Diwali Festival – दीपावली का त्यौहार कार्तिक अमावस्या को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। दीपावली, दशहरे के ठीक 20 दिन बाद आती है। यह त्यौहार ना केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है।
हिंदू समुदाय के लोग दिवाली क्यों मनाते हैं:
- त्रेता युग में भगवान श्री राम का 14 वर्ष के लिए वनवास हुआ। वनवास के दौरान अनेक यातनाओं को झेलते हुए, श्री राम लंका पहुंचे। जहां लंकापति रावण का वध करने के पश्चात भगवान राम अमावस्या को ही अयोध्या लौटे थे। इस अवसर पर सारे अयोध्या वासियों ने, भगवान राम के वापिस अयोध्या लौटने पर, खुशी मनाते हुए घी के दीपक जलाए थे। तभी से “दीपावली” का पर्व मनाया जाने लगा है।
- समुद्र मंथन के समय कार्तिक अमावस्या को ही शिव सागर से, महालक्ष्मी जी उत्पन्न हुई थी। भगवान विष्णु जी व मां लक्ष्मी जी का विवाह भी इसी दिन संपन्न हुआ था। तभी से दीपावली का त्यौहार मनाते हुए ,माता लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। माता लक्ष्मी धन की देवी हैं। इसलिए हर घर में दीप जलाने के साथ , माता लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। जिससे उस घर में माता लक्ष्मी का सदा निवास बना रहे।
- द्वापर युग में एक राक्षस नरकासुर हुआ करता था। वह बहुत ही अत्याचारी था। एक बार उसने 16000 युवतियों का अपहरण कर लिया। तब भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया और उन 16000 युवतियों को नरकासुर के चंगुल से मुक्त कराया था। यह भी कार्तिक मास की अमावस्या का ही दिन था। कृष्ण भक्ति धारा के लोग इस दिन को दीपावली के रूप में मनाते हैं।
सिक्ख समुदाय के लोग दीपावली क्यों मनाते हैं
एक बार की बात है जब मुगल बादशाह जहांगीर ने 52 हजार राजाओं को ग्वालियर के किले में बंदी बनाकर रखा था। इस दौरान सिखों के छठे गुरु, गुरु हर गोविंद सिंह जी ने अपनी सूझबूझ व बुद्धिमान से उन 52 हजार राजाओं को जहांगीर की कैद से मुक्त कराया था। तभी से सिख समुदाय के सभी लोग दीपावली का त्यौहार (Diwali Festival) बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं।
जैन धर्म के 24वें और अंतिम “तीर्थंकर महावीर स्वामी” को अमावस्या की रात को ही निर्वाण की प्राप्ति हुई थी। इसलिए दीपावली के इस त्योहार को जैन समुदाय के लोग भी बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। जैन ग्रंथों के अनुसार भगवान महावीर स्वामी ने दीपावली वाले दिन अर्थात कार्तिक अमावस्या के दिन मोक्ष में जाने से पहले, आधी रात को अंतिम उपदेश दिया था। जिसे “उत्तराध्यान सूत्र” के नाम से जाना जाता है। भगवान महावीर स्वामी के मोक्ष में जाने के बाद वहां उपस्थित जैन धर्मावलंबियों ने दीपक जलाकर रोशनी करते हुए खुशियां मनाई थी। जैन धर्म मे यह त्यौहार त्याग व तपस्या के रूप में मनाया जाता है। इस दिन जैन धर्म के लोग भगवान महावीर स्वामी की पूजा विशेष रूप से करते हैं। उनके त्याग व तपस्या को याद करते हैं। सभी जैन मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।
दीपावली का त्यौहार (Diwali Festival) पूरे हर्षोल्लास मनाया जाता है इस दिन घरों में दीपक जलाए जाते हैं। पटाखे छोड़े जाते हैं, और माता लक्ष्मी का विशेष पूजन करके मां लक्ष्मी को, प्रसन्न करने का प्रयास किया जाता है। दीपावली के दिन माता लक्ष्मी के पूजन के अलावा भगवान गणेश व कुबेर जी का भी पूजन किया जाता है। भगवान गणेश बुद्धि के देवता है। इसलिए हम गणेश जी के सामने नतमस्तक होकर प्रार्थना करते हैं कि हम सदैव सद्बुद्धि के मार्ग की ओर चलें। कुबेर जी धन के देवता ,होने के कारण कुबेर जी का पूजन किया जाता है। जिससे कुबेर जी की दया दृष्टि हम पर बनी रहे, और हमारा भंडार सदा भरा रहे। कारण कोई भी हो ,कोई भी तथ्य हो ,पर यह बात निश्चित है कि दीपक आनंद प्रगट करने के लिए जलाए जाते हैं। खुशियां बांटने के लिए जलाए जाते हैं। भारतीय संस्कृति में दीपक को सत्य और ज्ञान का सूचक माना जाता है। क्योंकि दीपक स्वयं जलता है परंतु दूसरों को प्रकाश देता है। दीपक की इसी विशेषता के कारण धार्मिक ग्रंथों में दीपक को ब्रह्मस्वरूप माना गया है।
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