//Kedarnath Dham | Chota 4 Dham | केदारनाथ धाम
Story of Kedarnath Mandir in Hindi

Kedarnath Dham | Chota 4 Dham | केदारनाथ धाम

Story of Kedarnath Mandir in Hindi – केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के ,रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। हिंदू पुराणों के अनुसार शिव भगवान, प्रकृति के कल्याण हेतु, भारत वर्ष में 12 जगह , ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। इन जगहों पर पर स्थित शिवलिंगो की ,ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा की जाती है ।जिसमें से एक ज्योतिर्लिंग केदारनाथ है ।केदारनाथ चार धाम व पंच केदारो में से एक है ।

पंच केदारो में :

  1. केदारनाथ
  2. रुद्रनाथ
  3. कल्पेश्वर
  4. मध्यवेश्वर और
  5. तुंगनाथ शामिल है

उत्तराखंड राज्य के हिमालय पर्वत की गोद में स्थित ,केदारनाथ धाम श्रद्धालुओं के लिए 6 माह के लिए खोला जाता है ।और शीतकाल में यहां भारी बर्फबारी होने के कारण रास्ता बंद हो जाता है। हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं ।इस धाम के प्रति लोगों की अटूट श्रद्धा व विश्वास है।


केदारनाथ धाम तीन तरफ से ऊंचे- ऊंचे पहाड़ों से ढका हुआ है। ऐसा माना जाता है कि यहां पांच नदियों का संगम होता है जिन में —

  1. मंदाकिनी
  2. मधु गंगा
  3. शिव सागर गंगा
  4. सरस्वती और
  5. स्वर्ण गौरी शामिल है

इन नदियों में से, कुछ को काल्पनिक माना जाता है। इस इलाके में मंदाकिनी नदी ही साफ तौर पर दिखाई देती है ।मंदाकिनी नदी का उद्गम स्थल” चोरी बारी ग्लेशियर “का कुंड है।
मंदाकिनी नदी के पास ही केदारनाथ मंदिर का निर्माण कराया गया था। इस मंदिर के निर्माण को लेकर कई बातें प्रचलित हैं —-
इसका निर्माण पांडवों के वंशज जन्मजेय द्वारा करवाया गया था।


एक प्रचलित मान्यता है कि मंदिर का जीर्णोद्धार ,जगतगुरू आदि शंकराचार्य द्वारा आठवीं शताब्दी में करवाया गया वर्ष था ।32 वर्ष की आयु में आदि शंकराचार्य जी की केदारनाथ के समीप ही मृत्यु हो गई थी। मंदिर के पिछले भाग में जगतगुरू आदि शंकराचार्य जी की समाधि भी है।


मंदिर को लेकर दो और कथाएं प्रसिद्ध हैं—
1) केदारनाथ के शिखर पर भगवान विष्णु के अवतार ,महा तपस्वी नरनारायण ऋषि ने तपस्या की ।उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए। भगवान शिव ने, ऋषि को ,सदा ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने का वचन दिया ।
2) महाभारत के युद्ध जीतने के बाद पांडवों को” “भात्र हत्या” का पाप लगा। इस वजह से पांडव भगवान शिव का आशीर्वाद लेकर , इस पाप से मुक्त होना चाहते थे। भगवान शिव पांडवों से नाराज थे ,इसलिए उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे।
परंतु पांडव शिव को ढूंढते ढूंढते हिमालय तक आ पहुंचे। तत्पश्चात भगवान शिव वहां से अंतर्ध्यान हो , केदारनाथ आ गए ।

दूसरी ओर पांडव शिव का पीछा करते-करते केदारनाथ धाम पहुंच गए ।भगवान शिव बैल का रूप धारण कर पशुओं के झुंड में जा मिले। पांडवों को इस बात का संदेह हो गया और तभी भीम ने अपना विशालतम रूप धारण कर लिया और अपने दोनों पैर , दो पहाड़ों पर फैला दिए ।यह देख कर सारे बैल तो भीम के पैर के नीचे से निकल गए ।परंतु शंकर भगवान का बैल जाने को तैयार नहीं हुआ।

भीम ने बैल के सींग पकड़ लिए , बैल धरती में समाने लगा। भीम ने बैल की पीठ का भाग पकड़ लिया।
इससे भगवान शंकर , पांडवों की भक्ति व दृढ़ संकल्प को देख कर बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर उन्हें पाप से मुक्त कर दिया ।
उसी दिन से भगवान शिव की, बैल की पीठ की आकृति ,पिंड रूप में श्री केदारनाथ धाम में विराजमान है।


ऐसी मान्यता है जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ के ऊपर का भाग काठमांडू में प्रगट हुआ ।जहां पशुपतिनाथ का मंदिर स्थापित है।
शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यश्वर में , जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई ।इसलिए श्री केदारनाथ को” पंच केदार कहा” जाता है यहां पर शिव जी का भव्य मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर की ऊंचाई 85 फीट , और चौड़ाई 187 फीट है। इसकी दीवारें 12 फीट मोटी हैं ।जो कि बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई है। यह मंदिर कस्तूरी शैली में बनाया गया है।

मंदिर के मुख्य भाग में मंडप और गर्भगृह के चारों और प्रदक्षिणा पथ है। मंदिर के बाहर नंदी बैल, वाहन के रूप में विराजमान है । मंदिर के प्रांगण में द्रौपदी सहित पांंच पांडवों की विशाल मूर्तियां भी स्थापित हैं।
मंदिर के गर्भ गृह में नुकीली चट्टान, भगवान शिव के सदाशिव के रूप में पूजी जाती है।


केदारनाथ धाम के कपाट ,मेष सक्रांति से 15 दिन पूर्व खुलते हैं ।और भैया दूज के दिन सुबह 4:00 बजे , धृत कमल और कपड़ों की समाधि के साथ ,बंद हो जाते हैं।
इसके उपरांत केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को “उखीमठ “लाया जाता है जहां उसकी पूजा की जाती है।

जून 2013 में अचानक केदारनाथ में बाढ़ आ गई और भूस्खलन होने लगा ।जिससे केदारनाथ सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। समस्त केदारनाथ धाम तहस-नहस हो गया। परंतु यह मंदिर उसी भव्यता से खड़ा रहा । आश्चर्य की बात यह है कि भूस्खलन के बाद बड़ी-बड़ी चट्टानें इस मंदिर के पास आने लगी और वहीं रुक गई । इतने में एक चट्टान आई और मंदिर का कवच बन गई। जिससे मंदिर की एक ईट को भी नुकसान नहीं पहुंचा ।इसके बाद से इस चट्टान को “भीम शिला चट्टान” का नाम दिया गया।


केदारनाथ मंदिर आम दर्शनार्थियों के लिए सुबह 6:00 बजे मंदिर खुलता है। और दोपहर 3:00 से 5:00 बजे तक यहां विशेष पूजा होती है ।उसके बाद विश्राम के लिए मंदिर बंद हो जाता है ।तत्पश्चात शाम 5:00 बजे मंदिर फिर खुलता है ,भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत सिंगार होता है ।इसके उपरांत 7:30 से 8:30 बजे प्रतिदिन आरती होती है और 8:30 बजे मंदिर को बंद कर दिया जाता है।

You may also like:

Hidden History Ram Mandir Nirman

Yamnotri Mandir yatra information in Hindi