप पर, अपनी पहली नौकरी करीब 2 वर्ष तक की। अपनी कुशलता व योग्यता से धीरुभाई मैनेजर के पद तक पहुंच गए। हालांकि वहां काम करते हुए भी वह अक्सर व्यापार के रास्ते तलाशते रहते थे।
धीरुभाई अंबानी(Dhirubhai Ambani) के बिजनेस के प्रति रुझान का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब शैल कंपनी में रहे तो वह वहां 300 रुपए प्रतिमाह के हिसाब से नौकरी करते थे। उस दौरान काम करने वाले कर्मचारियों को चाय महज 25 पैसे में मिलती थी, लेकिन धीरूभाई वह चाय ना खरीदकर रेस्टोरेंट में एक रुपए की चाय पीने जाते थे। वह वहां आने वाले बड़े बड़े बिजनेसमैन की बातें सुनने की वजह से, चाय पीने जाया करते थे ताकि बिजनेस की बारीकियों को समझ सके।
धीरूभाई अंबानी(Dhirubhai Ambani) ने लंदन की एक कंपनी में यमन में प्रसिद्ध चांदी के सिक्कों की गलाई, यह जानने के लिए शुरू की थी कि चांदी के सिक्कों का मूल्य चांदी से ज्यादा होता है। जब इस बात की खबर यमन सरकार को लगी तो तब तक वह अच्छा खासा मुनाफा कमा चुके थे।
धीरूभाई अंबानी(Dhirubhai Ambani) ने अपने जीवन में तमाम संघर्षों को पार कर, सफलता की ऊंचाइयों को छुआ था। जब धीरूभाई अंबानी यमन में नौकरी कर रहे थे। उसी दौरान यमन की आजादी के लिए, आंदोलनों की शुरुआत हो गई थी। हालात इतने बिगड़ गए थे कि यमन में रह रहे सभी भारतीयों की नौकरी छोड़नी पड़ी थी। धीरूभाई भी अपनी नौकरी छोड़ कर वापस भारत आ गए।
व्यापार करने का ख्वाब देखने वाले धीरूभाई अंबानी(Dhirubhai Ambani) ने भारत में ही व्यापार करने का फैसला किया। परंतु उनके पास व्यापार करने के लिए पर्याप्त रकम नहीं थी। उन्होंने अपने मामा “त्रियंबक लाल दामिनी” के साथ मिलकर पॉलिस्टर धागे व मसालों के आयात व निर्यात का व्यापार शुरू कर दिया।इसी काम के साथ, महज 15 हजार रुपया की राशि के साथ “Reliance Commertial Corporation” की शुरुआत, एक छोटे से ऑफिस से की थी। जो “Narsinathan street” में बनाया था। यहीं से रिलायंस कंपनी(Reliance Company) का उदय हुआ। उस समय दो सहकर्मी धीरूभाई अंबानी के साथ काम में मदद करते थे। धीरूभाई और त्रियंबक लाल दामिनी दोनों का व्यापार करने का तरीका व स्वभाव अलग-अलग था।
साल 1965 में धीरूभाई ने त्रियंबक लाल दामिनी के साथ भागीदारी खत्म कर दी और अपने दम पर व्यापार को आगे बढ़ाया। त्रियंबक लाल दामिनी एक सतर्क व्यापारी थे उन्हें सूत बनाने केेे काम में कोई रुचि नहीं थी। जबकि धीरुभाई को रिस्क उठाने वाला व्यापारी माना जाता था। धीरुभाई ने सूत के व्यापार में अपनी किस्मत आजमाई और सकारात्मक सोच के साथ इसकी शुरुआत कर दी। इसमें उन्हें बहुत मुनाफा हुआ। धीरूभाई अंबानी को अब तक कपड़े के व्यापार की अच्छी खासी समझ भी आ गई थी।
व्यापार मे अच्छे मौके मिलने की वजह से उन्होंने 1966 में अहमदाबाद के “नरोदा” में, एक मिल की शुरुआत कर दी। जहां कपड़ा बनाने में पॉलिस्टर के धागे का इस्तेमाल हुआ और फिर धीरूभाई अंबानी ने इस ब्रांड का नाम “Vimal” रखा और इसका पूरे भारत में जमकर प्रसार व प्रचार किया गया। धीरे-धीरे भारत में यह ब्रांड घर-घर में पहचाना जाने लगा।
साल 1975 में विश्व बैंक की टेक्नीशियन ने “Reliance Textile” इलाके का दौरा किया और उसे विकसित देशों के मानकों से भी अच्छा बताया। 1980 में धीरूभाई ने सरकार से “पॉलिस्टर फिलामेंट” का लाइसेंस ले लिया और उसके बाद वह लगातार आगे बढ़ते रहे और उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। रिलायंस कपड़े के साथ ही पेट्रोलियम और दूरसंचार जैसी कंपनी के साथ भारत की सबसे बड़ी कंपनी बन गई ।
भारत में “Equity Cult का श्रेय भी धीरुभाई को जाता है। जब 1977 में रिलायंस ने IPO जारी किया, तब 58000 से भी ज्यादा निवेशकों ने उस में निवेश किया। धीरुभाई ने अपने व्यापार का विस्तार अलग-अलग क्षेत्रों में किया इनमें मुख्य हैं —–
Petrochemicals, Telecommunications, Information technology, energy, electricity, Retail, Textile Infrastructure services, Capital markets, Logistics भी शामिल है रिलायंस कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए धीरूभाई(Dhirubhai Ambani) के दोनों बेटे ने मां को का पूरी तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं।
एक कमरे से शुरू हुई कंपनी 2012 तक करीब 85000 कर्मचारी काम कर रहे थे जबकि सेंट्रल गवर्नमेंट के पूरे टैक्स में से 5% रिलायंस देती थी।
2012 में संपत्ति के हिसाब से दुनिया के 500 सबसे अमीर व विशाल कंपनी में, रिलायंस को भी शामिल किया गया था।
धीरुभाई के जीवन पर आधारित एक फिल्म बनाई गई इसका नाम “गुरु” था। इस फिल्म में अभिषेक बच्चन ने उनकी भूमिका निभाई थी।
लगातार बढ़ते व्यापार के बीच उनका स्वास्थ्य खराब होने लगा। 6 जुलाई 2002 को उनकी मृत्यु हो गई। जब उनकी मृत्यु हुई, तब रिलायंस 62000 करोड़ की कंपनी बन चुकी थी। उनके व्यापार को उनके बड़े बेटे मुकेश अंबानी ने संभाला।
धीरुभाई का कहना था —–
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