//Mamata Banerjee – Chief Minister of West Bengal / ममता बनर्जी
ममता बनर्जी की जीवनी - Mamata Banerjee biography in hindi

Mamata Banerjee – Chief Minister of West Bengal / ममता बनर्जी

ममता बनर्जी की जीवनी – Mamata Banerjee biography in hindi – विद्रोह की लकीर को खींचने के बाद, सियासी शक्ल को मोड़कर सत्ता तक पहुंचाने वाली ममता बनर्जी की सियासी कहानी, बंगाल से लेकर दिल्ली तक फैली हुई है। पिछले 4 दशक में देश की सियासत बहुत तेजी से बदली है। बंगाल की जमीन पर राजनीतिक पानी बहुत तेजी से बहा। इसी के समानांतर ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) का राजनीतिक तरीका भी बदलता चला गया। बंगाल में वामपंथियों को सत्ता से उखाड़ फेंकने वाली ममता दीदी की राजनीतिक शुरुआत स्कूल के समय से ही हो गई थी। मुकद्दर ने पैर के नीचे, संघर्ष की ऐसी जमीन बिछा दी कि जीवन यापन के लिए दूध तक बेचना पड़ा।

छोटी सी उम्र में ममता के पिता का देहांत हो गया था। ममता बनर्जी ने मां की मदद और जीवन यापन के लिए दूध बेचना का तरीका चुना था। इसी संघर्ष ने ममता को काफी मजबूत किया। आगे वैकल्पिक सियासत की राहें ममता के इंतजार में थी।

दक्षिण कोलकाता के “जोगमाया कॉलेज” से ममता बनर्जी ने इतिहास में ऑनर्स की डिग्री ली। इसके बाद “इस्लामिक इतिहास की डिग्री” ली और “बीएड” की पढ़ाई करने के बाद कानून की डिग्री प्राप्त की। पढ़ाई लिखाई के बाद ममता का सियासी सफर आरंभ हुआ।

साल 1970 में ममता (Mamata Banerjee) पहले कांग्रेस की पार्टी की कार्यकर्ता थी। फिर1976 से लेकर 1980 तक “महिला कांग्रेस की महासचिव” रही। यह वह वक्त था जब ममता अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने में लगी थी। 1980 के मध्य तक ममता बनर्जी, राजनीतिक रूप से इतनी मजबूत हो चुकी थी कि “C PM” के वरिष्ठ नेता सोमनाथ चटर्जी जी को, यादवपुर लोकसभा सीट से हरा दिया। यह ममता के लिए एक जीत नहीं थी बल्कि एक भविष्य की आहट थी। दीदी के सिर पर सबसे युवा सांसद बनने का ताज भी सजा।

ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) का कद पार्टी में इतना बढ़ता जा रहा था कि पार्टी ने दीदी को “अखिल भारतीय कांग्रेस सचिव” बना दिया, लेकिन 80 के दशक के आखिरी साल में यादवपुर लोकसभा सीट से ममता के हिस्से हार आ गई। लेकिन हार और जीत की राजनीति में माहिर हो चुकी ममता बनर्जी, 1991 में फिर से चुनाव जीतकर संसद भवन पहुंच गई । जीत के बाद जो सिलसिला चला, वह कई लोकसभा चुनाव तक चलता रहा। ममता बनर्जी को हराना किसी के बस की बात नहीं रह गई थी।
90 के दशक की शुरुआत में देश के भीतर, नए तरीके से ताना-बाना बुना जाने लगा था। नरसिंह की सरकार ने ममता को कई विभाग की जिम्मेदारी दी। ममता बनर्जी ने “खेल विभाग” में रहते हुए, विकास योजना को सरकार के सामने रखा। सरकार ने इन योजनाओं को बहाल करने से मना कर दिया। यह विरोध इतना बढ़ गया कि ममता बनर्जी ने इस्तीफा दे दिया। यहीं से ममता बनर्जी के बागी तेवर और कांग्रेस पार्टी की सियासत, आमने-सामने हो गई।

1996 में केंद्र सरकार में ममता की अच्छी खासी पकड़ थी, लेकिन पेट्रोल की कीमत बढ़ाई गई तो ममता बनर्जी ने अपने पार्टी के खिलाफ ही विरोध शुरू कर दिया और मतभेद का किला बहुत बड़ा हो गया। ममता का कांग्रेस पार्टी पर आरोप था कि पार्टी बंगाल में वामदलों की कठपुतली बन गई है।

अब तक ममता ने नई पार्टी बनाने की सोच ली थी। देश में एक नई पार्टी “तृणमूल कांग्रेस” की स्थापना हुई। ममता स्वयं पार्टी की अध्यक्ष बनी, यह फैसला ममता बनर्जी के लिए काफी दिक्कत और दुविधा दोनों लेकर आया। लेकिन बहुत जल्दी ही ममता बनर्जी बंगाल की साम्यवादी सरकार के सामने चुनौती का नाम बन गई।

1998 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी को 8 सीटों पर जीत मिली। 90 के दशक के आखिरी साल में ममता की पार्टी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में बनी “राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन” यानी कि “N D A” सरकार का हिस्सा बन गई। ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को रेल मंत्री का पद मिला। जब रेल बजट पेश हुआ तो बंगाल के हिस्से ज्यादा सुविधाएं दी गई। ममता बनर्जी के इस फैसले पर विवाद शुरू हो गया और यह मिलाप ज्यादा दिन नहीं चला और 2001 में ममता की पार्टी “N D A” से अलग हो गई। अब तक 3 वर्ष का समय बीत चुका था। ममता बनर्जी को “N D A” से अलग होने का फैसला सही नहीं लगा और 2004 में ममता बनर्जी फिर से “N D A” गठबंधन में शामिल हो गई। इस चुनाव के बाद सरकार बनी तो ममता बनर्जी फिर से केंद्र में मंत्री बन गई।

2005 का साल ममता के सियासी राजनीति में सबसे मुश्किलों का साल साबित हुआ। उनकी पार्टी ने “कोलकाता नगर निगम” के ऊपर से अपना नियंत्रण खो दिया। 2011 में विधानसभा का चुनाव हुआ तो तृणमूल कांग्रेस “मां ,मारी और मानुष” के नारे के साथ विधानसभा चुनाव में भारी जीत से विजय हुई। इसी के साथ 34 सालों से सत्ता पर काबिज “वामपंथी मोर्चा” का सफाया हो गया। ममता स्वयं अपने पैर सियासी राजनीति में बंगाल से दिल्ली तक बढ़ाने लगी।

दो बार केंद्र में रेल मंत्री रह रही ममता बनर्जी को पेंटिंग बहुत पसंद है। यह पेंटिंग उन्हें के लिए परेशानी का कारण भी बनी। “शारदा ग्रुप” ने उनकी पेंटिंग को करोड़ों रुपए में खरीदा। यह विवाद ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के दामन में दाग छोड़ गया। कई तरह की बातों ने, ममता बनर्जी को “आत्म प्रशंसा में डूबे रहने वाले एक राजनीतिज्ञ” की छवि बना दी।
फिलहाल उनके लिए तेवर और तरीके ही वे शस्त्र हैं जिनके दम पर उन्हें दिल्ली भी नजदीक लगने लगी है ।

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