//Bhimashankar Jyotirlinga – Hindu Temple Lord Shiva / भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
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Bhimashankar Jyotirlinga – Hindu Temple Lord Shiva / भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

Bhimashankar Jyotirlinga Temple in Hindi – भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग पुणे में “सह्याद्री” नामक पर्वत पर स्थित है। यह स्थान पुणे से 110 किलोमीटर दूर श्री रतन गांव में है।
यहां से भीमा नदी निकलती है। मुंबई से भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की दूरी लगभग 120 किलोमीटर है और यह मंदिर 3250 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
यह मंदिर “मोटेश्वर महादेव” के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह शिवलिंग बहुत मोटा है।
इस मंदिर के प्रति ऐसी मान्यता है कि जो श्रद्धालु, प्रतिदिन सूर्य निकलने के बाद 12 ज्योतिर्लिंग का नाम जपते हुए भगवान के दर्शन करता है उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

महाराणा छत्रपति शिवाजी महाराज ने, इस मंदिर के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं के लिए कई प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराई है।
इस मंदिर का घंटा अत्यंत सुंदर है। यहां कुछ स्थान घूमने के लिए भी प्रसिद्ध है जैसे– हनुमान झील, मुंबई पॉइंट, नागफनी, गुप्त भीमाशंकर, भीम नदी, साक्षी विनायक आदि।
इन स्थान के दर्शन के लिए भक्तगण अधिकतर अगस्त से फरवरी के बीच में आते हैं।

इतिहास:

पौराणिक हिंदी धर्म के, पौराणिक ग्रंथ शिव पुराण में, लंका के राजा रावण के भाई कुंभकरण के बेटे के अत्याचारों और उसकी संहार की यह कथा है।
शिव पुराण में कहा गया है कि — “पुराने समय में कुंभकरण का पुत्र “भीमा” नाम का एक राक्षस था।” 
कुंभकरण के पुत्र भीमा का जन्म अपने पिता की मृत्यु के बाद हुआ था। बचपन में उसे इस बात का आभास नहीं था कि भगवान राम ने उनके पिता का वध किया है।
भीमा जैसे-जैसे बड़ा हुआ, तो उसे इस बात का पता लगा की राम ने उसके पिता का वध किया है और उसने अपने पिता की हत्या का बदला लेने का प्रण किया।
उसे पता था कि राम से युद्ध जीतना आसान नहीं है। इसलिए भीमा ने 100 वर्ष तक ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की और ब्रह्मा जी को प्रसन किया। ब्रह्मा जी ने उसे विजय होने का वरदान दिया।

बीमा के अत्याचारों से ने न सिर्फ मानव अपितु इंद्र, देवता गण भी त्रस्त हो गए थे। यहां तक कि भगवान विष्णु भी उस से हार गए थे।
सभी देवताओं को परास्त करने के बाद उसने पृथ्वी को जीतना आरंभ किया और सबसे पहले कामरूप देश के राजा “सुदक्षिण” के राज्य पर हमला कर दिया।
राजा सुदक्षिण को हराकर कारागार में बंदी बना लिया। महाराज सुदक्षिण भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे।
उन्होंने कारागार में ही शिवलिंग बनाकर उनका भजन -पूजन शुरू कर दिया। जब भीमा शंकर ने यह देखा तो उसने राजा द्वारा बनाए शिवलिंग को, अपनी तलवार से तोड़ने का प्रयास किया।
ऐसा करने पर शिवलिंग में से स्वयं भगवान शिव प्रकट हो गए और उन्होंने अपने धनुष से राक्षस की तलवार के दो टुकड़े कर दिए।
भगवान ने भीमा को अपने हुंकार मात्र से ही भस्म कर डाला। देवताओं ने भगवान शिव से हमेशा के लिए उस स्थान पर रहने की प्रार्थना की।
देवताओं के कहने पर भगवान शिव उसी स्थान पर शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए। इस स्थान पर भीमा से युद्ध करने के कारण इसका नाम “भीमाशंकर” पड़ गया।

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