Sharad Purnima in Hindi – आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। ज्योतिषियों का मानना है कि संपूर्ण वर्ष में आश्विन मास की पूर्णिमा का चंद्रमा ही षोडश कराओ का होता है। कहते हैं – “इस दिन चंद्रमा अमृत की वर्षा करता है“।
शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) की विधि
शरद पूर्णिमा के दिन शाम को खीर बनाकर भगवान को भोग लगाएं। भोग लगाकर खीर को छत पर रख दे और रात को भगवान का भजन करें। चांद की रोशनी में सुई पिरोए। अगले दिन खीर का प्रसाद सबको देना चाहिए।
इस दिन प्रात काल आराध्य देव को सुंदर वस्त्र -आभूषण से सुशोभित करें। आसन पर विराजमान कर गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप ,नैवेद्य ,तांबूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से पूजा करनी चाहिए ।
पूर्णिमा का व्रत करके कहानी सुननी चाहिए। कथा सुनते समय एक लोटे में जल, गिलास में गेहूं, दोने में रोली तथा चावल रखें। गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुने। फिर गेहूं के गिलास पर हाथ फेर कर ब्राह्मणी के पांव स्पर्श करके उसे दे दे। लोटे के जल का रात को अर्धय दे दे।
विवाह उपरांत पूर्णमासी के व्रत को करने के लिए शरद पूर्णिमा से ही प्रारंभ करना चाहिए ।कार्तिक का व्रत पूर्णिमा से ही आरंभ करना चाहिए।
शरद पूर्णिमा की कथा
एक साहूकार के दो पुत्रियां थी ।दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थी। परंतु बड़ी पुत्री पूर्णिमा का पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा। परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री के संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने उसे बताया कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पूरा व्रत विधि पूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है।
उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधि पूर्वक किया। उसके लड़का हुआ। परंतु शीघ्र ही मर गया। उसने लड़के को चौकी पर लिटा कर ऊपर से कपड़ा रख दिया। फिर बड़ी बहन को बुला कर लाइ और बैठने के लिए वही चौकी दे दी। बड़ी बहन जब चौकी पर बैठने लगी तो उसका घागरा बच्चे को छू गया। घागरा छूते ही बच्चा होने लगा। बड़ी बहन बोली —“तू मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से या मर जाता।” तब छोटी बहन बोली —“यह तो पहले ही मरा हुआ था। तेरे भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है।”
उसके बाद राजा ने नगर में पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।
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