Facts of Rahasmayi Jagannath Mandir – हिंदू धर्म में चार धाम यात्रा का बहुत महत्व माना गया है ।आज हम समुद्र के किनारे बसे जगन्नाथ पुरी मंदिर से जुड़े रहस्यों के बारे में बताएंगे। जो उड़ीसा राज्य में स्थित है ।
हमारा देश भारत रहस्यों से भरा हुआ है। इस देश की सभ्यता जितनी पुरानी है उतनी ही पुराने यहां के मंदिर हैं ।हजारों सालों से यह मंदिर, कई राज अपने में छुपाए हुए हैं ।भारत में मौजूद कोई भी मंदिर ऐसा नहीं है ,जिसका कोई रहस्य ना हो।
यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण भगवान को समर्पित है ।हर वर्ष देश व विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन को आते हैं।
यहां अनेक रहस्य हैं ।जो आज तक नहीं सुलझ सके ।
भगवान जगन्नाथ के खजाने की विशालता को यहां सब मानते हैं क्योंकि यहां ऐसी मानना है की इस मठ से एक मजदूर ने एक चांदी की ईट चुराई थी।
बाद में रहस्य उजागर हुआ ,जब जांचकर्ता ने इसकी जांच की। कमरे खोले गए और एक कमरा खोला तो उसमें 100 करोड़ से अधिक कीमत की चांदी की ईट मिली।
माना जाता है कि भगवान ने चांदी की ईट के बदले 100 करोड़ से अधिक कीमत की चांदी की ईटें इस मंदिर में दी। इससे पता चलता है कि मंदिर में खजाने का भंडार है।
इस मंदिर के बनने के पीछे भी एक रहस्य है कहां जाता है राजा इंद्र देवेन मालवा के राजा थे। राजा को सपने में भगवान जगन्नाथ पुरी के दर्शन हुए और भगवान ने कहा कि नीलांचल पर्वत की एक गुफा में मेरी एक मूर्ति है ।तुम उस मूर्ति को यहां स्थापित कर दो और एक मंदिर बनवा दो ।उस मूर्ति को नीलमाधव कहते हैं ।राजा ने अपने सैनिकों को मूर्ति खोजने के लिए भेजा। राजा के सेवकों ने वह मूर्ति चुरा कर राजा को दे दी,, जिसकी देखरेख सबर कबीले के लोग करते थे। लेकिन मूर्ति चोरी होने के कारण भगवान नीलमाधव दुखी हो गए और वापस उसी गुफा में चले गए ।राजा से वादा करके गए कि ज वह राजा उनके लिए मंदिर बनाएंगे तब वे लौटकर इसी मंदिर में आ जाएंगे ।राजा ने मंदिर बनवाया और भगवान से विराजमान होने को कहा ।तब भगवान ने कहा मेरी मूर्ति बनाने के लिए समुद्र में तैर रहा बड़ा सा पेड़ का टुकड़ा लेकर आओ। वह लकड़ी का टुकड़ा ढूंढ लिया गया परंतु उसे कोई उठा ना सका ।तब राजा को समझ आया की खबर कबीले के लोगों की सहायता लेनी होगी ।फिर बसु और विश्व की सहायता ली गई ।सब चकित हुए जब विश्व और वसु लकड़ी का टुकड़ा उठा कर लाए भगवान की मूर्ति बनाने के लिए ।
राजा का कोई भी कारीगर लकड़ी में एक छैनी भी नहीं लगा पाया तब भगवान विश्वकर्मा एक बूढ़े व्यक्ति का रूप धारण करके आए और उन्होंने कहा कि नीलमाधव की मूर्ति, मैं बना सकता हूं। पर शर्त यह है कि मुझे यह मूर्ति बनाने में 21 दिन लगेंगे और मैं यह मूर्ति अकेले में बनाऊंगा।
राजा ने उसकी एक शर्त मान ली ।
परंतु राजा इंद्र देव की पत्नी अपने को रोक नहीं पाई और पत्नी के कहने पर राजा ने कमरे का दरवाजा खोल दिया। राजा को आश्चर्य हुआ वहां से वह बूढ़ा ब्राह्मण गायब था ।सभी तीन मूर्तियां आधी अधूरी थी । नीलमाधव और उनके छोटे भाई के छोटे हाथ बने थे ,पांव नहीं बने थे। बहन सुभद्रा के हाथ और पांव दोनों ही नहीं बने थे। राजा ने भगवान की इच्छा मानकर इन्हीं आधी अधूरी मूर्तियों को स्थापित कर दिया।
बहुत अच्छा और जानकारीपूर्ण लेख