Tirumala ttd seva in hindi – दक्षिण भारत की चोटी पर शान से खड़ा तिरुपति मंदिर हिंदू धार्मिक स्थलों में से एक है। जहां देश विदेश से श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते हैं ।
भारत के आंध्र प्रदेश राज्य में मौजूद, तिरुमला मंदिर चहल-पहल से भरा दिखता है ।लेकिन यह सदियों पुराने आध्यात्मिक स्वर्ग के द्वार के तौर पर जाना जाता है ।
तिरुपति वह जगह है जहां से “देशाचलम पहाड़ों” के बीच में से तिरुमला मंदिर की चढ़ाई शुरू होती है। इन खूबसूरत पहाड़ों से गुजर कर तिरुमला मंदिर पहुंचने का सफर, पूरा होता है ।
समुद्र तल से करीब 25 सौ मीटर फीट ऊंचाई पर स्थित तिरुमाला, धरती के उन हिंदू तीर्थों में से एक है जिसमें सबसे अधिक श्रद्धालु आते है।
बीते युग में भगवान विष्णु कई बार मनुष्य और पशु दोनों रूप में धरती पर आए ।
कहानी जो भी हो ,आखिरकार भगवान विष्णु श्री वेंकटेश्वर स्वामी के रूप में अवतरित हुए ।सब के कल्याण के लिए तिरुमला में ही बस गए और गर्भ ग्रह में विराजमान हो गए। तिरुमाला मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है जिन के दर्शनों के लिए प्रतिदिन हजारों लोग यहां आते हैं।
तिरुमला मंदिर में कारीगरों द्वारा खंभों पर ,तराशि गई बेहतरीन मूर्तियां देखने को मिलती है। जो अलग-अलग युग की कहानी बताती है।
ऊपर मंदिर तक पहुंचने के दो रास्ते हैं “पेशाचिलम की गुफा” से सड़क द्वारा करीब 1 घंटे की यात्रा ड्राइव द्वारा, वहां पहुंचा जा सकता है ।
लेकिन ज्यादातर लोग मुश्किल तरीका अपनाते हैं और पैदल ही यह रास्ता तय करते हैं।
चढ़ाई करने वाले दो पैदल रास्तों में से एक को चुन सकते हैं।
मंदिर में पहुंचने के लिए एक रास्ता, दूसरे रास्ते से थोड़ा छोटा है लेकिन उसमें 2 किलोमीटर की थकान वाली चढ़ाई है ।
श्रद्धालु इस दूसरे रास्ते से भी दर्शन को आ सकते हैं। जो 9 किलोमीटर लंबा है ।लेकिन चढ़ाई थोड़ी हल्की होने की वजह से, लोग इसे ज्यादा पसंद करते हैं ।
लेकिन दर्शन का रास्ता इतना भी आसान नहीं। सफर लंबा है ।जो पहाड़ों की तलहटी “तिरुपति” से शुरू होता है ।
श्रद्धालुओं की मन्नत पूरी होने पर अलग अलग तरीके से श्रद्धालु यहां चढ़ाई ,चढ़ते देखे जा सकते हैं।
श्रद्धालु यहां आकर मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर अपने प्रतिज्ञा के अनुसार यहां की चढ़ाई चढ़ते हैं।
- कोई श्रद्धालु हर सीढ़ी पर सिंदूर का टीका लगाते – हुए मंदिर तक पहुंचता है।
- कुछ श्रद्धालु हाथों का घुटनों के बल चल कर सीढ़ियां चढ़कर यहां पहुंचते हैं ।
- कुछ ऐसे ऐसे भी भक्त हैं ।जो चढ़ाई का पूरा आनंद लेते हैं। और श्री वेंकटेश्वर मंदिर के द्वार तक पहुंचते हैं।
यहां पर, ऐसा देखा जाता है कि दर्शनों से पहले कई श्रद्धालु अपना मुंडन कराते हैं। यह इस बात का प्रतीक होताा है कि भगवान के सामने जाने से पहले श्रद्धालु अपने अहम और अहंकार को मिटाते हैं।
अली पाली वाले रास्ते में गोपुरम में एक पड़ाव है ।जहां दर्शनों के लिए रजिस्ट्रेशन होता है। जिस का श्रेय “तिरुमला तिरुपति देवस्थानम एडमिशन” को जाता है।
अब समय आता है श्रद्धालुओं के दर्शन करने का।
श्रद्धालु कई घंटों की चढ़ाई करने के बाद ,यहां पहुंचते हैं और दर्शनों के लिए आतुर लोग, दर्शन हेतु लाइन में लग जाते हैं। दर्शन करने के लिए “दर्शन गैलरी” की व्यवस्था है। जहां पर लोग अपने नंबर आने का इंतजार करते हैं ।
यह मुख्य मंदिर 2.2 एकड़ में फैला है श्रद्धालु गोपुरम से आकर एक खुले कोठियार में दाखिल हो जाते हैं ।यहां एक चमकता “फ्लैग स्टार है” जिसे “ध्वजा स्तंभ” कहा जाता है ।
अंदर जाकर बाएं और “रंग नायक मंडल” है और दाएं और आईना महल है ।यानी आईनों का महल जहां पर अंतहीन छवि दिखाई देती है।
इसके उपरांत श्रद्धालु “वेंटीबाकीलि” से गुजरते हैं फिर आता है “बंककारू वीकली” यह वह सीमा है जहां से श्रद्धालु आगे नहीं जा सकते क्योंकि यहां एक के बाद एक अंधेरे मंडपम के बाद, हर चेंबर की आगे जाकर चौड़ाई कम होती जाती है। और आखिरी में आ जाता है वह स्थान , जहां भगवान विष्णु निवास करते हैं ।विशेष पुजारियों को ही वहां प्रवेश करने की अनुमति है।
ऐसा कहा जाता है कि ऐसी मान्यता है कि चौड़ाई का घटते जाना आत्मा के परमात्मा में जाने का प्रतीक है।
श्री वेंकटेश्वर लाइन में घंटों इंतजार के बाद श्रद्धालु दरवाजे के पास पहुंचते हैं। श्री वेंकटेश्वर मंदिर के द्वार ।यहां अंदर जाने और आने का का एक ही प्रवेश द्वार है।
एक जत्थे को अंदर जाने दिया जाता है। और कुछ पल अंदर जाने वालों को वही रोक दिया जाता है ताकि अंदर वाले लोग बाहर आ सके।
सन 2008 में मंदिर की इजाजत से यहां पर एक और श्री वेंकटेश्वर मंदिर बनाया गया है। जो “नमूना आलम” के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर भी बिल्कुल असली जैसा ही दिखता है ।यहां पर भी श्री वेंकटेश्वर स्वामी की, 8 फीट ऊंची काले पत्थर से बनी प्रतिमा , मूल रूप में विराजमान है ।
श्रद्धालुओं श्री वेंकटेश्वर भगवान को 4 नाम से पुकारते हैं:
- श्री वेंकटेश्वर स्वामी
- त्रिमूला बालाजी
- गोविंदा और
- श्रीनिवास
यह निश्चित नहीं है कि यह प्रतिमा किसके द्वारा बनाई गई है ऐसा माना जाता है कि भगवान की यह प्रतिमा यहां प्रगट हुई थी।
मुख्य प्रतिमा के आसपास और अनेक प्रतिमाएं भी स्थापित है।
- चांदी की भोग निवास प्रतिमा जो रोजाना ज्यादातर रस्मों में पूरी जाती है
- उग्र श्रीनिवास अपने क्रोधित स्वरूप को दर्शाती है
- श्री मल्लेआपा स्वामी ,जिसके दोनों ओर 2 देवियां भूदेवी और श्रीदेवी विराजमान है।
कोलू श्रीनिवास, जिसकी मंदिरों में विधि-विधानों के प्रतीक के रूप में पूजा की जाती है
प्रतिमा चाहे मंदिर के अंदर हो या बाहर उन्हें बेशकीमती रत्न व गहनों से सजाया जाता है । शानदार परंपरागत पोशाकें पहनाई जाती हैं ।
प्रतिदिन पूजा में चंदन इस्तेमाल होता है। रोजाना के सिंगार में 100 से 200 किलो फूल इस्तेमाल होते हैं
यहां प्रतिदिन 50 से 70 हजार लोग भगवान के दर्शन को आते हैं। विशेष उत्सव पर यहां श्रद्धालुओं की संख्या एक से डेढ़ लाख हो जाती है।
यहां पर बना है” वेद वेंकटेश्वर विज्ञान पीठम” जहां का माहौल वैदिक काल की याद दिलाता है ।यहां पर बने महा पुजारी भगवान वेंकटेश्वर की पूजा कर चुके हैं ।
तिरुपति लडडू भगवान को परोसे जाने वाला नैवेद्यम का हिस्सा है। इन लड्डू की बहुत मांग है ।करीब 300000 लड्डू प्रतिदिन बनाए जाते हैं लड्डू के साथ-साथ वेंकटेश स्वामी को शाकाहारी भोजन का भोग भी लगाया जाता है।
भक्ति से सराबोर प्रतिदिन श्रद्धालु वेंकटेश्वर स्वामी को कई खास चढ़ावे चढ़ाते हैं। अनुमानों के अनुसार यहां सब हिंदुमंदिरों में से सबसे धनवान मंदिर माना जाता है। यह चढ़ावा भारी भरकम से लेकर मामूली तक होता है।
भगवान को चढ़ाए जाने वाला एक मशहूर नारियल उस वेदी पर चढ़ाया जाता है ।जो मुख्य मंदिर के ठीक सामने है ।नारियल के अलावा वेंकटेश्वर स्वामी के भोग में प्रयोग आने वाली सब्जियां भी चढ़ावे के रूप में आती है जो प्रसाद रूप में श्रद्धालुओं की थाली में पहुंच जाती हैं। प्रसादम सात्विक होता है भगवान को भोग लगने के बाद श्रद्धालुओं को प्रसाद में रूप में वितरित कर दिया जाता है।
Thanks for giving Information about the such a wonder full temple…..
Om Namo Venaeshaaya
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