Navratri Utsav in hindi- नवरात्रि साल में दो बार मनाया जाने वाला इकलौता उत्सव है। एक नवरात्रि गर्मी की शुरुआत मैं चैत्र माह में आती है और दूसरी नवरात्रि शीत के शुरुआत में आश्विन माह में आती है ।
गर्मी और जाड़े के मौसम में सौर ऊर्जा हमें सबसे अधिक प्रभावित करती है क्योंकि फसल पकने, वर्षा जल के लिए बादल संगठित होने और ठंड से राहत देने आदि जैसे जीवन उपयोगी कार्य इस दौरान संपन्न होते हैं। इसलिए पवित्र शक्तियों की अराधना करने के लिए यह सबसे अच्छा समय माना जाता है।
प्रकृति में बदलाव के कारण हमारे तन ,मन और मस्तिष्क में भी बदलाव आते हैं। इसलिए शारीरिक व मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए हम उपवास रखकर शक्ति की पूजा करते हैं।
आश्विन माह में नवरात्रि को “सत्य व धर्म की जीत” के रूप में मनाया जाता है और चैत्र माह में इसे भगवान “श्री राम के जन्म उत्सव “के रूप में मनाया जाता है।
शक्ति उपासना का पर्व नवरात्रि क्यों मनाया जाता है और मां दुर्गा की आराधना क्यों की जाती है इसको लेकर दो कथाएं प्रचलित हैं।
पहली कथा के अनुसार— लंका के युद्ध में ब्रह्मा जी ने श्रीराम से ,रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर के देवी को प्रसन्न करने को कहा । ब्रह्मा जी द्वारा चंडी देवी के पूजन व हवन के लिए दुर्लभ 108 नीलकमल की व्यवस्था भी कर दी गई।
वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरत्व प्राप्त करने के लिए चंडी का पाठ करना शुरू कर दिया ।रावण ने मायावी तरीके से ,पूजा स्थल से हवन सामग्री में से, एक नीलकमल गायब कर दिया । जिससे श्री राम की पूजा बाधित हो जाए ।श्रीराम को अपना संकल्प टूटता नजर आया और सभी मे यह भय व्याप्त हो गया कि कहीं मां दुर्गा कुपित ना हो जाए ।तभी श्री राम को याद आया कि उन्हें “कमल नयन लोचन “भी कहा जाता है उन्होंने अपने नेत्र को मां की पूजा में समर्पित करने की बात सोची ।श्रीराम ने जैसे ही अपने बाण से, अपने नेत्र को निकालना चाहा ,तभी मां दुर्गा प्रकट हुई और कहा— मैं तुम्हारी पूजा से प्रसन्न हुई हूं और उन्होंने भगवान राम को विजयश्री का आशीर्वाद दे दिया ।
दूसरी तरफ रावण की पूजा के समय हनुमान जी ब्राह्मण बालक का रूप बनाकर वहां पहुंच गए और पूजा कर रहे ब्राह्मणों को, एक श्लोक “जयादेवी भूत हरणी” के , “हरणी” के स्थान पर “करणी” का उच्चारण करवा दिय। हरणी का अर्थ होता है –भक्तों की पीड़ा हरने वाली और करणी का अर्थ होता है– पीड़ा देने वाली ।जिससे मां दुर्गा नाराज हो गई और रावण को श्राप दिया कि रावण तेरा नाश हो जाएगा।
एक अन्य कथा के अनुसार —महिषासुर की उपासना से खुश होकर देवताओं ने महिषासुर को अजेय होने का वरदान प्रदान किया। इस वरदान को प्राप्त करके महिषासुर ने इसका दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और नरक को, स्वर्ग के द्वार तक विस्तारित कर दिया।
महिषासुर ने सूर्य ,चंद्र ,अग्नि ,वायु ,वरुण और अन्य देवताओं के अधिकार छीन लिए और स्वर्ग लोक का मालिक बन बैठा। देवताओं को महिषासुर के भय से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ा। तब महिषासुर के दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने मां दुर्गा की रचना की ।महिषासुर का वध करने के लिए देवताओं ने अपने सभी अस्त्र शस्त्र मां दुर्गा को समर्पित कर दिए ।जिससे वह बलवान हो गई । 9 दिनों तक उनका महिषासुर से संग्राम चला और अंत में महिषासुर का वध करके मां “महिषासुर मर्दिनी कहलाए।