Yamnotri Mandir yatra information in Hindi – यमुनोत्री उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी में स्थित है यमुनोत्री यमुना नदी का उद्गम स्थल है ।यहां से यमुना नदी कई किलोमीटर का सफर तय कर, इलाहाबाद गंगा नदी में मिल जाती है।
हमारे देश में नदियों को मां का दर्जा दिया गया है और उनकी पूजा, अर्चना की जाती है यमुनोत्री माता का मंदिर राजस्थान से जुड़ा हुआ है ।जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं शताब्दी में इसे बनवाया था ।भूकंप से मंदिर टूटने के बाद इस मंदिर का फिर पुनर्निर्माण किया गया।
उत्तराखंड को देव भूमि कहा जाता है ।वैशाखी अक्षय तृतीया के बाद से यमुनोत्री, गंगोत्री ,केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुल जाते हैं। और चार धाम यात्रा शुरू हो जाती है। सर्दियों में यमुनोत्री धाम में बहुत बर्फ पड़ती है। जिसके कारण यमुनोत्री धाम से 8 किलोमीटर दूर स्थित खरसाली गांव में, यमुना मां की पूजा की जाती है।
सदियों से चली आ रही प्रथा के चलते ,मां यमुना जी की डोली, शीतकालीन प्रवास के बाद, खरसाली से ,बड़े धूमधाम के साथ यमुनोत्री धाम में स्थित, मां के मंदिर में लाई जाती है। विधि विधान के साथ ग्रीष्मकालीन पूजा की जाती है ।
यमुनोत्री आने के दो रास्ते हैं एक रास्ता देहरादून, मसूरी और चकराता से है जो करीब 223 किलोमीटर है दूसरा रास्ता ऋषिकेश, चंबा ,नई टिहरी होते हुए यमुनोत्री पहुंचता है। जो करीब 262 किलोमीटर दूर है।
रास्ते में , कस्बों में रहने व खाने का सब सामान मिलता हैचीड़ के वृक्ष से आच्छादित ,8ऊंचे ऊंचे पहाड़ी रास्तों से नरेंद्र नगर ,चंबा और फिर बड़कोट पहुंचा जाता है। बड़कोट से मौसम बदल जाता है। ठंडी हवा, सर्दी का एहसास ,मन को पुलकित करता है। जानकी चट्टी पहुंचने पर काफी सर्दी महसूस होती है। यहां का तापमान करीब 5 से 15 डिग्री रहता है। जानकीचट्टी ,बर्फ की चोटियों से ढका, पहाड़ों के बीच बना एक छोटा सा गांव है ।जहां से खच्चर ,पालकी और घोड़े द्वारा मंदिर की 5 किलोमीटर की चढ़ाई की जाती है।
मां यमुना के मंदिर के दर्शन करने से पहले श्रद्धालु गर्म कुंड में स्नान करते हैं। इस कुंड में गंधक का पानी आता है। इसमें स्नान करने से यात्रियों की, यात्रा की सारी थकावट दूर हो जाती है। और चर्म रोग आदि नहीं होते आश्चर्य की बात है कि इतने गर्म कुंड के पास ही , बर्फ की तरह ठंडा , यमुना का जल जल निरंतर बहता रहता है। श्रद्धालु इस ठंडे जल में स्नान करते हैं और फिर यमुना के मंदिर में दर्शन करते हैं पहाड़ों से कल कल की आवाज करती नदी ,पूरे वेग के साथ, ऊपर से नीचे की ओर बहती हुई , जानकी चट्टी से होकर गुजरती है। जिसके किनारे किनारे श्रद्धालु रास्ता तय कर कर यमुनोत्री पहुंचते हैं।
यमुना का उद्गम स्थल कालिंदी पर्वत पर बने सप्त ऋषि कुंड से होता है। यमुना का उद्गम स्थल यमुनोत्री ,मंदिर से करीब 1 किलोमीटर दूर है ।यहां का रास्ता बहुत कठिन है। श्रद्धालु बड़ी कठिनाई से ही वहां तक पहुंच पाते हैंयहां से दो धाराएं निकलती हैं:
- गर्म धारा
- ठंडी धारा
ठंडी धारा का तो किसी को पता नहीं लेकिन जो गर्म धारा यहां से निकलती है उसे सूर्य भगवान की पुत्री , शनि महाराज और यमराज की बहन कहा जाता हैयमुनाजी के 3 नाम है:
- यमुना
- जमना और
- कालिंदी
यमुना जी के उपरोक्त 3 नाम कैसे पड़े इसके बारे में ऐसा कहा जाता है कि:
- यमुना जी ,यमराज की बहन है इसलिए इसका नाम यमुना पड़ा।
- ऐसी मान्यता है कि यहां पर बैठकर “जय मुनि “नामक ऋषि ने तपस्या की और यमुना जी को गर्म पानी के रूप में स्थान दिलवाया ।और जो ठंडी धारा है वह जामुन के पेड़ के नीचे से निकलती है इसलिए इसका नाम जमुना पड़ा।
- जहां से यमुना जी निकलती है ,उस पर्वत का नाम कालिंदी गिरी है ।और कालिंदी गिरी पर्वत से यमुना जी निकलने के कारण ,इसका नाम कालिंदी हुआरीति रिवाज के अनुसार, जैसे हम अपनी बहन और पुत्री को दान के रुप में कुछ देते हैं। वैसे ही भगवान सूर्य ने अपनी पुत्री को “एक किरण” का वरदान दिया ।जो” सूर्य कुंड “के नाम से जाना जाता है।
श्रद्धालु जब यहां दर्शन को आते हैं और दर्शन करने के बाद, इस इसी सूर्य कुंड में ,चावल पकाते है। यही चावल प्रसाद के रूप में मां गंगा को अर्पित किए जाते हैं और श्रद्धालु यही प्रसाद अपने घर लेकर जाते हैं।
ऐसी भी मान्यता है कि “अजीत ऋषि” वृद्धावस्था के कारण “सप्त ऋषि कुंड” में स्नान करने नहीं जा सकते थे। उनकी अपार श्रद्धा देखकर मां यमुना उनकी कुटिया में प्रकट हो गई ।उसी स्थान को “यमुनोत्री” के नाम से जाना जाता है ।और फिर यहीं पर मां “यमुना का मंदिर “स्थापित किया गयाअद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य, ऊंचे ऊंचे पहाड़ों में जमी बर्फ, हरे, नीले पहाड़, कल कल की ध्वनि करते हुए झरने, हर किसी को अपनी और आकर्षित और मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
Yamnotri Mandir yatra information in Hindi
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