Ganesh Chaturthi in hindi – भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को ,गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।
इस दिन प्रात काल स्नानादि से निवृत्त होकर सोना ,तांबा ,चांदी ,मिट्टी या गोबर के गणेश की मूर्ति बनाकर, उसकी पूजा करनी चाहिए ।
पूजन के समय 21 मोदको का भोग लगाते हैं तथा हरि दूर्वा के 21 अंकुर लेकर निम्न 10 नामों पर चढ़ाते हैं।
- गतापि
- गौरी सुमन
- अधनाशक
- एकदंत
- ईश पुत्र
- सर्व सिद्धिप्रद
- विनायक
- कुमार गुरु
- इभवक्काय
- मूषक वाहन संत
तत्पश्चात 21 लड्डूओ में से 10 लड्डू ब्राह्मणों को दान देना चाहिए और 11 लड्डू स्वयं खाने चाहिए।
गणेश चतुर्थी व्रत की कथा
एक बार भगवान शंकर स्नान करने के लिए नदी पर गए। उनके चले जाने के बाद पार्वती जी ने अपने तन की मैल से एक पुतला बनाया। जिसका नाम उन्होंने गणेश रखा ।गणेश जी को द्वार पर एक पहरेदार के रूप में बिठाया और कहा -जब तक मैं स्नान करूं ,किसी पुरुष को अंदर मत आने देना ।
स्नान करने के बाद जब भगवान शंकर आए तो गणेश जी ने भगवान शंकर को द्वार पर रोक दिया। क्रोधित होकर भगवान शंकर ने उनका सिर धड़ से अलग कर दिया और अंदर चले गए ।पार्वती जी ने समझा कि भोजन में विलंब होने के कारण शंकर जी नाराज हैं ।उन्होंने दो थाली में भोजन परोस कर शंकर जी को भोजन करने के लिए बुलाया। दूसरा भोजन का थाल देखकर शंकर जी ने पूछा -दूसरा थाल किसके लिए लगाया है ।पार्वती जी बोली -दूसरा थाल पुत्र गणेश के लिए है। जो बाहर पहरा दे रहे हैं । यह सुनकर शंकर जी ने कहा मैंने तो उसका सिर काट दिया। यह सुनकर पार्वती जी बहुत दुखी हुई और प्रिय पुत्र गणेश को पुनः जीवित करने की प्रार्थना करने लगी। शंकर जी ने तुरंत के पैदा हुए हाथी के बच्चे का सिर काट कर बालक के धड़ से जोड़ दिया। तब पार्वती जी ने प्रसंता पूर्वक पति, पुत्र को भोजन कराकर स्वयं भोजन किया ।
यह घटना भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुई थी इसलिए इसका नाम गणेश चतुर्थी पड़ा।
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