Kashi Vishwanath facts in hindi – काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में “काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग” विद्यमान है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग में भगवान शंकर का विश्वनाथ नाम, काशी में “काशी विश्वनाथ” के नाम से प्रसिद्ध है। 52 पीठों में से एक शक्तिपीठ मणिकर्णिका भी यहीं पर स्थित है ।
काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) का ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंग में से सबसे महत्वपूर्ण ज्योतिर्लिंग हैं। यह ज्योतिर्लिंग चिकने काले पत्थर से बना हुआ है। काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर के एक कोने में स्थित है।
ज्योतिर्लिंग में शिवलिंग पर हमेशा पंचामृत से अभिषेक होता रहता है। फुल व बेलपत्र से शिवलिंग हमेशा शृंगारिक रहता है ।
महाशिवरात्रि, दीपावली, त्रिपुरारी पूर्णिमा, श्रृंगारी एकादशी आदि त्योहारों के दिन काशी विश्वनाथ जी को आभूषणों से अलंकृत किया जाता है। अनाथो के नाथ, ब्रह्मांड के नायक शिवजी यहां निवास करते हैं।
विश्वनाथ धाम को “विशेश्वर धाम” भी कहा जाता है।
यह ज्योतिर्लिंग काशी शहर के मध्य में स्थित है। अतः काशी विश्वनाथ धाम (Kashi Vishwanath Temple) से प्रख्यात है। काशी का आधुनिक नाम वाराणसी है।
गंगा, वरुणा और असी जैसी पावन नदियों के बीच में बसी हुई वाराणसी नगरी संसार के सभी प्राचीनतम नगरों में से एक है।
मध्यकाल में इसे “बनारस” के नाम से पुकारा जाता था। तीर्थ के रूप में वाराणसी का महत्वपूर्ण स्थान है। यह सदियों से भारतीयों के लिए आस्था, पवित्रता, ज्ञान व धर्म का केंद्र रहा है। गंगा के किनारे बने यहां के घाट सर्वत्र विख्यात हैं।
प्रत्येक घाट का अपना धार्मिक और ऐतिहासिक महत्है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक विश्वनाथ के होने से ही वाराणसी का महत्व नहीं है अपितु वाराणसी की गिनती “सप्तपुरी स्थलों” में भी की जाती है।
कहा जाता है कि प्रलय काल में भी कावाराणसी शी का लोप नहीं होता इसे स्वयं भगवान शिव त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल में पुनः नीचे उतार देते हैं ।
इसे सृष्टि की ‘आदि स्थली” भी माना जाता है । यहां पर अगस्त्य ऋषि द्वारा की गई विशेश्वर की आराधना प्रसिद्ध है।
कालांतर में इसके अनेक नाम रहे हैं जैसे- अभिव्यक्ति क्षेत्र, शिवपुरी, तपस्थली, मुक्ति भूमि, त्रिपुरारी, सुशांत आदि। काशी विश्व संसार की सबसे प्राचीन नगरी मानी जाती है ।
ऋग्वेद के तृतीय व सप्तम मंडल में इसका उल्लेख मिलता है। विश्वनाथ के मूल मंदिर की परंपरा अतीत के इतिहास के, अज्ञात युग तक चली गई है किंतु वर्तमान मंदिर अधिक प्राचीन नहीं है ।
आजकल यहां तीन विश्वनाथ मंदिर है एक मंदिर “ज्ञान व्यापी” में है। इसका निर्माण रानी अहिल्याबाई ने किया था।
दूसरा मंदिर “काशी हिंदू विश्वविद्यालय” में है जिसे उद्योगपति बिरला जी ने बनवाया था और तीसरा मंदिर “मीर घाट” में है जिसका निर्माण स्वामी करपात्र जी ने करवाया था।
काशी की एक संकरी गली में प्रवेश करने पर प्राचीन काशी नाथ मंदिर के दर्शन होते हैं।
कहा जाता है कि इस मंदिर की पुनर्स्थापना शंकर के अवतार भगवान आदि शंकराचार्य जी ने स्वयं अपने कर कमलों से की थी। इस मंदिर की ध्वजा सोने की बनी हुई है।
यह मंदिर बहुत सुंदर और भव्य है। मंदिर का शिखर लगभग 7 फीट ऊंचा है। शिखर दो तलों का है पर इसकी कलाकारी में एक बड़ा शिखर और उसके नीचे छोटे होते हुए अनेक शिखर हैं जो मंदिर को एक भव्यता प्रदान करते हैं।
शिखर के नीचे ही मुख्य शिवलिंग एक चकोर स्थल में के अंदर स्थित है। जहां श्रद्धालु दूध, जल, बेलपत्र, फूल आदि चढ़ाकर पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर के परिसर में अनेक मूर्तियां स्थित है।
यहां भोलेनाथ मरते हुए प्राणी के कानों में तारक मंत्र फूटते हैं। तारक मंत्र के प्रभाव से पापी से पापी मनुष्य भी सहज ही भवसागर की बाधाओं से पार हो जाते हैं।
विषयों मे आसक्त अधर्मी व्यक्ति भी यदि इस काशी क्षेत्र में मृत्यु को प्राप्त हो, तो उन्हें पुनः संसार बंधन में नहीं आना पड़ता।
शिवभक्त काशी में अपनी मनोकामना पूर्ण करने आते हैं क्योंकि उन्हें अपने शिव पर अटूट विश्वास है।
वाराणसी तक सभी शहरों द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। वायु मार्ग ,रेल मार्ग और सड़क मार्ग से पहुंचने के लिए कई साधन उपलब्ध है।
शिवरात्रि पर भक्तों की अपार भीड़ रहती है और शिवरात्रि के अवसर पर यहां पर मेला लगता है।
स्वामी विवेकानंद जी, स्वामी दयानंद सरस्वती जी और तुलसीदास जी जैसे महान लोगों का आगमन इस मंदिर मैं हुआ है।
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