Baidyanath Jyotirlinga Temple in Hindi
वैद्यनाथ नाम से प्रसिद्ध तीर्थ “देवघर के रूप” में विख्यात है । यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से नौवी वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित है।
यहां पर सती का “हृदय” गिरने के कारण यह प्रमुख शक्तिपीठ भी है। जिस के फलस्वरुप शिव और पार्वती दोनों के यहां पर विराजमान होने से इस तीर्थ की महत्ता बढ़ गई है।
बिहार प्रदेश से अलग बने झारखंड राज्य में अत्यंत प्राचीन काल से ही यह ज्योतिर्लिंग विद्यमान है।
शिव पुराण के अनुसार —
वैद्यनाथ के बारे में प्रसंग आया है कि एक बार लंकापति रावण ने, महादेव शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत पर जाकर घोर तपस्या की।
उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिव जी ने रावण को प्रत्यक्ष दर्शन दिए और वर मांगने को कहा। रावण ने उनसे प्रार्थना करते हुए वर मांगा कि महादेव मेरे साम्राज्य लंका में, आप की उपस्थिति हो ।
शिव जी ने उसकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए यह शर्त रखी कि तुम ज्योतिर्लिंग को प्रतीक के रूप में लंका लेकर जाना किंतु मार्ग में उसे कहीं भूमि पर नहीं रखना ।
प्रसन्न होकर रावण आकाश मार्ग से ज्योतिर्लिंग को लेकर लंका की ओर चल पड़ा।
किंतु देवता गण नहीं चाहते थे कि राक्षसों के राज्य लंका में, महादेव शिवलिंग का प्रतीक पहुंचे।
इसके फल स्वरुप देवों ने, योग विद्या से, रावण के उदर में, वेदना का संचार कर दिया। उसे लघु शंका के लिए धरती पर उतरने के लिए विवश होना पड़ा।
तभी ग्वाले के रूप में विष्णु जी को मूर्ति थमा कर रावण लघु शंका से निपटने के लिए गया, परंतु वह ग्वाला, मूर्ति के भार को अधिक देर तक नहीं संभाल सका और उसने ज्योतिर्लिंग को धरती पर रख दिया।
महाबली रावण ने वापस आकर शिवलिंग को उठाने का प्रयत्न किया लेकिन वह ज्योतिर्लिंग धरती की गहराई तक स्थापित हो चुका था।
निराश होकर रावण ने सभी तीर्थों की मिट्टी तथा नदियों के जल को, गंगा सरोवर मे एकत्र करके शिवलिंग का अभिषेक किया और नतमस्तक होकर मूर्ति को अंगूठे से दबाकर लंका वापस लौट आया। शिवलिंग 11 अंगुल ऊंचा है और आधार से थोड़ा ही उठा हुआ है।
उस ज्योतिर्लिंग पर अभी भी रावण के अंगूठे से दबाया हुआ निशान है।
यहां तीन मंदिर शिव पार्वती के हैं जो परस्पर रेशमी रस्सो से जुड़े हुए हैं। कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए भी यह तीर्थ का अत्यंत महत्व है।
मंदिर से दूर एक तालाब है जहां लोग कुष्ठ रोगो से मुक्ति की भावना से स्नान करते हैं।
यहां एक लोककथा प्रचलित है कि “बैजू” नामक भील, नित्य प्रति उस शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाता था।
भगवान भोले शंकर उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए और तभी से इस तीर्थ का नाम, बैजू नामक भील के नाम पर “बैजनाथ” हो गया।बैजनाथ देवधर को “मनोकामना पूर्ण करने वाला तीर्थ” माना जाता है क्योंकि यहां पर ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है।
इस स्थल से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर सुल्तानगंज में उत्तर प्रवाहिनी गंगा की धारा है। वहां से जल लाकर बैजनाथ धाम में चढ़ाने पर मनवांछित फल प्राप्त होता है ।
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