//Shri Mata Vaishno Devi Temple | Jammu And kashmir | वैष्णो माता मंदिर
Mata Vaishno Devi Kahani

Shri Mata Vaishno Devi Temple | Jammu And kashmir | वैष्णो माता मंदिर

Mata Vaishno Devi Kahani- वैष्णो माता का मंदिर उत्तर भारत में सबसे पवित्र स्थलों में से एक है ।यह मंदिर पहाड़ पर स्थित होने के कारण अपनी भव्यता व सुंदरता के कारण प्रसिद्ध है। वैष्णो माता के मंदिर को ,माता का निवास माना जाता है।

मंदिर 5200 फीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।यहां पर हर वर्ष लाखों तीर्थयात्री दर्शन करने आते हैं । यह भारत के तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सबसे ज्यादा देखे जाने वाला धार्मिक स्थल है ।वैसे तो वैष्णो माता के बारे में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं ,लेकिन मुख्य रूप से दो कथाएं अधिक प्रचलित हैं।
 
1 मान्यता के अनुसार एक बार पहाड़ों वाली मां ने अपने परम भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी जान बचाई और पूरी सृष्टि को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया ।श्रीधर निसंतान थे इसलिए बहुत दुखी रहते थे।
 
एक दिन श्रीधर ने ,भोजन के लिए कन्याओं को अपने घर बुलाया। मां वैष्णो कन्या के वेश में उन्हीं के बीच आकर बैठ गई ।सभी कन्याए अपने घर चली गई लेकिन कन्या रूपी मां वहीं बैठी रही और श्रीधर से बोली सबको भंडारे का निमंत्रण दे दो। श्रीधर ने उस कन्या की बात मानकर आसपास गांव में भंडारे का संदेश पहुंचा दिया। और वहां से लौट कर आते समय गुरु गोरखनाथ के शिष्य बाबा भैरवनाथ जी को, उनके शिष्यों सहित भोजन का निमंत्रण दे दिया। भोजन का निमंत्रण पर सभी अचंभित थ। कि वह कौन कन्या है जिसमें हमें भोजन का निमंत्रण भिजवाया।
तत्पश्चात सभी भोजन के लिए एकत्रित होने लगे तब कन्या रूपी मां वैष्णो देवी ने एक “विचित्र पात्र “से सभी को भोजन परोसना शुरू किया ।जब कन्या भैरवनाथ के पास पहुंची तो भैरवनाथ ने कहा कि मैं खीर- पूरी की जगह मांस भक्षण व मदिरापान करना चाहता हूं। उस कन्या रूपी मां ने समझाया यह एक ब्राह्मण के यहां का भोजन है। इसमें मांसाहार नहीं दिया जाता। किंतु भैरवनाथ अपनी बात पर अड़ गया और उसने कन्या को पकड़ना चाहा ।उस के कपट को जानकर, मां वायु का रूप बनाकर त्रिकूट पर्वत की तरफ उड़ने लगी। तो भैरवनाथ उनके पीछे पीछे जाने लगा।
मान्यता के अनुसार उस समय हनुमान जी मां की रक्षा के लिए उनके साथ ही थे। हनुमान जी को प्यास लगने पर मां ने अपने धनुष से पहाड़ पर जल की धारा निकाली और वही पवित्र धारा” बाढ़ गंगा “के नाम से जानी जाती है ।इसी दौरान मां ने एक गुफा में प्रवेश कर 9 माह तक तपस्या की ।भैरवनाथ मां के पीछे पीछे गुफा के द्वार तक आ पहुंचा ।
साधु ने भैरवनाथ से कहा जिसे तू कन्या समझ रहा है वह” आदिशक्ति जगदंबा” है । भैरवनाथ ने साधु की बात नहीं मानी और दूसरी तरफ से निकल गया। यह गुफा आज भी “अर्धक्वांरी गुफा” के नाम से जानी जाती है ।
अर्धकुमारी से पहले मां के” चरण पादुका “भी है। यह वह स्थान है जहां माता ने भागते -भागते भैरवनाथ को मुड़ कर देखा था।
बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण कर लिया ।अब माता ने भैरवनाथ को वापस जाने के लिए कहा ।लेकिन वह नहीं माना। माता गुफा के अंदर चली गई।

तत्पश्चात मां की रक्षा के लिए हनुमान जी ने भैरवनाथ से युद्ध करने लगे। जब वीर हनुमान युद्ध में निढाल होने लगे तो मां ने मां काली का रूप लेकर भैरव का संहार कर दिया। भैरवनाथ का सिर कट कर भवन से 8 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत की, भैरव घाटी में जाकर गिरा। उस स्थान को “भैरवनाथ के मंदिर “के नाम से जाना जाता है ।
जिस स्थान पर मां ने भैरवनाथ का वध किया वह स्थान “पवित्र गुफा” या “भवन “के नाम से प्रसिद्ध है ।इसी स्थान में मां काली दाहिनी ओर , मां सरस्वती मध्य और मां लक्ष्मी बाई ओर पिंड के रूप में गुफा में विराजमान हैं। इन तीनों के सम्मिलित रूप को ही मां वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने मां वैष्णो देवी से क्षमा मांगी। मां वैष्णो देवी जानती थी कि भैरवनाथ के हमले के पीछे मुख्य मंशा मोक्ष प्राप्त करने की है। उन्होंने ना केवल भैरवनाथ को मृत्यु जन्म के चक्कर से मुक्त किया अपितु उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं होंगे ,जब तक कोई भी भक्त मेरे दर्शन के बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।
 
मान्यता के अनुसार आज भी श्रद्धालु वैष्णो मां के दर्शन के बाद भैरव नाथ के दर्शन को जाते हैं। इसी बीच वैष्णो देवी ने तीनों पिंडो सहित चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यान मग्न हो गई।
दूसरी ओर पंडित श्रीधर त्रिकूट पर्वत की ओर कन्या रूपी मां के पीछे पीछे आगे बढ़ने लगे ।अंततः गुफा के पास पहुंच गए उन्होंने अनेक विधियों से मां के तीनों पिंड रूपों की पूजा को अपनी दिनचर्या बना लिया । देवी मां उनकी सेवा से प्रसन्न होकर प्रकट हुई और उन्हें आशीर्वाद दिया। तब से श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो की पूजा करते आ रहे हैं।
2 दूसरी कथा के अनुसार—–
हिंदू पौराणिक मान्यताओं में —-जगत में धर्म की हानि और अधर्म की शक्तियों के बढ़ने पर ,आदिशक्ति के सत्य, रज, तम, तीनों रूप महाशक्ति, महालक्ष्मी, मां सरस्वती ने अपने सामूहिक बल से, धर्म की रक्षा के लिए एक कन्या प्रगट की। यह कन्या त्रेता युग में भारत के दक्षिण तटीय समुद्र रामेश्वर में पंडित रत्नाकर की पुत्री के रूप में प्रकट हुई। कई सालों से संतानहीन रत्नाकर ने अपनी पुत्री को” त्रिकुटा “नाम दिया । किंतु भगवान विष्णु के अंश के रूप में प्रकट होने के कारण वह” वैष्णवी “नाम से विख्यात हुई ।

लगभग 9 वर्ष की होने पर जब कन्या को मालूम हुआ कि भगवान विष्णु ने ही भूलोक में भगवान राम के रूप में अवतार लिया है। तो भगवान को पति रूप मानकर, उन्हें पाने के लिए कठोर तप करने लगी ।जब श्री राम, सीता हरण के बाद, सीता की खोज करते हुए रामेश्वर पहुंचे। तब वहां समुद्र तट पर ध्यान मग्न कन्या को देखा। कन्या ने भगवान को स्वयं को, पत्नी के रूप में स्वीकार करने के लिए कहा। तब राम बोले उन्होंने इस जन्म में, सीता से विवाह कर, एक पत्नी व्रत का प्रण लिया है। किंतु कलयुग में वह कल्कि रूप में अवतार लेंगे ।उस समय उसे पत्नी के रूप में स्वीकार करेंगे ।उस समय तक तुम हिमालय स्थित त्रिकूट पर्वत पर जाकर तपस्या करो और भक्तों के कष्टों और दुखों का नाश कर जगत कल्याण करती रहो ।

जब श्री राम ने रावण पर विजय प्राप्त की ।तब मां ने नवरात्र मनाने का निर्णय लिया इसीलिए इसी संदर्भ में लोग इन 9 दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। त्रिकूटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध हो गई।