Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple in Hindi – श्री महाकालेश्वर मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्य प्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित है। उज्जैन तीर्थ नगरी में स्थित महाकाल ज्योतिर्लिंग, शिव जी का तीसरा ज्योतिर्लिंग कहलाता है।
यह ज्योतिर्लिंग एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिण मुखी है। दक्षिण मुखी होने के कारण महाकालेश्वर की अत्यंत पुण्यदाई महता है। यह 3 खंडों में विभक्त है-
- निचले खंड में महाकालेश्वर मंदिर
- बीच के खंड में ओमकारेश्वर मंदिर
- सर्वोच्च खंड में नागचंद्रेश्वर के शिवलिंग प्रतिष्ठित है ।
भगवान कालेश्वर मंदिर(Mahakaleshwar Jyotirlinga) के सबसे निचले भाग में प्रतिष्ठित है। ऐसी मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। भारत की सबसे प्राचीन सांस्कृतिक व धार्मिक नगरी उज्जैन मध्यप्रदेश के, मालवा में, शिप्रा नदी के तट पर हजारों वर्षों से भी पहले बसी है।
उज्जैनी अलग-अलग सदी में अलग-अलग नामों से जानी जाती है इसकी नाम है—
अमरावती, उज्जैनी, कुश स्थली, कनक शृंगा और अवंतिका।
पुराणों में सप्तपुरी यानी सात मोक्ष दायिनी नगरों का वर्णन है। उसमें उज्जैन नगरी भी शामिल है।
प्राचीन काल में उज्जैन में हजारों मंदिर स्थापित किए गए थे। इसलिए उज्जैन को “मंदिरों की नगरी” भी कहा जाता है।
यहां महाकाल ज्योतिर्लिंग(Mahakaleshwar Jyotirlinga) के अलावा 84 लिंगों में महादेव, अलग-अलग रूप में विद्यमान है। प्राचीन काल में उज्जैन, राजा विक्रमादित्य की, राज्य की राजधानी थी।
कथाओं के अनुसार
उज्जैन में सती की “कोहनी” गिरी थी और यह मंदिर वहीं पर स्थापित किया गया है।
रोज शाम को मंदिर के प्रांगण को दीपों से सजाया जाता है जिस के कारण आरती के समय मंदिर की छटा बेहद खूबसूरत व निराली होती है।
भगवान शिव देशभर में, 12 स्थानों पर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है। उज्जैन में इन्हीं में से एक ज्योतिर्लिंग, महाकालेश्वर के गर्भ गृह में स्थापित है।
गर्भ गृह में ऊपर “सिद्धि यंत्र” स्थापित है। महाकाल के बाएं ओर गणेश विराजमान है और दाएं ओर त्रिशूल के पीछे कार्तिकेय, और दोनों के मध्य में माता पार्वती विराजमान है।
गर्भगृह के बाहर नंदी की प्रतिमा स्थित है। दर्शनार्थी यहां पर बैठकर गर्भगृह में प्रवेश करने का इंतजार करते हैं।
अलग-अलग प्रांतों व समुदायों से आए भक्त, तरह-तरह की साधना करके, श्री महादेव को प्रसन्न करने का यत्न करते हैं।
दिन भर पुजारी पूजा अर्चना करते हैं और अलग-अलग तरह से आरती करके, भगवान को समर्पित करते हैं।
यहां प्रार्थना के बाद अपनी मनोकामना को, नंदी के कान में कहने का चलन भी है। श्री महाकालेश्वर पूजा और आरती के बीच कई सदियों से यहां विराजमान है।
मुक्ति की ओर ले जाने वाले महाकाल की अराधना में कई आरतियां की जाती हैं। सूर्योदय से पहले भस्मा आरती से दिन की शुरुआत होती है।
भस्मा आरती के दौरान महाकाल को पंचामृत अर्पित किए जाते हैं। उसके बाद महाकाल का जलाभिषेक होता है और फिर अनेक विधि-विधान से महाकाल का श्रृंगार किया जाता है।
अंत में महाकाल पर “भस्म” अर्पित की जाती है। भस्म आरती का समापन प्रचंड अग्नि, डमरु की तीव्र ध्वनि एवं शंख के जोरदार स्वर के साथ किया जाता है।
प्रातकाल भस्म आरती के बाद 7:00 बजे दयोदय आरती, दही व चावल का भोग लगाया जाता है। दोपहर 10:00 बजे भोग आरती होती है जिसमें भोग अर्पण किया जाता है।
शाम 5:00 बजे महाकाल का पूजन श्रृंगार होता है। इसमें भगवान महाकाल को “भांग” समर्पित की जाती है। इसके बाद महाकालेश्वर भगवान पर जल चढ़ना बंद हो जाता है।
शाम 5:00 बजे संध्या, भोग आरती की जाती है। संध्या काल में आरती के दौरान तेज नगाड़ा, ढोल और घंटियों के साथ महाकाल का वंदन किया जाता है।
संध्या काल का सुंदर चित्रण कालिदास ने अपने ग्रंथ “मेघदूतम” में कुछ इस प्रकार किया है— हे मेघ! जब तुम उज्जैनी जाना, तो महाकाल के दर्शन अवश्य करना। वहां की सांध्य आरती को अवश्य देखना।”
संध्याकाल में लाखों पक्षी मंदिर के प्रांगण में लगे पेड़ों पर एकत्रित होते हैं और आरती की भव्यता पर चार चांद लगा देते हैं।
महाकालेश्वर मंदिर में गर्भगृह के अलावा दो और महत्वपूर्ण हिस्से हैं। नागचंद्रेश्वर सबसे ऊपरी तल पर मौजूद है जिनके दर्शन केवल “नाग पंचमी” को ही होते हैं।
उसके नीचे मंदिर के पहले तल पर, ओमकारेश्वर के रूप में शिव विराजमान है “सिंहस्थ कुंभ” उज्जैन का धार्मिक पर्व है।
कुंभ का शाब्दिक अर्थ है- कलश। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के समय “अमृत कलश” ले जाते समय ,अमृत की चार बूंदे पृथ्वी पर, चार जगह गिर गई और उन स्थानों में —-हरिद्वार, नासिक, प्रयाग और उज्जैन में कुंभ मेले का चलन शुरू हो गया।
महाकालेश्वर के दर्शन हेतु श्रद्धालुओं की भीड़ सदियों से लगती रहती है। मंदिरों की नगरी उज्जैन सदियों से सभी के स्वागत में हाथ जोड़े खड़ी है। कालो के काल महाकाल , सदियों से भक्तों को अपनी कृपा के आगोश में भर कर, उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हुए विराजमान है ।
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