सुशील कुमार जीवनी – Sushil Kumar biography in hindi – हमारे देश में कुछ ऐसे नाम है जिनको दुनिया में अपनी पहचान बताने की जरूरत नहीं है क्योंकि दुनिया उन्हें उनके “हुनर” से जानती है। खेल जगत में अपना लोहा मनवा चुके सुशील कुमार एक ऐसा पहलवान है जिसने हर बार अपने देश भारत का सर ऊंचा किया है। सुशील कुमार के पिता दीवान सिंह दिल्ली नजफगढ़ के पास “बाराकोला” गांव में दिल्ली परिवहन निगम में बसें चलाया करते थे।
26 मई, 1983 को दीवान सिंह और कमला के घर में “सुशील कुमार सोलंकी” का जन्म हुआ। सुशील कुमार की माता कमला ग्रहणी है परंतु पिता दीवान सिंह कुश्ती के प्रति अत्यधिक उत्साही थे। सुशील कुमार के पिता और उनके परिवार के कई सदस्य रेसलर रह चुके हैं। कहते हैं कि–
” पसीने से सींच कर फसल उगानी पड़ती है क्योंकि मां के पेट में कोई पहलवान नहीं होता।”
परिवार के लोगों को देखकर सुशील को रेसलिंग के प्रति प्रेरणा मिली और उनका रुझान कुश्ती की तरफ बढ़ने लगा। दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि हासिल करने वाले सुशील बचपन से ही रेसलिंग से जुड़ गए थे। उनकी ट्रेनिंग दिल्ली में ही उनके गुरु पहलवान “सतपाल” के पास हुई। सुशील के रिश्तेदार “संदीप” भी रेसलिंग करते थे। उनके साथ सुशील ने रेसलिंग के दांव सीखे। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी इसलिए संदीप ने बाद में पहलवानी को अलविदा कह दिया क्योंकि आर्थिक कमी के चलते परिवार सिर्फ एक ही रेसलर को आर्थिक मदद मुहैया करा सकता था। इसी वजह से संदीप ने अपने कैरियर को सुशील के लिए त्याग दिया।
पहलवानी के लिए अपने बेटे की कड़ी लगन देखकर सुशील के पिता ने सुशील को 14 साल की उम्र में “छत्रसाल स्टेडियम” मे स्थित अखाड़े में पहलवानी के दांवपेच सीखने के लिए भर्ती कर दिया। जहां उनके प्रारंभिक गुरु “यशवीर” और “रामपाल” ने उन्हें पहलवानी के प्रारंभिक गुर सिखाए। वहां सुशील को एक छोटे से कमरे में सिमटकर 20 और अन्य नौसिखिया पहलवानों के साथ रहना पड़ता था। इसके अलावा वहां वह उस कमरे में चूहों और कॉकरोचों से भी वह परेशान थे लेकिन अपनी कड़ी मेहनत के दम पर उन्होंने कम पैसों और सामान्य ट्रेनिंग सुविधा में भी अपना कौशल बढ़ाया।
सुशील कुमार ने जूनियर स्तरों में प्रतिस्पर्धा शुरू की और साल 1998 में उन्होंने “विश्व क्रेडिट खेलों” में “स्वर्ण पदक” जीता। इसके 2 साल बाद उन्होंने “एशियाई जूनियर कुश्ती चैंपियनशिप” में फिर से “स्वर्ण पदक” जीतने के लिए देश के सबसे होनहार युवा कुश्ती के प्रतिभागी बनकर उभरे। सुशील ने 2006 में “दोहा एशियाई खेलों” में “कांस्य पदक” जीतकर अपनी प्रतिभा का पहला परिचय दिया। दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में प्रतिदिन सुबह 5:00 बजे से कुश्ती के दांव पर सीखने वाले “अर्जुन पुरस्कार” विजेता सुशील ने मई 2007 में “सीनियर एशियाई चैंपियनशिप” में “रजत पदक” जीता और फिर कनाडा में आयोजित “राष्ट्रमंडल कुश्ती प्रतियोगिता” में “स्वर्ण पदक” हासिल किया।
सुशील ने पाकिस्तानी पहलवान “कमरा साहब” को फाइनल मुकाबले में मात्र 1 मिनट 47 सेकंड में पटखनी देकर राष्ट्रमंडल खेल 2014 में “स्वर्ण पदक” हासिल किया।
उन्होंने कुश्ती को एक तपस्या बताया और कहा कि हर माता-पिता को अपने बच्चों को खेल से जोड़ना चाहिए। सुशील कुमार का “रियो ओलंपिक 2016” में खेलने का सपना टूट गया था क्योंकि 74 किलोग्राम वर्ग में नरसिंह यादव और सुशील कुमार के बीच विवाद छिड़ गया। सुशील ने दिल्ली हाईकोर्ट से गुहार लगाई थी कि “रियो ओलंपिक” में जाने के लिए ट्रायल कराया जाए और उनमें और नरसी में जो भी जीतेगा उसी को रियो के लिए भेजा जाए लेकिन जज ने ट्रायल की इस की मांग को ठुकरा दिया। इस पूरे मामले में अदालत ने “भारतीय कुश्ती संघ” की राय भी मांगी थी और संघ ने भी ट्रायल न कराने की बात कही थी। दरअसल नरसी ने साल 2015 में “लॉस वेगास” में विश्व चैंपियनशिप में “कांस्य पदक” जीतकर भारत के लिए कोटा हासिल किया था, इसलिए महासंघ यह चाहता था कि नरसी ही आगे रियो के लिए भेजा जाए। इस पूरे विवाद के समापन के बाद सुशील ने नरसी को बधाई देते हुए कहा कि -“बहुत खुशी की बात है मेरा समर्थन पहले भी था आज भी है और कल भी रहेगा । जाओ मेरे और मेरे देश के लिए खेलो।”
सुशील ने अपने कैरियर में कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया और उनमें जीत भी हासिल की। फिर चाहे 2008 के बीजिंग ओलिंपिक में “ब्रॉन्ज मेडल”, 2012 के लंदन ओलंपिक में भारत के लिए “सिल्वर मेडल” लाना हो या फिर साल 2014 में खेले गए कॉमनवेल्थ गेम में “गोल्ड मेडल “लाना हो।
महाबली “सतपाल” से पहलवानी के गुर सीखने वाले सुशील ने हर मुकाम पर अपने आपको साबित किया है । सुशील ने महाबली सतपाल की बेटी “शावी” से शादी की है। दरअसल पहलवान के गुर सीखने के लिए सुशील रोजाना उनके घर जाते थे परंतु खास बात यह थी कि सुशील ने शादी से पहले अपने गुरु की बेटी को देखा तक नहीं था क्योंकि सुशील काफी शर्मीले मिजाज के थे। उन्होंने एक इंटरव्यू में इस बारे में जिक्र करते हैं बताएं कि जब सगाई के दौरान उन्होंने शावी को पहली बार देखा था तो वह समझ गए थे कि दोनों की अच्छी जमेगी।
देश के लिए शानदार खेल दिखाने के लिए भारत सरकार ने जुलाई 2009 में सुशील को देश का सर्वोच्च खेल सम्मान “राजीव गांधी खेल रत्न” से सम्मानित किया। सुशील कुमार रेलवे में असिस्टेंट कमर्शियल मैनेजर के पद पर कार्यरत है। कहते हैं
“एक सपना किसी जादू या मैजिक से हकीकत नहीं बन सकता, इसमें पसीना, कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प लगता है।”
सुशील कुमार जिन्होंने बचपन में एक सफल पहलवान बनने का सपना देखा था, उन्होंने खुद से और दूसरों से प्रेरणा लेकर एक दृढ़ संकल्प बनाया था और अखाड़े में लगातार कई घंटों तक पसीना बहाया और यह साबित कर दिया कि अखाड़े की खुशबूदार मिट्टी पहलवानों की जवानी को निखारती है।
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